

दिल्ली-एनसीआर में शुरुआती सर्दियों में पराली जलाने की घटनाएं घटने के बावजूद वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ।
पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर लगातार ऊंचा रहा।
दिल्ली-एनसीआर में होने वाले प्रदूषण के मुख्य कारण ट्रैफिक और स्थानीय उत्सर्जन स्रोत हैं।
सीएसई ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए वाहनों का विद्युतीकरण, सार्वजनिक परिवहन विस्तार और कचरा प्रबंधन जैसे कदम सुझाए।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के नए आकलन में स्पष्ट तौर पर कहा गया है, “दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लिए पराली जलने का बहाना नहीं बनाया जा सकता। इस बार सर्दियों में पराली के धुएं का असर बहुत कम रहा है, फिर भी हवा लगातार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ स्तर पर बनी हुई है। इससे साफ है कि हमारी हवा को बिगाड़ने में स्थानीय स्रोतों की भूमिका बहुत बड़ी है।”
सीएसई ने देश की राजधानी और आसपास के इलाकों में शुरुआती सर्दियों (अक्टूबर से 15 नवंबर) के दौरान हवा की गुणवत्ता के विश्लेषण के बाद यह आकलन जारी किया है। सीएसई ने यह विश्लेषण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पोर्टल से प्राप्त वायु गुणवत्ता के आंकड़ों के आधार पर किया है।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुपमा रॉयचौधरी ने कहा है, “चिंता की बात यह है कि हर दिन पीएम 2.5 के साथ-साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों का स्तर भी एक साथ बढ़ रहा है। वाहनों और अन्य स्रोतों से निकलने वाला यह जहरीला मिश्रण हमारे आसपास मौजूद है, लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं गया।
दिल्ली की दीर्घकालिक वायु गुणवत्ता भी अब एक जगह ठहर गई है, इसमें कोई सुधार नहीं दिख रहा। यह संकेत है कि अब बुनियादी ढांचे और प्रणालियों में बड़े बदलाव की जरूरत है—ताकि वाहनों, उद्योगों, बिजलीघरों, कचरा निपटान, निर्माण कार्यों और घरेलू ऊर्जा से होने वाले उत्सर्जन को तेजी और प्रभावी ढंग से कम किया जा सके।”
सीएसई के क्लीन एयर यूनिट की अर्बन लैब में डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर शरणजीत कौर कहती हैं: “एक और गंभीर बात यह है कि एनसीआर भर में प्रदूषण का स्तर लगातार ऊंचा बना हुआ है और उसका फैलाव भी बहुत ज्यादा है।
शहर में प्रदूषण वाले ‘हॉटस्पॉट’ बढ़ रहे हैं और उनकी स्थिति और खराब होती जा रही है। क्षेत्र के छोटे शहरों में तो स्मॉग ज्यादा गहरा और लंबे समय तक बना रहता है। सर्दी के वर्तमान मौसम में पराली जलने की घटनाएं कम होने से प्रदूषण के चरम स्तर थोड़े नीचे रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद पूरे क्षेत्र की हवा धीरे-धीरे और ज्यादा प्रदूषित होती जा रही है।”
सर्दियों की शुरुआत में कणों और गैसों का जहरीला मिश्रण
दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के शुरुआती दिनों में हर किसी की नजर सिर्फ पीएम 2.5 के रोजाना बढ़ते स्तर पर रहती है, लेकिन इसके साथ-साथ दो बेहद हानिकारक गैसों नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के बढ़ते स्तर पर ध्यान ही नहीं गया।
