
चंद्रशेखर मुखर्जी तीस साल के आसपास हैं। वे 2022 तक नियमित रूप से रक्तदान करते थे। लेकिन फिर उन्हें सांस लेने में तकलीफ और कई दूसरी बीमारियां होने लगीं। मुखर्जी और उनके डॉक्टरों का मानना है कि दुर्गापुर की धूल भरी हवा की वजह से उनकी तबीयत खराब हुई है।
पृथ्वी राज, एक युवा डॉक्टर हैं और हाल ही में दुर्गापुर आए हैं और उन्होंने अपने घर में एक एयर फिल्टर लगाया है। यह फिल्टर कम से कम छह महीने तक चलने वाला था, लेकिन मात्र तीन महीनों में इसका रंग दूधिया सफेद से काला हो गया। पृथ्वी राज को नया फिल्टर खरीदना पड़ा।
मध्य आयु के समाजसेवी कबी घोष, जो दुर्गापुर में जन्मे और पले-बढ़े हैं, हर दिन अपने अपमार्केट बिधाननगर में स्थित ग्राउंड फ्लोर ऑफिस में आते हैं और अपनी मेज पर जमा काली धूल की मोटी परत हटाते हैं। घोष का मानना है कि सार्वजनिक बसों के नदारद होने, निजी वाहनों की बढ़ोतरी, और ऑटो-टोटो (ई-रिक्शा) की भारी संख्या के साथ-साथ औद्योगिक प्रदूषण भी शहर में प्रदूषण की बढ़ोतरी के मुख्य कारण हैं।
यह उदाहरण दुर्गापुर के लिए अपवाद नहीं बल्कि सामान्य स्थिति है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगभग 170 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित यह शहर हाल ही में आईक्यू एयर की वैश्विक रिपोर्ट में विश्व के 24वें सबसे प्रदूषित शहर के रूप में चिन्हित हुआ है, जहां पीएम 2.5 नामक अत्यंत विषैला प्रदूषक का स्तर सबसे अधिक मापा गया है। पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर प्रदूषण के मामले में शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद आसनसोल जो एक अन्य औद्योगिक शहर है।]
दिलचस्प बात यह है कि दुर्गापुर, जिसे लगभग सात दशक पहले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय के निर्देशन में नियोजित और डिजाइन किया गया था, एक ‘स्मार्ट सिटी’ है और इसमें लगभग 26 प्रतिशत हरियाली है। फिलहाल, शहर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्य रणनीति के रूप में पानी छिड़काव किया जाता है, जबकि तैयार ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ ज्यादातर कागजों तक ही सीमित है।
वायु प्रदूषण विशेषज्ञ और थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने समझाया, “ये निष्कर्ष यह दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति को लागू करना बेहद आवश्यक है, जो न केवल समग्र नीतियों के साथ-साथ व्यवहारिक भी हो।” उनके मुताबिक, “हमारी हालिया अध्ययन में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत अधिकांश सुधरे हुए शहरों जैसे वाराणसी ने सफलता इसलिए प्राप्त की क्योंकि उन्होंने धूल और अन्य प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिए बहु-क्षेत्रीय रणनीतियां अपनाई; केवल पानी छिड़काव पर्याप्त नहीं होगा।”
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्यान रूद्र ने डाउन टू अर्थ को बताया, “ऐसी योजना तब अधूरी रह जाती है जब पर्याप्त डेटा उपलब्ध न हो। हम अभी भी आईआईटी, दिल्ली की अंतिम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं, जिसमें दुर्गापुर के वायु प्रदूषण के उत्सर्जन, स्रोत निर्धारण और वायुमंडलीय वहन क्षमता का अध्ययन शामिल है। लेकिन ऐसा लगता है कि उच्च मात्रा में सड़क की धूल और औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन और सीमा पार प्रदूषण के साथ मिलकर इस शहर को प्रभावित करते हैं।”
