बांग्लादेश में राजनीतिक संकट के कारण क्यों परेशान हैं राजस्थान के किन्नू उत्पादक किसान?

श्रीगंगानगर, अनूपगढ़, हनुमानगढ़ जिले मेंं बड़ी संख्या में किन्नू किसान हैं, जो बांग्लादेश में किन्नू निर्यात करते हैं
Kinnu Farmers
राजस्थान के बींझबायला गांव के एक बाग में खड़े किसान अपनी फसल दिखाते हुए। फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा
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बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और अनूपगढ़ जिलों के बागवान फिक्रमंद हैं। यह पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान से लगता हुआ राजस्थान का वह इलाका है, जिसकी पहचान मीठे और रसीले किन्नू के बागों के कारण हैं।

यहां से किन्नू का भारत के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में होता है, जिनमें बांग्लादेश प्रमुख है। बांग्लादेश में जब से राजनीतिक संकट खड़ा हुआ है, तब से किन्नू उत्पादक किसानों तथा निर्यात से जुड़े व्यापारियों में चिंता और अनिश्चतता का माहौल है।

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नौ बीघा बाग में किन्नू लगाने वाले बींझबायला गांव के बागवान अशोक जाखड़ कहते हैं कि किन्नू के निर्यात की वजह से किसानों को अच्छे भाव मिल पा रहे हैं। इससे किसान ज्यादा से ज्यादा बाग लगाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं लेकिन अगर निर्यात थम जाता है तो इसका हमें जबरदस्त नुकसान उठाना होगा।

इस तरह की चिंता जताने वाले जाखड़ अकेले बागवान नहीं हैं, क्षेत्र में हर किसान को यही फिक्र सता रही है। नेतेवाला के किसान दलीप गोदारा के खेत में 50 बीघा जमीन पर करीब बीस सालों से किन्नू का बाग है। गोदारा कहते हैं कि सरकार को किसी भी प्रकार किन्नू का निर्यात सुनिश्चित कराना चाहिए। निर्यात में ही किसानों की भलाई है।

रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान का यह इलाका नहरों से सरसब्ज है। यहां कपास, सरसों, गेहूं, गन्ना आदि फसलें तो हैं ही, फलों के बाग भी किसानों की आमदनी का जरिया हैं। वैसे तो यहां किन्नू, नीबू, माल्टा मौसमी, अमरूद, अनार, आंवला, बेर और खजूर के बाग हैं लेकिन सर्वाधिक बाग किन्नू के हैं। वर्तमान में श्रीगंगानगर और अनूपगढ़ जिलों में 12 हजार 79 हेक्टेयर में किन्नू के बाग हैं। हनुमानगढ़ जिले मेंं 4300 हेक्टेयर में किन्नू के बाग हैं।

इस इलाके में सन् 1927 में गंग नहर आने के साथ ही बागवानी शुरू हो गई थी, लेकिन पिछले करीब तीन दशकों में यहां बागवानी का खूब विस्तार हुआ है। किसान अपने बागों मेंं अमरूद, अनार, खजूर, आंवला और नींबू उपजा रहे हैं लेकिन किन्नू उनके लिए सर्वाधिक मुनाफा देने वाला फल रहा है। यहां पैदा होने वाले किन्नू का एक बड़ा हिस्सा चीन, रूस, बांग्लादेश, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, मलेशिया, सऊदी अरब और भूटान को निर्यात किया जाता है लेकिन बांग्लादेश में यह निर्यात सर्वाधिक है। निर्यात का सीजन दिसम्बर से फरवरी तक रहता है।

इस बार मौसम अनुकूल चल रहा है। किसी तरह का कीट प्रकोप बागों मेंं नहीं है। ऐसे में इस साल किन्नू की बम्पर फसल होने की उम्मीद है। उद्यान विभाग की उप निदेशक प्रीति बाला गर्ग बताती हैं कि पहले हमारा अनुमान तीन लाख 20 हजार मीट्रिक टन किन्नू उत्पादन होने का था लेकिन अब हमें लगता है किन्नू का उत्पादन चार लाख मीट्रिक टन से ऊपर चला जाएगा।

किन्नू के व्यापारी मूलचंद गेरा बताते हैं कि हम करीब तीस सालों से बांग्लादेश मेंं किन्नू निर्यात करते आ रहे हैं। हमारे देश में छोटे किन्नू पसंद नहीं किए जाते जबकि बांग्लादेश में छोटे किन्नू ही लोगों की पसंद हैं। ऐसे में जहां हम स्थानीय स्तर अस्वीकार्य छोटे आकार का किन्नू वहां खपा पा रहे हैं, वहीं निर्यात के कारण किसानों को किन्नू के अच्छे भाव मिलने लगे हैं। व्यापारी भी फायदे में रहे हैं। हर साल कुल उत्पादन का तीस फीसदी किन्नू वहां जाता है।