सुबह (7–10 बजे) और शाम (6–9 बजे) के समय पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड दोनों लगभग एक साथ बढ़ते और घटते हैं। इसका कारण यह है कि इन दोनों प्रदूषकों का स्तर ट्रैफिक के धुएं से एक साथ बढ़ता है और सर्दियों में नीचे बनती वायुमंडलीय परत में फंस जाता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में तेज और तुरंत दिखने वाली बढ़ोतरी होती है, क्योंकि यह सीधे वाहनों के धुएं से जुड़ा होता है, जबकि पीएम 2.5 का उछाल ज्यादा फैला हुआ और लंबा रहता है, क्योंकि बारीक कण धीरे-धीरे जमा होते हैं और देर से फैलते हैं।
खून को गाढ़ा करने व सांस लेने में घुटन के लिए जिम्मेवार एक और बेहद जहरीला प्रदूषक कार्बन मोनोऑक्साइड भी मुख्य रूप से वाहनों से निकलता है। यह भी सर्दी के वर्तमान मौसम में दिल्ली में बड़े पैमाने पर मानक सीमा से ऊपर दर्ज किया गया। दिल्ली के करीब 22 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर 59 दिनों में से 30 से अधिक दिनों में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर आठ घंटे के मानक से ऊपर पाया गया, जो यह दिखाता है कि ट्रैफिक से होने वाला प्रदूषण लगातार बना हुआ है।
सबसे खराब स्थिति द्वारका सेक्टर-8 में रही, जहां 55 दिनों तक मानक से अधिक कार्बन मोनोऑक्साइड दर्ज हुआ। इसके बाद जहांगीरपुरी और नॉर्थ कैंपस (दिल्ली विश्वविद्यालय) में 50-50 दिनों तक मानकों का उल्लंघन दर्ज किया गया।
यह एक जैसा बढ़ने वाला पैटर्न साफ दिखाता है कि रोजाना होने वाले पीएम 2.5 के उछाल को ट्रैफिक से निकलने वाली नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें और भी बढ़ा देती हैं। वो भी खासकर सर्दियों में जब हवा का फैलाव बहुत कम होता है।
रॉयचौधरी कहती हैं, “प्रदूषकों का यह जहरीला मिश्रण हवा को और भी खतरनाक बना देता है, लेकिन हर साल सर्दियों में प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशें ज्यादातर सिर्फ धूल पर रोक लगाने तक ही सीमित रह जाती हैं, जबकि वाहनों, उद्योगों, कचरे और ठोस ईंधन जलाने जैसे बड़े स्रोतों पर बहुत कम कार्रवाई होती है।”
पराली जलने में कमी आई
अब पराली जलाने का मौसम लगभग खत्म हो चुका है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में बड़ी कमी आई है, जिसकी एक वजह पंजाब में मानसून के दौरान आई बाढ़ से हुई गड़बड़ी भी है। सर्दियों की शुरुआत के ज्यादातर दिनों में पराली का योगदान कुल प्रदूषण में 5 प्रतिशत से भी कम रहा। हालांकि कुछ दिनों में यह 5 से 15 प्रतिशत के बीच रहा और केवल 12–13 नवंबर को यह बढ़कर 22 प्रतिशत तक पहुंचा।
इससे यह कहा जा सकता है कि जब पराली का असर कम हो जाता है, तब दिल्ली-एनसीआर की हवा को बिगाड़ने में स्थानीय स्रोतों (जैसे वाहन, उद्योग, कचरा, निर्माण आदि) की भूमिका कितनी बड़ी है।
पराली जलने में आई कमी ने प्रदूषण के चरम उछाल को तो रोका, लेकिन रोजाना की औसत वायु गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ। अक्टूबर–नवंबर के दौरान पीएम 2.5 ही एयर क्वालिटी इंडेक्स का मुख्य कारक बना रहा। 34 दिनों में यह सबसे प्रमुख प्रदूषक रहा। इसके बाद पीएम10 (25 दिन), ओजोन (13 दिन) और कार्बन मोनोऑक्साइड (दो दिन) प्रमुख प्रदूषक के रूप में दर्ज किए गए।