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सूत्रों ने माना है कि आईआईटी, दिल्ली की रिपोर्ट काफी समय से देरी से है और कई डेडलाइन पहले ही पार हो चुकी हैं। हालांकि आईआईटी, दिल्ली ने कहा है कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट बोर्ड को पहले ही सौंप दी है। इस अध्ययन से जुड़े आईआईटी, दिल्ली के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने डाउन टू अर्थ को लिखा, “हमने रिपोर्ट पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सौंप दी है।”
अधिकारी अनजान
नगर निगम की अध्यक्ष (मेयर के समकक्ष) अनिंदिता मुखर्जी ने शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के उपायों को लेकर असमंजस जताया। उन्होंने बताया, “यह सच है कि शहर नियोजित और हरा-भरा होने के बावजूद लगभग 26 प्रतिशत हरियाली के साथ भी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। हम कुछ प्रयास कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत अभी तक हमें कोई फंड जारी नहीं हुआ है। इसका कारण यह है कि निगम अभी निर्वाचित निकाय द्वारा नहीं चलाया जा रहा है।”
अधिकारी ने स्वीकार किया, “दुर्गापुर एक कोयला आधारित औद्योगिक क्षेत्र का हिस्सा है। कोयले से चलने वाली उद्योगें कई वार्डों के अंदर या उनके सीमांत क्षेत्रों में स्थित हैं। लेकिन ट्रांसपोर्ट से जुड़ी समस्याएं भी मौजूद हैं।” मुखर्जी ने माना कि सार्वजनिक बसों की संख्या और मार्ग पिछले सालों में घट गए हैं और उन्होंने कुछ नई बसें, जिनमें इलेक्ट्रिक बसें भी शामिल हैं, लाने की योजना साझा की, लेकिन रोडमैप के बारे में निश्चित नहीं थे।
अधिकारी ने मौजूदा संकट के पीछे मुख्य कारण के रूप में फंड की कमी को बताया, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि शहर अब तक मिले फंड का भी पूरा उपयोग नहीं कर पाया है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 से अब तक जारी 44.58 करोड़ रुपए में से, मार्च 2025 तक शहर में मात्र 26.78 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए हैं, जो कि लगभग 60 प्रतिशत ही है।
समस्या केवल फंड्स की कमी तक सीमित नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सूत्रों का दावा है कि दुर्गापुर प्रदूषण को रोकने में लगभग निष्क्रिय रहा है। नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (नीरी) के अधिकारी, जो एनसीएपी लागू करने में शहर के सलाहकार हैं, यह भी याद नहीं कर पाए कि उन्होंने दुर्गापुर में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए आखिरी बार कब बैठक की थी।
शहर के अधिकारी इस जिम्मेदारी को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर डालते हैं। एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बात करते हुए कहा, “हमारे पास इस समस्या से निपटने के लिए न तो वित्तीय संसाधन हैं और न ही मानव संसाधन। जैसा कि आप समझ सकते हैं, स्थानीय माफिया के संरक्षण में क्षेत्र में कानूनी और अवैध कोयला व्यवसाय फल-फूल रहे हैं, और हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाली और नियमों का उल्लंघन करने वाली उद्योगों की निगरानी प्रदूषण नियत्रण बोर्ड की जिम्मेदारी है।”
