डाउन टू अर्थ के लिए छत्तीसगढ़, रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय कुमार पाटिल से अवधेश मलिक ने लंबी बातचीत की। पेश हैं, बातचीत के मुख्य अंश -
वर्तमान कृषि शिक्षा और शोध पर आपकी राय क्या है ?
वर्तमान में कृषि शिक्षा नीति के तहत कृषि विश्वविद्यालयों में तीन विषयों पर जोर दिया जा रहा है शिक्षा, शोध तथा विस्तार, लेकिन विश्वविद्यालय दर विश्वविद्यालय इस में आपको विविधता दिखेगी। किसी में शोध, तो किसी में शिक्षा एवं विस्तार पर जोर है। कृषि विश्वविद्यालयें खासकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के साथ काम करती है जिसके कारण शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार आते जा रहा है। बच्चों में कौशल उन्नयन हो रहा है। शोध में भी क्रॉप डेवलपमेंट पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। यानि कि जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ऐसे बीज एवं पौधे तैयार किए जा रहें हैं जो हरेक परिस्थिति में उग सके एवं पैदावार दे सके।
कृषि शिक्षा में कितनी दिलचस्पी ले रहे हैं युवा ?
कृषि शिक्षा में युवा पहले के तुलना में काफी ज्यादा संख्या में आ रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ में ही देख लिजीए हमारे पास मात्र 3,000 सीटें परंतु 50,000 छात्रों ने एडमीशन के लिए आवेदन किया है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ज्यादातर युवा कृषि शिक्षा के लिए आ रहे हैं, लेकिन इसे प्रोफेशन के रूप में नहीं अपना रहे हैं। शिक्षा जरूर ले रहे हैं, ताकि उन्हें पब्लिक या प्राइवेट क्षेत्र में रोजगार मिल सके।
युवाओं के लिए कृषि शिक्षा के क्या मायने हैं?
कृषि शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार के मौके काफी अधिक हैं। खेती किसानी में मदद के लिए कृषि विशेषज्ञ या सहायक बन गांवों में किसानों को मदद मुहैया करवाने जा अवश्य रहें हैं लेकिन वे खेती को अपना पेशा नहीं बना रहें हैं। एमएससी कर लेता है तो या तो फिर शोध की ओर मुड़ जाता है नहीं तो शिक्षक बन जाता है। खुद एग्री बिजनेस मैन नहीं बन रहे हैं।
आपकी नजर में इस वक्त किसानों की क्या स्थिति है ?
भारत में कृषि क्षेत्र का आकलन किसानों की स्थिति को देख कर किया जाता है। इस में कोई दो राय नहीं है कि किसानों की स्थिति अच्छी नहीं है। इस प्रदेश में जरूर है कि शासन ने एमएसपी में वृद्दि एव कर्ज माफी जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया है जिससे की थोड़ी सी राहत है। पर मौसम परिवर्तन की मार किसानों पर पड़ रही है। सरकार को किसानों की पैदावार की सही कीमत देने के लिए आगे आना होगा। ताकि उनके फसल का उचित मूल्य मिल सके।
बडी संख्या छोटे किसानों की है, उनको लेकर आपकी क्या राय है?
छोटे किसान की स्थिति अच्छी नहीं है यह हम सब जानते हैं। लेकिन, उन्हें उन्नत कृषि के ओर जाना होगा जहां उन्हें पता होना चाहिए की जलवायु परिवर्तन के हिसाब से कौन सी फसल कैसे लगानी है। किसानों की मदद के लिए सबको आगे आना चाहिए। इस बात पर भी जोर दिया जाना चाहिए कि नई युवा पीढ़ी किसानी को कैसे अपनाए।
क्या भारत अब कृषि संकट की चपेट में है? यदि हाँ तो क्यूँ?
फिर से वही बात दोहराउंगा किसान के संकट को कृषि संकट के रूप में देखा जा रहा है। यहां ज्यादा उत्पादन हो तब भी किसान को लाभ नहीं कम हो तब भी नहीं। यह बाजार आधारित विषय है, उचित मूल्य नियमन नहीं हे के कारण किसान को हानि है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। रही बात उत्पादन की तो 1950 में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन 450 ग्राम और अब है 500 ग्राम जबकी जरूरत होती है 750 ग्राम।
क्या भारत अभी भी कृषि प्रधान देश है ?
आज भी भारत 52 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर आधारित है। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। वेनेजुएला एक तेल आधारित राष्ट्र है लेकिन कृषि चौपट है। अतः लोगों को एक किलो नोट से भी एक केला खरीदना मंहगा पड़ रहा है। बिना कृषि सब बेकार है। इसलिए कृषि पर ध्यान देने की जरूरत है। अगला युद्ध अनाज पानी पर कंट्रोल लेकर ही होने वाला है।
क्या भारत के पास इतनी जमीने एवं संसाधन है कि कृषि को आने वाले दिनों में लाभकारी बनाया जा सके?
बिलकुल, इसके लिए हमको इंफोटेक और क्वालिटी सीडिंग की ओर जाना होगा। कृषि को कमर्शियालाईज करना होगा। भारत में खेत का औसत आकार 1.2 हेक्टेयर है जबकि चीन में खेत का आकार .6 हेक्टेयर। हमारे खेतों के आकार से करीब आधा है उसके बाद भी चीन खेती में पूरे विश्व में नंबर 1 पर है। भारत में पिछले 50 वर्षों से दलहन का आयात हो रहा था। हम सब उसके पीछे पड़े और पिछले दो वर्षों में दाल में सरप्लस हो गए। हमें मानसून आधारित खेती के जगह पर ड्रीप ईरिगेशन तकनीक को सभी किसानों को सुलभ करना होगा और फिर अन्य महत्वपूर्ण उपाय हैं जो करना होगा तो हमारी कृषि भी लाभ कारी हो जाएगी।