नवंबर के लगभग पूरे महीने एयर क्वालिटी इंडेक्स ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में ही बना रहा। यह साफ दिखाता है कि दिल्ली के स्थानीय और सालभर सक्रिय प्रदूषण स्रोत जैसे वाहन, उद्योग, कचरा जलाना व निर्माण कार्य हवा को लगातार दूषित कर रहे हैं। हालांकि कुल मिलाकर प्रदूषण खतरनाक रूप से ऊंचे स्तर पर बना रहा, लेकिन इस बार शुरुआती सर्दियों में प्रदूषण के चरमता के स्तर में कमी आई है, क्योंकि पराली का असर कम रहा। पिछले तीन सालों की तुलना में इस बार औसत और उच्चतम दोनों स्तर कम रहे। अक्टूबर व नवंबर का पीएम 2.5 औसत पिछले साल की तुलना में लगभग 9 प्रतिशत कम है और सबसे बुरे प्रदूषण वाले दिनों के स्तर भी थोड़े नीचे दिखे।
कौर कहती हैं, “लेकिन अगर शुरुआती सर्दियों के तीन साल के बेसलाइन से तुलना करें, तो औसत में कोई बदलाव नहीं आया, यह उसी अस्वस्थ स्तर पर अटका हुआ है। सर्दियां सिर्फ पिछले साल के मुकाबले थोड़ी बेहतर लगती हैं, वरना जमीनी तौर पर प्रदूषण लगातार ऊंचा ही बना हुआ है।”
प्रदूषण वाले हॉटस्पॉट्स में बढ़ोतरी
2018 में प्रदूषण स्तर के आधार पर लगभग 13 हॉटस्पॉट आधिकारिक रूप से पहचाने गए थे। ये वे स्थान थे, जहां प्रदूषण न केवल मानक से अधिक था, बल्कि शहर के औसत स्तर से भी ऊपर था। ये हॉटस्पॉट आज भी बेहद गंभीर स्थिति में हैं। उत्तर और पूर्वी दिल्ली में प्रदूषण के सबसे ऊंचे स्तर दर्ज किए गए। जहांगीरपुरी सबसे प्रदूषित हॉटस्पॉट है, जहां जनवरी–नवंबर के दौरान पीएम 2.5 का औसत 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। इसके बाद बवाना और वजीरपुर, आनंद विहार (111 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), और मुंडका, रोहिणी व अशोक विहार (101–103 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) का स्थान है।
लेकिन समय के साथ कई और नए हॉटस्पॉट उभर आए हैं। विवेक विहार का स्तर 101 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है, जो अशोक विहार के बराबर है। अन्य उभरते हुए प्रदूषण स्थानों में नेहरू नगर, अलीपुर, सीरीफोर्ट, द्वारका सेक्टर 8 और पटपड़गंज शामिल हैं, जहाँ स्तर 90 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर जा चुका है।
विवेक विहार और नेहरू नगर लगातार चार साल से हॉटस्पॉट बने हुए हैं, जबकि द्वारका सेक्टर 8 और सीरीफोर्ट लगातार दूसरे साल शहर के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल हुए हैं।
एनसीआर के छोटे शहरों में भी ज्यादा गहरा स्मॉग
एनसीआर के कई शहर दिल्ली जितने या कई बार उससे भी बदतर प्रदूषित रहे। बहादुरगढ़ जैसे कस्बों में इस अवधि के दौरान स्मॉग की तीव्रता दिल्ली से भी अधिक दर्ज की गई। पूरे एनसीआर में एक बड़ा स्मॉग प्रकरण देखने को मिला, लेकिन बहादुरगढ़ पर इसका असर सबसे ज्यादा और सबसे लंबा रहा। यहां 9 से 18 नवंबर तक लगातार 10 दिनों तक घना स्मॉग छाया रहा। सीएसई का कहना है कि इससे यह पूरी तरह स्पष्ट होता है कि अब पूरा क्षेत्र एक ही “एयर-शेड” की तरह व्यवहार कर रहा है, जहां छोटे शहर अब “क्लीन गैप” नहीं बचे, बल्कि उतने ही प्रदूषित, बल्कि कई बार उससे भी ज्यादा प्रदूषित हॉटस्पॉट बन गए हैं।
क्या दिल्ली अपनी वायु गुणवत्ता में हुई अब तक की प्रगति खोने के कगार पर है?
