वाहनों से होते प्रदूषण से निपटने के लिए रिमोट सेंसिंग में तलाशे संभावना: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि वाहनों से होते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एनसीआर राज्यों से रिमोट सेंसिंग तकनीक के उपयोग की शुरूआत की जा सकती है
भारत के कई शहरों में बढ़ते प्रदूषण से बड़े ही नहीं बच्चे भी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं; फोटो: आईस्टॉक
भारत के कई शहरों में बढ़ते प्रदूषण से बड़े ही नहीं बच्चे भी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं; फोटो: आईस्टॉक
Published on

सर्वोच्च न्यायालय ने 26 जुलाई, 2024 को कहा है कि वाहनों से हो रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कहीं न कहीं तो रिमोट सेंसिंग के उपयोग की शुरूआत करनी होगी।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि वाहनों से होते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एनसीआर राज्यों से रिमोट सेंसिंग तकनीक के उपयोग की शुरूआत की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वो इन राज्यों के अधिकारियों के साथ तत्काल बैठक करे। मंत्रालय को इस आदेश की प्रतियां इन विभागों को भेजनी चाहिए ताकि उनका पूरा सहयोग मिल सके।

सर्वोच्च न्यायालय का यह भी कहना है कि यदि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को लगता है कि इन राज्यों के अधिकारी सहयोग नहीं कर रहे हैं, तो वह इस मुद्दे को न्यायालय के समक्ष उठा सकते हैं, जिसके बाद न्यायालय इन अधिकारियों को नोटिस जारी करेगा।

गौरतलब है कि पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) ने अपनी रिपोर्ट में प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) परीक्षणों की सीमाओं पर प्रकाश डाला है। साथ ही वाहन से हो रहे प्रदूषण के बेहतर प्रबंधन के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीकों के इस्तेमाल की सिफारिश की है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 19 अगस्त, 2019 को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) के साथ विधि मंत्रालय को अंतिम निर्णय लेने और स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने बताया है कि दाखिल की गई रिपोर्ट निराशाजनक थी क्योंकि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने वाहनों से हो रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी तकनीक नहीं अपनाई है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब ईपीसीए ने पीयूसी टेस्ट के साथ रिमोट सेंसिंग तकनीक के इस्तेमाल की सिफारिश की थी, तो सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को इसे गंभीरता से लेना चाहिए था। वहीं सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को भरोसा दिलाया है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय इस मुद्दे पर दोबारा विचार करेगा।

कई वर्षों से क्यों नहीं हुई राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो इस बात का जवाब दे कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक कई वर्षों से क्यों नहीं हुई है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड नियम, 2003 के मुताबिक बोर्ड को साल में कम से कम एक बार बैठक करनी होती है। ऐसे में 26 जुलाई, 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रालय से उसका जवाब मांगा है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने निर्देश प्राप्त करने के लिए और समय मांगा है, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मांग को स्वीकार करते हुए चार सप्ताह का समय दिया है। वहीं आवेदक चंद्रभाल सिंह के वकील का तर्क है कि अधिनियम को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

वहीं इसके जवाब में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 5बी के तहत, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड सौंपे गए कार्यों को संभालने के लिए एक स्थाई समिति बना सकता है।

उनके मुताबिक ऐसी एक समिति गठित की गई है और उसकी अध्यक्षता पर्यावरण एवं वन मंत्री करते हैं। यह समिति आम तौर पर हर तीन महीने में बैठक करती है। इतना ही नहीं अपनी स्थापना के बाद से समिति अब तक करीब 72 बैठकें कर चुकी है। ऐसे में यह तर्क दिया गया है कि केंद्र सरकार वन्यजीव अधिनियम, 1972 के तहत अपनी जिम्मेवारियों को ठीक तरह से निभा रहा है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in