ओलावृष्टि से फसल को भारी नुकसान, लेकिन क्या किसानों को मिल पाएगा मुआवजा

ओलावृष्टि व बारिश से फसल नष्ट हो गई, सरकार ने मुआवजे की घोषणा भी कर दी, लेकिन फसल नुकसान के आकलन का तरीका नहीं बदला
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बरसात और ओलावृष्टि से खराब हुई फसल। फोटो: बलिराम सिंह
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बरसात और ओलावृष्टि से खराब हुई फसल। फोटो: बलिराम सिंह
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मार्च के दूसरे सप्ताह में बेमौसमी मूसलाधार बारिश, ओलावृष्टि और बिजली गिरने से उत्तर प्रदेश में जानमाल का नुकसान हुआ है। 30 से अधिक लोगों की मौत की खबर है, जबकि फसल को भारी नुकसान हुआ है।

मिर्जापुर के विकास खंड छानबे के जोपा गांव के रामाश्रय सिंह की 30 बीघा की गेंहू, चना, मसूर व मटर की फसल बर्बाद हो गई है। वहीं, इंद्रेश बहादुर सिंह की 12 बीघ फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। सुल्तानपुर के जयसिंह पुर के किसान अमित सिंह की 24 बिघा में बोई गई गेंहू की फसल ओलावृष्टि की वजह से पूरी तरह से लेट गई है। अर्थात आधी से ज्यादा फसल बर्बाद हो जाएगी।

हालात की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के सभी जिलों के जिलाधिकारियों को एक सप्ताह के अंदर क्षतिग्रस्त फसलों का निरीक्षण कराकर मुआवजा राशि देने का निर्देश दे दिया, क्या यह संभव है। जिन किसानों की फसल बर्बाद हो चुकी है, उन्हें बिलकुल भी भरोसा नहीं है कि उनका जितना नुकसान हुआ है। उतनी भरपाई हो जाएगी।

भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के मीडिया प्रभारी धर्मेंद मलिक कहते हैं कि वर्तमान में प्राकृतिक आपदा के दौरान लेखपाल गांव में जाकर क्षतिग्रस्त फसलों का जायजा लेता है और रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजता है। लेकिन वर्तमान में लेखपालों की कमी और वैज्ञानिक तरीका न अपनाने की वजह से किसानों को ठीक ढंग से मुआवजा राशि नहीं मिल पाती है।

उत्तर प्रदेश लेखपाल संघ के प्रदेश महामंत्री ब्रजेश श्रीवास्तव भी मलिक जैसी बात करते हैं। वह कहते हैं कि सरकार की मुआवजा पॉलिसी ठीक नहीं है। ओलावृष्टि अथवा मूसलाधार बारिश जैसी प्राकृतिक आपदा के दौरान जिला अथवा गांव स्तर पर मुआवजा का निर्धारण होता है। यदि किसी गांव के 35 प्रतिशत से कम किसानों की फसल नुकसान हुई तो उन्हें मुआवजा नहीं मिलेगा। जबकि नियम ये होना चाहिए कि किसी एक किसान की भी फसल नुकसान हुई तो उसे मुआवजा मिलना चाहिए।

वह कहते हैं कि प्रदेश में 8 हजार लेखपालों की कमी है। एक गांव में ठीक से सर्वे के लिए लेखपाल को 15 दिन का समय चाहिए, लेकिन एक दिन में ही रिपोर्ट मांगी जाती है, जो कि व्यावहारिक नहीं है। सरकार को वैज्ञानिक तकनीकी का भी इस्तेमाल करना चाहिए। सैटेलाइट का सहारा लेना चाहिए।

हरदोई कुरसठ क्षेत्र के किसान परिवार से आने वाले आईटी विशेषज्ञ प्रतिवेंद्र सिंह कहते हैं कि प्राकृतिक आपदा से क्षतिग्रस्त फसलों के आंकलन के लिए सैटेलाइट सिस्टम का इस्तेमाल होना चाहिए। इसके अलावा ऐप के जरिए किसानों को अपने क्षतिग्रस्त फसल का फोटो सरकार को भेजने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। ड्रोन के जरिए भी फसलों  का सही ढंग से आंकलन कर सकते हैं।

आगे पढ़ें: बिहार में कैसे मिल रहा है मुआवजा

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