साल 2022 से दिल्ली में पीएम 2.5 के वार्षिक स्तर ठहरे हुए हैं और चिंताजनक बात यह है कि यह ठहराव भी ऊंचे प्रदूषण स्तर पर है। 2018 से 2020 तक (जिसमें महामारी का साल भी शामिल है) दिल्ली में हर साल पीएम 2.5 में लगातार गिरावट देखी गई थी, लेकिन 2021–22 के बाद से प्रदूषण स्तर फिर ऊंचे और लगभग स्थिर ही बने हुए हैं। 2024 में तो वार्षिक औसत पीएम 2.5 बढ़कर 104.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। यानी दिल्ली पूरे साल बेहद प्रदूषित हवा में सांस ले रही है और प्रदूषण में कोई स्थायी कमी नहीं दिख रही।
दिल्ली का एक्शन एजेंडा क्या होना चाहिए?
रॉयचौधरी कहती हैं, “छोटे-छोटे कदम अब साफ हवा के लक्ष्य हासिल करने में मदद नहीं कर पाएंगे। पूरे क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर बहुत ऊंचे और खतरनाक बिंदु पर आकर ठहर गया है। यही मोड़ है या तो प्रदूषण के प्रमुख क्षेत्रों में तेजी और बड़े स्तर पर बदलाव किए जाएं, ताकि प्रदूषण घटने की रफ्तार वापस आए या फिर यह रुझान दोबारा बेहद खतरनाक दिशा में ऊपर जा सकता है।”
सीएसई ने निम्नलिखित प्रमुख एक्शन पॉइंट सुझाए हैं:
· सभी तरह के वाहनों में तय समय सीमा के भीतर तेजी से विद्युतीकरण (इलेक्ट्रिफिकेशन) लागू किया जाए, ताकि जिस बिंदु से उत्सर्जन होता है, वहीं उसे शून्य किया जा सके। पुराने वाहनों को हटाकर नए स्वच्छ विकल्प लाए जाएं।
· एकीकृत सार्वजनिक परिवहन को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जाए, जिसमें लास्ट-माइल कनेक्टिविटी, पैदल चलने और साइकिलिंग के लिए सुरक्षित ढांचा शामिल हो, ताकि लोग ज्यादा संख्या में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें।
· निजी वाहनों के उपयोग को सीमित किया जाए। पार्किंग सीमा और शुल्क तय किए जाएं और कंजेशन चार्ज लागू किया जाए।
· उद्योगों को किफायती और स्वच्छ ईंधन अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए। प्राकृतिक गैस पर टैक्स कम किए जाएं और औद्योगिक प्रक्रियाओं का विद्युतीकरण बढ़ाया जाए।
· कचरा जलाने की प्रवृत्ति खत्म की जाए।कचरे को अलग-अलग इकट्ठा करना, पुराने कचरे के ढेरों का उपचार करना और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना जरूरी है।
· बिजलीघरों को सख्ती से उत्सर्जन मानकों का पालन करने के लिए बाध्य किया जाए।
· निर्माण मलबे का पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) किया जाए, धूल नियंत्रण पर सख़्त पालन हो, और पूरे साल निगरानी के लिए स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किए जाएं।
· घरों में खाना बनाने और गर्म रखने के लिए स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, ताकि लोग ठोस ईंधन या कचरा जलाने पर निर्भर न रहें।
· पराली को खेतों में जलाने के बजाय उसे मिट्टी में मिलाया जाए या सड़ने दिया जाए, जिससे मिट्टी में कार्बन बढ़े और उसकी गुणवत्ता सुधरे। पराली से बायो-मीथनेशन द्वारा एथेनॉल और प्राकृतिक गैस बनाई जाए, ताकि प्रदूषण भी कम हो और किसानों की आमदनी भी बढ़े।