स्थानीय लोग भी इस बात की पुष्टि करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता घोश ने कहा, “प्रदूषण नियत्रण बोर्ड दुर्गापुर में बढ़ती औद्योगिक प्रदूषण से निपटने में काफी असमर्थ है।”
एक प्रदूषण नियत्रण बोर्ड के अधिकारी ने अपनी बात की सफाई दी, “हम कभी-कभार निगरानी करते हैं। लेकिन जब तक स्थानीय प्रशासन सक्रिय नहीं होता, तब तक स्थिति कठिन बनी रहती है।”
इसके परिणामस्वरूप, पीएम 10 (सांस लेने योग्य प्रदूषक कण), जो एनसीएपी के तहत मापा जाने वाला एक महत्वपूर्ण मानदंड है, की सघनता 2023-24 के दौरान प्रति घन मीटर हवा में 106 माइक्रोग्राम दर्ज की गई। यह आंकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में कम है, लेकिन फिर भी राष्ट्रीय मान्य सीमा 60 माइक्रोग्राम से लगभग 75 प्रतिशत अधिक है।
वैश्विक आईक्यू एयर के अध्ययन में बताया गया कि 2023 से 2024 के बीच दुर्गापुर में वायु प्रदूषण बढ़ा है, जिसमें 2024 के आंकड़ों ने 2023 की तुलना में पीएम2.5 स्तर में 46 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई है, जो औद्योगिक गतिविधियों, बायोमास जलाने और परिवहन से प्रेरित है। परिवहन क्षेत्र इस प्रदूषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो शहरी वायु प्रदूषण के 20-30 प्रतिशत तक वाहनों से निकलने वाले पीएम 2.5, एनओएक्स, और सीओ के उत्सर्जन के कारण होता है।
गायब सार्वजनिक परिवहन
एक ऐसा शहर, जहां 2000 के पहले दशक तक सार्वजनिक बसें खूब चलती थीं, अब वहां लगभग कोई सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट साधन नहीं बचा है। जबकि पिछले दशक में निजी चारपहिया, दोपहिया और तिपहिया वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी, सार्वजनिक बसों की संख्या में गिरावट आई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि 2017 से 2024 के बीच दुर्गापुर में लगभग 25,000 निजी चारपहिया और 1,60,000 दोपहिया वाहन पंजीकृत हुए। वहीं सार्वजनिक सेवा वाहन की कुल पंजीकरण संख्या केवल 770 रही, जो 2017 से प्रति वर्ष औसतन 180 घटी और 2024 में घटकर केवल 82 रह गई। इस अवधि के दौरान ऑटो और टोटो (ई-रिक्शा) की संख्या तेजी से बढ़ी, जो अधिकांशतः सार्वजनिक बसों की जगह लेने लगे।
स्थानीय ऑटो यूनियन के एक नेता ने बताया, "शहर में लगभग 3,600 ऑटो लगभग 100 रूटों पर चलते हैं, और हर ऑटो प्रतिदिन लगभग 80 यात्रियों को ले जाता है। इसलिए लगभग 3 लाख लोग रोजाना ऑटो का उपयोग करते हैं," इसके साथ ही, लगभग 10,000 टोटो हैं जो भारी ट्रैफिक जाम और इसलिए प्रदूषण का कारण बन रहे हैं।
घोष ने बताया कि सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक बसें 2005 तक काफी नियमित रूप से उपलब्ध थीं। लेकिन उसके बाद वे धीरे-धीरे गायब हो गईं, सिवाय कुछ मिनी बसों के जो अब चलती हैं। क्योंकि शहर को मुख्य रूप से बड़े हिस्सों में बांटा गया है, यदि आपके पास निजी चारपहिया या दोपहिया वाहन नहीं है, तो आपको शहर के भीतर यात्रा के लिए ऐप-आधारित वाहन, ऑटो या टोटो किराए पर लेना पड़ता है। सार्वजनिक परिवहन की कमी ने निजी परिवहन की बढ़ोतरी को बढ़ावा दिया है। कोविड -19 महामारी ने इस प्रवृत्ति को और मजबूत किया।
