मनदीप पूनिया
हार्वेस्टर से गेहूं की कटाई के बाद अपने खेत में रिप्पर से फसल अवशेषों को पशुओं के चारे में तब्दील करने में जुटे किसान अमित पुनिया के चेहरे का वह नूर गायब है, जो आमतौर पर फसल कटाई के बाद किसानों के चेहरे पर पसरता है।
हरियाणा के झज्जर जिले के खुड़ण गांव के 24 वर्षीय इस नौजवान किसान ने 28 एकड़ में गेहूं लगाया था। इसमें 8 एकड़ में अपने खेत हैं, जबकि 20 एकड़ पट्टे पर लेकर खेती कर रहे हैं। इस बार कितनी पैदावार हुई, अमित कहते हैं, “दोसर कर दिया रामजी नै, इसबार”। इसका आशय है कि मौसम ने इस बार दोहरी मार की।
वह बताते हैं, “ये जो खेत देख रहे हैं, इसकी पैदावार को जनवरी में हुई बेहिसाब बारिश लील गई, क्योंकि इसमें कई दिनों तक बारिश का पानी खड़ा रहा। जो खेत बारिश झेल गए, वे मार्च की गर्मी में दम तोड़ गए। पिछले साल 60-65 मण (24-25 क्विंटल प्रति एकड़, 1 मण-40 किलो) तक पैदावार थी, अबके बस 35-40 मण (14-15 क्विंटल) गेहूं निकल रहा है”।
खेत में अमित का हाथ बंटा रहे 52 वर्षीय उनके पिताजी चांद सिंह ने बताया, “अबके हमारी लागत पूरी होनी मुश्किल है। 40 हजार रुपए के हिसाब से हमने खेत किराए पर लिए थे। डीजल, खाद, बीज, स्प्रे आदि सब कुछ इतना महंगा था। अब किसान यूनियन बोनस की मांग तो कर रही है। अगर सरकार बोनस दे दे तो थोड़ी राहत मिले।”
चांद सिंह की तरह करनाल के बल्ला गांव के किसान संदीप सिंह भी बीते 9 अप्रैल को उन किसानों में शामिल थे, जिन्होंने गेहूं की कम पैदावार के कारण सरकार से बोनस की मांग करते हुए दिल्ली-चंडीगढ़ हाइवे पर स्थित बसताड़ा टोल फ्री करवाया।
37 वर्षीय संदीप ने बताया, “अबके किसानों की पैदावार 20 से 30 प्रतिशत तक कम हुई है। इसीलिए हमने सरकार से गेहूं पर 500 रुपए प्रति क्विंटल बोनस देने के लिए प्रदर्शन किया था।”
संदीप सिंह ने इस बार 23 एकड़ में गेहूं और 2 एकड़ में सरसों की बुआई की थी। 5 एकड़ उनकी खुद की थी और 20 एकड़ जमीन 55 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से पट्टे पर ली थी। संदीप अपनी सारी फसल काटकर गांव की ही मंडी में बेच चुके हैं।
अपनी फसल का ब्यौरा देते हुए उन्होंने बताया, “इस बार गेहूं 15-16 क्विंटल ही निकला है। सीधा दस क्विंटल का नुकसान है। मार्च महीने में गर्मी पड़ने के कारण दाना हल्का रह गया।”
संदीप ने गेहूं ही नहीं सरसों की कम पैदावार की भी बात कही। उन्होंने बताया, “पिछले साल भी मैंने 2 एकड़ में सरसों लगाई थी, इस बार भी दो एकड़ में लगाई। पिछले साल पैदावार 11 क्विंटल प्रति एकड़ थी। इस बार सिर्फ 6 क्विंटल प्रति एकड़ हुई है, क्योंकि जनवरी और फरवरी में कई बार बारिश हुई। सरसों के साथ दिक्कत यह है कि जितनी बार उसपर बारिश पड़ती है, उतनी बार ही उस पर नया फूल आ जाता है. बार-बार फूल आने से पौधा कमजोर पड़ गया और वह फल में तब्दील सही से नहीं हो सका।”
संदीप ने जिस अनाज मंडी (बला गांव) में अपना गेहूं बेचा, उसके सुपरवाइजर ने बताया, “1 अप्रैल से खरीद सीजन चालू होता है। इस साल 1 से लेकर 17 अप्रैल तक 74 हजार क्विंटल गेहूं खरीदा जा चुका है, जोकि पिछले साल के मुकाबले कम है। पिछले साल 17 अप्रैल तक हम 89 हजार क्विंटल गेहूं की खरीद कर चुके थे।”
लगभग सभी किसानों के अनुसार, गेहूं की कम पैदावार का कारण मार्च महीने में पड़ने वाली तेज गर्मी है। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञानी डॉ सुरेन्द्र धनखड़ कहते हैं कि सामान्य तौर पर हरियाणा में गेहूं का फसलचक्र 150 से 160 दिनों का है। हरियाणा के किसान नवंबर में गेहूं लगाना चालू करते हैं। फसल अप्रैल के पहले सप्ताह के बाद पकनी शुरू हो जाती है और बैशाखी (13 अप्रैल) के बाद कटनी शुरू हो जाती है।
धनखड़ के मुताबिक, मौसम के लिहाज से अप्रैल के पहले सप्ताह के बाद गर्मी के मौसम की शुरूआत होती है, लेकिन इसबार मार्च महीने के दूसरे सप्ताह से ही तेज गर्मी पड़नी शुरू हो गई थी, और 5-6 डिग्री तक तापमान बढ़ गया था। इस स्थिति को हम अपनी भाषा में ट्रमिनल हीट स्ट्रैस बोलते है, जिसकी वजह से फसल समय से पहले ही पक जाती है और उसका दाना हल्का या पतला रह जाता है। पूरी तरह से अपना साइज नही ले पाता. गेहूं की बाली में दाने को सही ढंग से बनने के लिए 30 डिग्री तक का तापमान चाहिए होता है, लेकिन आधा मार्च महीना बीतते ही तापमान 35 डिग्री से उपर पहुंच चुका था, जोकि गेहूं की कम पैदावार का मुख्य कारण बना।
गेहूं की कम पैदावार से प्रभावित हुई किसान परिवारों की आय के कारण हरियाणा के किसान सरकार से लगातार बोनस दिए जाने की मांग कर रहे हैं। किसान यूनियनों के संयुक्त संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने 18 अप्रैल को प्रति क्विंटल 500 रुपए बोनस दिए जाने के लिए जिलेवार डीसी को ज्ञापन भी सौंपे हैं और बीती 9 अप्रैल को बोनस की मांग करते हुए प्रदेश के टोल टैक्स 3 घंटे के लिए बंद भी किए हैं।
किसान सभा के उपप्रधान इंद्रजीत सिंह ने बताया, “हाल के दशकों में ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप होने वाले जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन रहा है, जिसके कारण किसान बेमौसम बारिश, सूखा, तापमान में अत्यधिक वृद्धि, बाढ़, ओलावृष्टि आदि की मार झेल रहा है। महंगाई के कारण इस बार किसानों की लागत भी ज्यादा आई है. ऐसे में सरकार से हम किसान संगठनों की बोनस की मांग जायज है और किसान को राहत देने के लिए सरकार को यह करना ही चाहिए।”