क्यों धान-गेहूं के चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहे पंजाब और हरियाणा?

पंजाब व हरियाणा की सरकारें काफी प्रयास कर रही हैं कि किसान धान-गेहूं की फसल लगाना छोड़ दें, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है
फोटो: विकास चौधरी
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हरियाणा और पंजाब सरकारें अधिक पानी की खपत करने वाली धान की फसल से विविधता लाने और धान-गेहूं चक्र को तोड़ने के लिए मक्का, कपास, सूरजमुखी और मूंग जैसी फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर रही हैं। लेकिन इन फसलों की कीमतें सही न मिलने के कारण सरकारों का फसल विविधीकरण योजनाएं सफल नहीं हो पा रही हैं।

पिछले हफ्ते, बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली को चंडीगढ़ से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-44 को 33 घंटे के लिए अवरुद्ध कर दिया था। उनकी मांग थी कि सूरजमुखी के बीज की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की जाए, जो 6,400 रुपए प्रति क्विंटल है।

किसानों को खुले बाजार में 4,000 से लेकर 5,000 रुपए प्रति क्विंटल कीमत मिल रही थी। राज्य सरकार द्वारा किसानों को 'उचित मूल्य' का आश्वासन देने के बाद विरोध समाप्त कर दिया गया।

इस बीच, पंजाब में मक्के की कीमतें लगभग 1,000 रुपए प्रति क्विंटल तक गिर गई हैं, जो विपणन सीजन 2022-23 के लिए घोषित एमएसपी 1,962 रुपए प्रति क्विंटल से काफी कम है। हरियाणा में भी कीमतें एमएसपी से 50 फीसदी नीचे गिर गई हैं और किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।

इसी तरह मूंग के लिए 7,755 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी की घोषणा की गई, लेकिन किसानों को प्रति क्विंटल लगभग 6,000 रुपए ही मिल रहे थे।

गेहूं की अगर बात करें तो गेहूं की कीमत एमएसपी 2,125 रुपए प्रति क्विंटल से थोड़ा ऊपर मिल रही है। वर्तमान में, राज्य में सकल फसल क्षेत्र का 85 प्रतिशत से अधिक धान और गेहूं के अंतर्गत है। गेहूं का कुल रकबा 35 लाख हेक्टेयर और धान का कुल रकबा 30 लाख हेक्टेयर है।

दरअसल दूसरी फसलों की कम कीमत मिलना एक बड़ा कारण है, जिसके चलते किसान गेहूं-धान से अपना ध्यान नहीं हटाता। क्योंकि इनमें सुनिश्चित और बेहतर रिटर्न मिलता है।

यूं तो हर साल, सरकार विभिन्न फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है, लेकिन प्रभावी रूप से धान व गेहूं और कभी-कभी सोयाबीन जैसी केवल दो या तीन फसलें ही सरकार द्वारा घोषित कीमतों पर खरीदी जाती हैं। बाकी निजी व्यापारियों द्वारा खरीदा जाता है, जिनके पास एमएसपी या उससे ऊपर खरीदने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।

पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक गुरविंदर सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि राज्य सरकार एक कृषि नीति पर काम कर रही है, जिसके तहत धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों की सुनिश्चित कीमतों पर विचार किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, "हम या तो निजी खरीददारों के साथ समझौता करेंगे या खुद फसल खरीदेंगे, लेकिन हम सरसों, मक्का, मूंग और कपास जैसी फसलों के लिए एक सुनिश्चित बाजार और कीमत देने की कोशिश कर रहे हैं।"

सिंह ने कहा, चालू विपणन सीजन में, विभाग ने पंजाब राज्य सहकारी आपूर्ति और विपणन महासंघ लिमिटेड यानी पंजाब मार्कफेड के माध्यम से एमएसपी पर मूंग की खरीद करने का फैसला किया है और 2024 में मक्का के लिए भी ऐसा ही किया जाएगा।

संकट की स्थिति में फसल विविधीकरण के प्रयास भी विफल हो जाते हैं, जब खराब या अनियमित मानसून की स्थिति में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चावल और गेहूं के भंडार को फिर से भरने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

प्रमुख फसल धान-गेहूं चक्र से दूर पंजाब के फसल पैटर्न में विविधता लाने के लिए पहली सिफारिशें 1980 के दशक के अंत में आईं। तब अर्थशास्त्री एसएस जोहल के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई थी।

पैनल की रिपोर्ट 1986 में सामने आई और सिफारिश की गई कि पंजाब के संसाधनों को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए धान-गेहूं की फसलों के तहत कम से कम 20 प्रतिशत क्षेत्र को अन्य फसलों में विविधीकृत किया जाना चाहिए।

पिछले कुछ वर्षों में, केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न सरकारें इस दिशा में अपनी-अपनी नीतियां लेकर आई हैं। लेकिन इन नीतियों के परिणाम नहीं दिखे हैं।

पिछले सप्ताह तक पंजाब में कपास की खेती का रकबा अब तक का सबसे कम 175,000 हेक्टेयर रहा, जबकि इस खरीफ सीजन में 300,000 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया था।

कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि किसानों को धान की फसल उगाना लाभदायक लगता है और इसलिए इसका क्षेत्रफल बढ़ रहा है। अब तक किए गए फसल विविधीकरण के प्रयास काम नहीं आए हैं।

उन्होंने कहा कि भले ही मक्का जैसी फसलों के लिए एमएसपी का आश्वासन दिया गया हो, सरकारों को चावल और गेहूं की तुलना में प्रति एकड़ उत्पादन के संदर्भ में इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता पर गौर करना चाहिए।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के चार अलग-अलग संस्थानों द्वारा पंजाब और हरियाणा में फसल प्रणालियों के विविधीकरण पर जून 2021 के नीति पत्र में कहा गया है कि मक्का से किसानों को औसतन 900 रुपए प्रति क्विंटल मिलते हैं।

चावल और मक्का के बीच वास्तविक मूल्य अंतर फसल विविधीकरण में भूमिका निभाने में सक्षम नहीं होने का एक प्रमुख कारक है।

एक रिसर्च पेपर ने चावल और गेहूं की फसल प्रणालियों के संबंध में एक प्रतिस्पर्धी विश्लेषण किया और देखा कि भले ही दोनों फसलों के लिए एमएसपी प्रदान किया जाता है, फिर भी चावल को मक्के की तुलना में मामूली लाभ होता है। चावल की बजाय 100,000 हेक्टेयर से मक्का खरीदने के लिए पंजाब में 89.35 करोड़ रुपए और हरियाणा में 24.56 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा।

हालांकि पेपर के लेखकों ने कहा कि चावल के अवशेष जलाने के कारण पानी, बिजली और प्रदूषण की लागत में बचत के कारण इस क्रॉस सब्सिडी को आसानी से हटाया जा सकता है। एमएसपी और सुनिश्चित खरीद के साथ-साथ मुफ्त बिजली और सब्सिडी वाले सबमर्सिबल पंप जैसी नीतियां भी प्रमुख फसलों गेहूं-धान को बढ़ावा देती हैं।

चालू खरीफ बुआई सीजन के दौरान डाउन टू अर्थ ने पंजाब में जिन कुछ किसानों से बात की, उन्होंने कहा कि खेतों में निर्बाध बिजली आपूर्ति के कारण उन्होंने धान की बुआई निर्धारित तिथियों से बहुत पहले शुरू कर दी थी।

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सरकारें किसानों को अलग-अलग कीमतें दे सकती हैं।

शर्मा ने कहा, “अगर हम अपने भूजल और बिजली को बचाना चाहते हैं, तो हमें उन किसानों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं से मेल खाना होगा, जो मुआवजे के साथ अन्य फसलों में विविधता ला रहे हैं। सरकार को वह कीमत चुकाने को तैयार रहना चाहिए और वास्तव में, पंजाब में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाना चाहिए।”

रिसर्च पेपर में कहा गया है कि हालांकि पंजाब में मक्के का शुद्ध फायदा चावल की तुलना के बराबर है, लेकिन किसान सकल फायदे पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।

इसके अलावा मंडियों के एक संगठित नेटवर्क न होना भी विविधीकरण के प्रयासों पर असर डालती है।

शोधकर्ता रंजिनी बसु लिखती हैं कि संस्थागत (बैंक आदि) ऋण के अभाव में, आढ़तियों या कमीशन एजेंटों के अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से ग्रामीणों को धान के बदले आसानी से ऋण मिल जाता है। लेकिन बासमती या बागवानी फसलों के लिए ऋण नहीं मिलता, क्योंकि सरकार की ओर से खरीद की गारंटी नहीं होती, इसलिए आढ़ती इन फसलों को खरीदना जोखिम भरा मानते हैं। बसु ने 2022 में प्रकाशित 'फ्राउट विद कॉन्टेशंस: क्रॉप-डायवर्सिफिकेशन अंडर एग्रेरियन डिस्ट्रेस इन इंडियन पंजाब' में यह बात लिखी है।

बसु कहती है कि सरकारों को फसल विविधीकरण के लिए योजनाएं बनाते हुए इन पहलुओं को भी ध्यान में रखना चाहिए।

विभिन्न प्रकार की उपज के लिए भंडारण स्थान की कमी भी फसल विविधीकरण के किसी भी प्रयास में बाधा डालती है। किसानों को धान और गेहूं के लिए अधिक भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि लगभग सारा सरप्लस धान और गेहूं राज्य सरकारें खरीद लेती हैं।

लेकिन इन दो फसलों के अलावा यदि किसान कोई फसल, खासकर फल या सब्जियां लगाते हैं तो उसके भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता होती है।

केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, फलों और सब्जियों की कटाई के बाद का नुकसान लगभग 20 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट पंजाब में कृषि विकास के लिए बनाई गई टास्क फोर्स ने तैयार की थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नुकसान के अलावा कटाई के बाद की हैंडलिंग और ग्रेडिंग, मानकीकरण और वैज्ञानिक पैकेजिंग की कमी जैसी प्रबंधन अक्षमताओं के कारण पंजाब में उच्च मूल्य वाली फसलों को अपनाने में प्रमुख बाधाएं हैं।

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