केंद्र व राज्य सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद गेहूं का संकट बना हुआ है। खासकर खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा की जाने वाली गेहूं की खरीद का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है।
गेहूं की सरकारी खरीद 19 जून 2022 तक केवल 187.83 लाख टन ही हो पाई है। पंजाब में सबसे अधिक 96.47 लाख टन ही खरीद हो पाई है, जबकि पिछले साल 132.22 लाख टन हुई थी। पिछले 10 साल में सबसे कम खरीद हुई है।
हरियाणा में केवल 41.61 लाख टन ही गेहूं खरीदा जा सका है, जबकि पिछले साल 84.93 लाख टन खरीद हुई थी। सबसे कम गेहूं उत्तर प्रदेश में खरीदा गया है। यहां पिछले साल 56.41 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, लेकिन इस बार 3.31 लाख टन ही गेहूं खरीदा जा सका है।
मध्य प्रदेश में भी काफी कम गेहूं खरीदा गया है। पिछले साल यहां 128.16 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, लेकिन इस बार केवल 46.03 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है। राजस्थान में पिछले साल 23.40 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, लेकिन इस बार 19 जून तक केवल 9 हजार टन गेहूं खरीदा गया है।
गेहूं की सरकारी खरीद में कमी के तीन बड़े कारण गिनाए जा रहे हैं। एक तो यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद गेहूं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ने के कारण व्यापारी किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत पर गेहूं खरीद रहे हैं। दूसरा, इस मार्च और अप्रैल में भारी गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है और तीसरा, पिछले साल सरसों की फसल की कीमत अच्छी मिलने के कारण किसानों ने गेहूं की बजाय बड़ी तादात में सरसों की बुआई की।
हालात यह बन गए कि उत्तर प्रदेश में जब सरकारी खरीद काफी कम हुई तो सरकार ने कई कदम उठाए, लेकिन वे कारगर सिद्ध नहीं हुए। कम खरीद होते देख राज्य सरकार ने मोबाइल खरीद की भी प्रक्रिया शुरू की, जिसमें किसानों से कहा गया कि वे यदि सरकार को गेहूं बेचना चाहते हैं तो सरकार अपने उनके गांव में जाकर खरीदने को तैयार है। बावजूद इसके किसानों ने इच्छा जाहिर नहीं की। उत्तर प्रदेश सरकार ने बेहद कम खरीद होते देख एक बार फिर से समय सीमा बढ़ा दी है। अब उत्तर प्रदेश में 30 जून तक गेहूं की खरीद होगी।
दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश में गेहूं खरीद कौन रहा है, इसको लेकर कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। क्योंकि किसानों से स्थानीय आढ़ती ही संपर्क कर रहे हैं और उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक रेट दे रहे हैं। इतना ही नहीं, जैसे ही गेहूं उठाया जाता है, उसके साथ ही भुगतान कर दिया जाता है, जबकि सरकारी केंद्र पर गेहूं बेचने से किसान को भुगतान पांच से दस दिन के भीतर किया जाता है।
भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक बताते हैं कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद बनी स्थिति को देखते हुए व्यापारियों ने किसानों से ज्यादा कीमत पर गेहूं खरीदना शुरू कर दिया था, लेकिन बाद में सरकार ने निर्यात पर रोक लगा दी तो व्यापारियों ने खरीद बंद कर दी थी और कीमत एमएसपी से कम हो गई थी, तब किसानों ने सरकार को बेचना शुरू कर दिया था, लेकिन उसके बाद फिर से व्यापारियों ने अधिक कीमत पर गेहूं खरीदना शुरू कर दिया, जिसके चलते किसानों ने सरकार को बेचना बंद कर दिया।
दिलचस्प बात यह है कि सरकार अभी यह भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर रही है कि आखिर गेहूं के उत्पादन में कितनी कमी आने की संभावना है। सरकार ने फरवरी 2022 में दूसरा अग्रिम अनुमान जारी किया था, जिसमें देश में 1113 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन मई में जारी अग्रिम अनुमान में केवल 5.6 प्रतिशत उत्पादन कम रहने की आशंका जताई गई, जबकि जानकारों का मानना है कि उत्पादन में 15 से 20 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है। मलिक भी कहते हैं कि उत्पादन के अनुमान को लेकर सरकार को पारदर्शिता बरतनी चाहिए।
उधर, 10 जून 2022 को केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से एक बयान आया, जिसमें माना गया है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद सरकारी खरीद के लिए गेहूं की आवक कम रही, लेकिन सरकार ने इसमें भी अपनी तारीफ ढूंढ़ ली और कहा, "देश भर में गेहूं किसानों को उच्च बाजार दरों से लाभ हुआ, क्योंकि ज्यादातर/अधिकांश किसानों ने अपनी उपज को एमएसपी की तुलना में उच्च बाजार दर पर निजी व्यापारियों को बेचा। जो कि किसानों के कल्याण के लिए सरकार की नीति का मुख्य उद्देश्य है।"
इस बयान में मंत्रालय की ओर से कहा गया, "यह पाया गया है कि इस मौसम में किसानों ने अपनी उपज औसतन 2150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेची है और इस तरह एमएसपी की तुलना में खुले बाजार में अपनी उपज बेचने पर उन्हें अधिक कमाई हुई है। इसी तरह, 444 लाख एमटी की अनुमानित खरीद पर, किसानों ने 2150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से औसतन लगभग 95,460 करोड़ रुपये कमाया होगा, जबकि एमएसपी पर 2015 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से कमाई 89,466 करोड़ रुपये ही हुई होती। इस प्रकार गेहूं किसानों को एमएसपी की तुलना में कुल मिलाकर 5994 करोड़ रुपये अधिक कमाई हुई होगी।"
हालांकि सरकारी खरीद न होने के कारण खाद्य सुरक्षा संकट में पड़ गई है। सरकार ने सबसे पहले इस रबी सीजन में 444 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन जब किसानों ने गेहूं व्यापारियों को बेचना शुरू किया और साथ ही मार्च में हुई भारी गर्मी की वजह से गेहूं के उत्पादन में गिरावट की बात सामने आई तो सरकार ने मई के पहले सप्ताह में गेहूं खरीद के लक्ष्य में संशोधन करते हुए चालू मार्केटिंग सीजन में 195 लाख टन कर दिया। यह लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाया है और अभी लगभग 187.88 लाख टन ही गेहूं खरीदा जा सका है।
चार मई 2022 को जब सरकार ने गेहूं खरीद का लक्ष्य 195 लाख टन तय किया था, उस समय दावा किया था कि 1 अप्रैल 2023 को सरकार के पास 80 लाख टन गेहूं होगा, जबकि रिजर्व स्टॉक 75 लाख टन होना चाहिए। लेकिन जैसा कि अब तक के आंकड़े बता रहे हैं कि अगर सरकार आने वाले दिनों में 190 लाख टन तक नहीं खरीद पाई तो सरकार के समक्ष रणनीतिक संकट पैदा हो सकता है।