वैशाली के पारू प्रखंड के किसान यूके शर्मा को इस बार 65 क्विंटल गेहूं हुआ है। गेहूं की कटाई से लेकर दौनी तक वह 32000 रुपए खर्च कर चुके हैं। इनमें से 25000 रुपए ही वह दे पाए हैं, 7000 रुपए देना अभी बाकी है। यूके शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया, "मैंने सोचा था कि सरकारी स्तर पर गेहूं की खरीद शुरू होगी, तो गेहूं बेचकर बाकी 7000 रुपए का भुगतान कर दूंगा, लेकिन अब तक गेहूं की खरीद शुरू नहीं हुई है।"
हालांकि, खुले बाजार में कुछ व्यापारी गेहूं खरीदने को तैयार हैं, लेकिन कीमत कम मिल रही है। यूके शर्मा ने कहा, "बाजार में व्यापारी 1600-1800 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा देने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में घाटा सह कर भला कैसे गेहूं बेच दें? इस बार वैसे भी बेमौसम बारिश के कारण उत्पादन 30-40 प्रतिशत घट गया है।"
बिहार सरकार ने 15 अप्रैल से प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी (पैक्स) के जरिए राज्य भर में गेहूं की खरीद शुरू करने की घोषणा की है। डाउन टू अर्थ ने 19 अप्रैल को कैमूर, बक्सर, सारण, सीतामढ़ी, मधेपुरा समेत एक दर्जन जिलों के किसानों से बात कर जानने की कोशिश की कि उनके यहां सरकारी स्तर पर गेहूं की खरीद शुरू हुई है कि नहीं। इस बातचीत में सभी किसानों ने कहा कि उनके यहां सरकारी स्तर पर गेहूं की खरीद शुरू नहीं हुई है। फूड कारपोरेशन आॅफ इंडिया (एफबीआई) के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं। एफसीआई ने मौजूदा साल में अब तक (17 अप्रैल तक) गेहूं की खरीद का जो आंकड़ा पेश किया है, उसके मुताबिक, पंजाब, यूपी, एमपी और राजस्थान में गेहूं की खरीद चल रही है, लेकिन बिहार में शून्य खरीद हुई है।
मुजफ्फरपुर के औराई ब्लाक के किसान तेजनंदन ठाकुर ने इस बार डेढ़ बीघा में गेहूं की खेती की थी। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया, "इस बार लगभग 12 क्विंटल गेहूं हुआ है, लेकिन यहां पैक्स के जरिए गेहूं की खरीद अभी शुरू नहीं हुई है। फिलहाल गेहूं की सरकारी खरीद शुरू होने का इंतजार करने के सिवा कोई उपाय नहीं है।"
गौरतलब है कि बिहार में 8 हजार से कुछ ज्यादा पैक्स हैं, जो बिहार की आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से कम है। बहुत सारे ऐसे किसान हैं, जिनके लिए खरीद केंद्र तक पहुंचना मुश्किल काम है। वहीं, हाल के कुछ वर्षों में बिहार में गेहूं खरीद केंद्रों में भी गिरावट आई है। बताया जाता है कि साल 2015-2016 में बिहार में गेहूं खरीद केंद्रों की संख्या 9000 से अधिक थी, जो घटकर 7000 रह गई। खरीद केंद्र कम होने, देर से सरकारी खरीद और जटिल प्रक्रिया के कारण बहुत किसान ऐसे भी हैं, जो खरीद केंद्रों में जाने के बजाय कम कीमत पर स्थानीय व्यापारियों को गेहूं बेचना पसंद करते हैं।
पटना के बाढ़ प्रखंड के किसान सत्येंद्र सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया, "हमलोग नून-तेल जैसी घरेलू जरूरतें अनाज बेचकर पूरी करते हैं। सरकारी खरीद शुरू नहीं होने के चलते मुझे 1800 रुपए प्रति क्विंटल की दर से 10 क्विंटल गेहूं बनिया को बेचना पड़ा। पैक्स तक पहुंचने और गेहूं बेचने में हजार तरह की दिक्कतें हैं। कौन इस झमेले में पड़े।"
डाउन टू अर्थ ने कई पैक्स अध्यक्षों से बात की, तो उन्होंने लाकडाउन के साथ ही सरकार पर बकाया राशि का भुगतान नहीं होने को जिम्मेदार ठहराया। मोकामा के एक पैक्स के अध्यक्ष ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "पिछले साल का पैसा सरकार पर बाकी है। सरकार ने पैसा नहीं दिया, हमलोग किसानों को भी नहीं दे पाए। इस वजह से किसानों को पैक्स पर भरोसा नहीं है। दूसरी वजह ये है कि लाकडाउन के कारण किसान खरीद केंद्र तक आने से कतरा रहे हैं।" उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने सरकार ने पैक्स के जरिए गेहूं खरीद की घोषणा कर दी है, लेकिन अभी तक इसको लेकर कोई लिखित आदेश उन तक नहीं पहुंचा है।
गेहूं खरीद के आंकड़े भी बताते हैं कि किसान सरकार को गेहूं बेचना नहीं चाहती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018-2019 में बिहार में जितना गेहूं का उत्पादन हुआ था, उसका महज 0.29 प्रतिशत हिस्सा ही सरकार खरीद पाई थी जबकि साल 2019-2020 में महज 0.05 फीसद गेहूं की ही सरकारी खरीद हुई थी। एफसीआई से मिले आंकड़े बताते हैं कि साल 2019-2020 में बिहार से महज 0.03 लाख मीट्रिक टन गेहूं की ही अधिप्राप्ति हो पाई थी, जो एक दर्जन शीर्ष गेहूं उत्पादक राज्यों में हिमाचल प्रदेश के सभी बाद सबसे कम था।