कंचन सिद्दीकी, एक स्थानीय पत्रकार और दुर्गापुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष ने कहा, “यह व्यंग्यपूर्ण है कि दुर्गापुर, जो दक्षिण बंगाल में सरकारी सार्वजनिक बस प्रणाली के जन्म स्थल के रूप में जाना जाता है और अब भी दक्षिण बंगाल स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन का मुख्यालय है, अब वहां सरकारी बसें लगभग खत्म हो गई हैं। यहां बस प्रणाली 1960 के दशक से चल रही थी। हमारे पास यहां डबल-डेकर बसें भी थीं। लेकिन 1990 के मध्य से संख्या में तेज गिरावट आई और 2005-06 के बाद बसें लगभग गायब हो गईं, सिवाय कुछ सीमित रूटों के।”
सिद्दीकी ने बताया कि 1982 में दुर्गापुर के लिए ट्राम की भी योजना बनाई गई थी, लेकिन यह विचार लागू नहीं हो सका। सिद्दीकी ने शहर में निजी वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि के सामाजिक संदर्भ को समझाते हुए कहा, “जब 1990 और 2000 के शुरुआती दशक में कई सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के अधिकारी और कर्मचारी बड़े आर्थिक मुआवजे के साथ सेवानिवृत्त हुए, तो उनमें से कई ने दोपहिया और चारपहिया वाहन खरीदे।”
एक अस्वस्थ शहर
प्रशांत कुमार, जो दुर्गापुर के एक निजी अस्पताल में पल्मोनोलॉजिस्ट (फेफड़ों के रोग विशेषज्ञ) हैं, अस्पताल में पल्मोनरी यूनिट स्थापित करने की जिम्मेदारी लेकर शहर आए थे। उन्होंने शुरू में योजना बनाई थी कि कार्य पूरा होने के बाद वापस चले जाएंगे, लेकिन बाद में शहर से श्वसन संबंधी शिकायतों वाले मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण वहीं रुक गए।
वह कहते हैं, “मैं 2017 में यहां आने के बाद वापस जाने की योजना बना रहा था, लेकिन मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण रहना पड़ा। हमारे अस्पताल में लगभग दो-तिहाई मरीज किसी न किसी श्वसन संबंधी शिकायत के साथ आते हैं, जो दोनों लिंगों और सभी आयु वर्गों में फैली हुई है, और इसमें धूम्रपान करने वाले और न करने वाले दोनों शामिल हैं।“
कुमार ने जोड़ा, “हालांकि हमें अस्थमा, सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) और सांस के रोगी अक्सर मिलते हैं, लेकिन फेफड़ों की फाइब्रोसिस और यहां तक कि फेफड़ों के कैंसर के मरीज भी आते हैं।“
बोस इंस्टिट्यूट के वायु प्रदूषण विशेषज्ञ अभिजीत चटर्जी ने बताया कि दुर्गापुर में वायु प्रदूषण की समस्या मुख्य रूप से धूल है। यह शहर एक धूल का कटोरा है। साथ ही, उन धूल के कणों पर सवार जहरीले कार्बनयुक्त प्रदूषक हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं, जो कई प्रकार की श्वसन और संबंधित बीमारियों को बढ़ावा देते हैं।
स्थानीय राजनेताओं ने भी बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जताई है। राज्य ग्रामीण विकास मंत्री एवं स्थानीय विधायक प्रदीप मजूमदार ने पिछले सर्दियों में कहा था कि शहर में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है और इसके लिए तुरंत कुछ करना होगा। उन्होंने इस औद्योगिक शहर की बिगड़ती एयर क्वालिटी इंडेक्स पर गहरी चिंता व्यक्त की।
दुर्गापुर के लोग धैर्यपूर्वक उस जादुई ‘कुछ’ के जल्द होने का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बढ़ता जा रहा है और अस्पताल श्वसन एवं संबंधित शिकायतों वाले मरीजों से भरे रहते हैं।
एक स्थानीय कार्यकर्ता ने चेतावनी दी, “पहले कई लोग बड़े शहरों को छोड़कर दुर्गापुर में बसना पसंद करते थे क्योंकि यह हरा-भरा और स्वच्छ था। यदि वर्तमान प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं हुआ, तो जल्द ही यह प्रवृत्ति उलट सकती है।”