गेरा कहते हैं कि बांग्लादेश सरकार ने दो साल पहले किन्नू पर आयात शुल्क 28 प्रतिशत से बढ़ाकर 62 प्रतिशत कर दिया था,था, इससे निर्यात कम हो गया। हमारा वहां काफी पैसा भी अटक गया लेकिन व्यापारी फिर भी पर वहां किन्नू भेजना चाहते हैं। व्यापार चलता रहेगा तो अटका हुआ पैसा भी आ जाएगा।

करीब तीन दशकों से बांग्लादेश में किन्नू जा रहा है। बड़ी मुश्किल से यह व्यापारिक संबंध कायम हुए हैं। हम इन्हें खत्म नहीं करना चाहते।

श्रीगंगानगर के बागवान हरबंस सहू बताते हैं कि हमारे खेत में 1985-86 से किन्नू का बाग है। अभी हमारी 43 बीघा जमीन मेंं किन्नू का बाग है। हमें विदशों तक निर्यात के कारण ही किन्नू के अच्छे भाव मिल पाए हैं। अगर निर्यात बंद हो गया तो किसानों पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी।

सहू कहते हैं कि इस साल अच्छे उत्पादन की उम्मीद है और किसानों को अग्रिम सौदों मेंं जुलाई तक 28-30 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से भाव मिल रहे थे। हमें यह भाव 30-32 रुपए तक जाने की उम्मीद थी लेकिन बांग्लादेश में संकट के कारण यह भाव 22-24 रुपये प्रति किलोग्राम ही रह गए हैं।

स्थानीय किन्नू उत्पादक संघ के अध्यक्ष अरविंद गोदारा कहते हैं कि शेख हसीना सरकार के भारत से अच्छे संबंधों की वजह से वहां निर्यात बढ़ा, लेकिन दो साल पहले वहां आर्थिक तंगी के कारण आयात शुल्क काफी बढ़ा दिया गया पर फिर भी हम कम ही सही, मगर वहां किन्नू भेजते रहे। गोदारा कहते हैं कि हसीना सरकार के जाने के बाद हालात खराब हो गए हैं। व्यापारियों के करोड़ों रुपये वहां फंसे पड़े हैं।

पहले श्रीगंगानगर से ट्रकों में किन्नू बांग्लादेश भेजा जाता था। किसानों की मांग पर श्रीगंगानगर से बांग्लादेश में किन्नू के निर्यात के लिए सरकार ने दिसम्बर 2021 में स्पेशल ट्रेन भी चलाई। 15 बोगी वाली यह ट्रेन श्रीगंगानगर से बांग्लादेश के लिए रवाना हुई। यह ट्रेन एक ही साल चली। इसके बाद फिर से किन्नू ट्रकों से ही भेजा जाने लगा।

किन्नू के निर्यात पर वैक्सिंग, पैकिंग और ग्रेडिंग इकाइयों का भविष्य भी टिका है। अकेले श्रीगंगानगर जिले में करीब तीन दर्जन किन्नू वैक्सिंग, पैकिंग और ग्रेडिंग इकाइयां हैं, इनमें प्रत्येक इकाई को स्थापित करने में 35 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये की लागत आई है। इन इकाइयों में किन्नू को ग्रेड किया जाता है, फलों पर प्रिजर्वेटिव लगाया जाता है और निर्यात के लिए पैक किया जाता है।

श्रीगंगानगर मेंं एक वैक्स और ग्रेडिंग प्लांट के मालिक रजा अब्बास नकवी किन्नू कहते हैं कि हमारा तो काम ही निर्यात के बूते पर चलता है क्योंकि आसपास भेजे जाने वाले फलों पर तो वैक्सिंग की जरूरत ही नहीं होती। बांग्लादेश और अन्य दूरदराज भेजे जाने वाले फलों को ही गेड करने, प्रिजर्वेटिव करने और पैक करने की बदौलत ही हमारे व्यवसाय का अस्तित्व है।

नकवी कहते हैं कि केन्द्र सरकार को बांग्लादेश सरकार से आयात शुल्क घटाने और निर्यात जारी रखने के प्रबंध करने के संबंध मेंं बात करनी चाहिए।

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