सरकार क्यों सीमित करना चाहती है किसानों के अधिकार?

किसान संगठनों का आरोप है कि बीज उद्योग को फायदा पहुंचाने और किसान अधिकारों को कम करने के लिए दस्तावेजों की परिभाषा में बदलाव किया जा रहा है।
सरकार क्यों सीमित करना चाहती है किसानों के अधिकार?
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“वह इंसान जो खेती-प्रबंधन करता है या फिर खेत का मालिकाना हक रखता है, वह किसान है।” यह सर्च इंजन गूगल की डिक्शनरी पर किसान (फार्मर) की मौजूद परिभाषा है। क्या सरकार की भी कोई परिभाषा है?  22 नवंबर, 2019 को राज्यसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान की परिभाषा पूछे जाने पर अपने लिखित जवाब में कहा कि यह राज्य का विषय है, केंद्र किसानों को हर संभव मदद देती है। इस बयान के साथ केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसान की कोई परिभाषा नहीं बताई। यह सवाल राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह ने पूछा था। किसानों की परिभाषा के बाद अब किसानों के अधिकारों को कमतर बताने वाला विवादित दस्तावेज हाल ही में जारी किया गया है। इसे कृषि मंत्रालय के अधीन पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवीएंडएफआर) ने जारी किया।

पीपीवी एंड एफआर की तरफ से हाल ही में वेबसाइट पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न यानी फ्रिक्वेंटली आस्क्ड क्विश्चन (एफएक्यू) बुकलेट अपलोड किया, जो कि आपत्ति विवाद के बाद समीक्षा के लिए हटा लिया गया है। एफएक्यू दस्तावेज में यह स्पष्ट किया गया कि सिर्फ छोटे और सीमांत किसान ही अपने “अधिकार” पर दावा कर सकते हैं। इसके बाद कई किसान संगठनों ने इसके लिए पीपीवीएंडएफआर को पत्र लिखकर दस्तावेज की भाषा पर आपत्ति जाहिर की है।

जीन कैंपेन की ओर से पीपीवी एंड एफआर को एफएक्यू बुकलेट के विरोध में भेजे गए आपत्ति पत्र में कहा गया है कि विशेषज्ञ समिति में कई जानकार शामिल होते हैं, इसके बावजूद एफएक्यू में किसान अधिकारों को कमतर करने वाली भाषा का इस्तेमाल जानबूझकर किया गया है। यह उनके अधिकारों पर हमला है। किसान की परिभाषा और किसानों के अधिकार की व्याख्या प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटीज एंड फॉर्मर्स राइट्स एक्ट, 2001 के विरुद्ध है। यह एक्ट सभी किसानों के अधिकारों का संरक्षण करता है। समूचे देश में किसी भी जगह का किसान अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकता है।

वहीं, किसान संगठनों का आरोप है कि बीज उद्योग को फायदा पहुंचाने और किसान अधिकारों को कम करने के लिए यह किया जा रहा है। एफएक्यू के दस्तावेज में प्रश्न संख्या 70 और 71 में किसानों की दी जाने वाली छूट (फार्मर एक्जेम्पसंश) की बात की गई है। भारत किसानों को कोई छूट नहीं देता बल्कि अधिकार देता है। छूट की भाषा विभिन्न देश की सरकारों के बीच का एक संगठन यूनियन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ न्यू वेराइटीज ऑफ प्लांट्स (यूपीओवी) करता है। जबकि भारत इस संगठन का सदस्य भी नहीं है।

जीन कैंपेन की अध्यक्ष डॉ सुमन सहाय ने कहा कि एफएक्यू बुकलेट में बहुत हद तक जानबूझकर बदलाव किया गया है। पीपीवीएफआर में किसानों के लिए मजबूत अधिकारों को हमेशा उद्योगों के जरिए चोट पहुंचाने की कोशिश होती है। दुर्भाग्यवश हमारे वैज्ञानिक बहुत ही आसानी से दूसरी तरफ से प्रभावित हो जाते हैं। एफएक्यू में की गई छेड़छाड़ उद्योग को रास आता है।

आपत्तियों के बाद एफएक्यू बुकलेट हटा लिया गया है वहीं, पीपीवी एंड एफआर के अध्यक्ष डॉ कुंबले विनोद प्रभु का कहना है कि यह तकनीकी कारणों से हुआ है। बुकलेट पर आई आपत्तियों की समीक्षा की जा रही है।

गुजरात के जतन ट्रस्ट ने भी विवादित एफएक्यू का हवाला देते हुए पेप्सिको इंडिया पर किसान अधिकारों के हनन का आरोप लगाया है। इस मामले में भारतीय किसान संघ ने पीपीवी एंड एफआर को पत्र भेज कर कंपनी के कानूनी अधिकारों को सीमित करने की मांग की है। संघ ने कहा है कि पीपीवी एंड एफआर कानून व पंजीकरण प्रमाणपत्र का इस्तेमाल करते हुए कंपनी लगातार किसान व उसके अधिकारों के खिलाफ काम कर रही है। ऐसे में कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

विभाग को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि गुजरात समेत उत्तर भारत में आलू पैदा करने वाले किसानों के खिलाफ पेप्सिको इंडिया की मनमानी जारी है। अप्रैल-मई 2019 में पेप्सिको इंडिया के जरिए किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराए जाने के बाद से आलू किसान काफी दुविधा में हैं क्या बोएं या न बोएं। इस तरह की दुविधा में किसान नहीं रह सकता इसलिए विरोध में सत्याग्रह के जरिए आलू किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे अपनी सुविधा के हिसाब से किसी भी बीज का इस्तेमाल शुरू करें।

भारतीय किसान संघ का कहना है कि पेप्सिको इंडिया किसानों से औपचारिक कांट्रेक्ट नहीं करती है, मौखिक तौर पर ही करार करती है। स्थानीय कोल्ड स्टोरेज को वेंडर बनाकर किसानों को परेशान करती है। इसके अलावा कंपनी ने खुद ही एफसी-5 वेराइटी आलू की आपूर्ति के लिए किसानों से इतर अपनी चेन बना रखी है। इसलिए वह अपने निर्धारित किसानों से आलू खरीद नहीं करती है। साथ ही किसानों को कम गुणवत्ता वाले आलू बताकर न सिर्फ परेशान कर रही है बल्कि उनके आलू भरे ट्रकों को भी वापस कर रही है। किसानों के विरोध के बीच अभी सरकार की तरफ से समीक्षा के अलावा कोई ठोस बयान नहीं आया है।

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