बेमौसमी बारिश से कमजोर हुआ गेहूं का दाना, उत्पादन में गिरावट

जनवरी से मार्च के दौरान बेमौसमी बारिश व ओलावृष्टि का असर अब देखने को मिल रहा है
Photo: SAYANTONI PALCHOUDHURI
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अनिल कुमार 

पश्चिम उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले का किसान ऋषिपाल गेहूं घर लाया तो माथा पकड़कर बैठ गया। गेहूं का दाना कमजोर था और प्रति बीघा करीब आधा गेहूं ही निकल पाया, जबकि लागत हर साल की तरह लगाई। कुछ यही हालत प्रतापगढ़ के विनोद सिंह की है। गेहूं की क्वालिटी सही नहीं होने के कारण व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 200 रुपये कम का भाव लगा रहा है। जबकि बरेली जिले के किसान तेजपाल ने पांच बीघे में गेहूं की फसल लगाई थी, लेकिन कटी-कटाई फसल खेत में ही रह गई। गेहूं का दाना कमजोर और काला है, इसलिए तेजपाल इस बात से चिंतित है कि फसल का खरीदार मिलेगा या नहीं। 

ऐसे हालात केवल इन तीन किसानों के ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि उन राज्यों के किसानों की भी है, जहां पिछले महीनों के दौरान बारिश और ओलावृष्टि हुई। इसका असर अब देखने को मिल रहा है। यह स्थिति तब देखने को मिल रही है, जबकि किसानों को अधिक खाद व रसायन का इस्तेमाल भी करना पड़ा। बावजूद इसके, फसल का उत्पादन कम हुआ। 

इस बात का पता चलने पर उत्तर प्रदेश सरकार ने तो राज्य का उत्पादन लक्ष्य ही कम कर दिया है। केंद्र को भेजी अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया है कि प्रदेश में फरवरी व मार्च में असामायिक वर्षा एवं ओलावृष्टि से रबी की फसलों, विशेष कर दलहनी एवं तिलहनी फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। राज्य सरकार ने गेहूं में लगभग 2.5 प्रतिशत और दलहन व तिलहनी फसलों में 10 से 12 प्रतिशत के नुकसान का अनुमान जताया है। 

दरअसल, इस बार दिसंबर से मार्च के दौरान लगातार खराब मौसम ने गेहूं की उत्पादकता पर जबरदस्त असर डाला इसीलिए सरकारों को भी उत्पादन के बढ़े आंकड़ों को दुरुस्त करने को मजबूर होना पड़ा। मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी में बारिश ने एक दशक का रिकॉर्ड तोड़ा। दिसंबर में भी सर्वाधिक आठ दिन शीत लहर और बारिश ने रौद्र रूप दिखाया। आंकड़ों के मुताबिक भारत में जनवरी माह में सामान्य से 63 फीसदी अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई। मध्य भारत इसमें सबसे आगे रहा यहां 84 फीसदी अधिक बारिश हुई। उत्तर पश्चिम भारत में 70 और पूर्वी-पूर्वोत्तर भारत में यह प्रतिशत 51 रहा। 

इतना ही नहीं, 1 से 19 मार्च के दौरान देश भर में सामान्य से 77 फीसदी अधिक बारिश हुई। देश के लगभग 381 जिलों (57 फीसदी) में सामान्य से 60 फीसदी बारिश हुई।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूसा के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ जेपी डबास कहते हैं कि बारिश आधारित इलाकों में तो रबी की फसल को इसका फायदा हुआ लेकिन पश्चिम यूपी या आसपास के इलाकों में इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। लगातार बारिश से न तो खाद का अपेक्षित गुण लग पाया और न ही कीटनाशक का। नतीजतन ऐसे इलाकों में गेहूं की फसल कमजोर हुई। जिन इलाकों में तेज हवाएं चलीं और ओलावृष्टि हुई उसका भी नुकसान फसल और किसान दोनों को हुआ।

उत्तर प्रदेश किसान समृद्धि आयोग के सदस्य धर्मेंद्र मलिक भी इत्तेफाक रखते हैं। उनका मानना है कि खराब मौसम की वजह से गेहूं की नर्सरी में प्रस्फुटन नहीं हो पाया। परिणामस्वरूप गेहूं की बाली कमजोर हुई और उसका उत्पादन पर जबरदस्त असर पड़ा है। उनका मानना है कि 40 से 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर निकलने वाला गेहूं इस बार 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर निकल रहा है। इसलिए आंकड़ों को एकत्र कर सरकार से गेहूं किसानों को अलग से प्रति कुंतल के हिसाब से आर्थिक मदद की मांग की जाएगी।

इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के अध्यक्ष एवं गुरू गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के पूर्व डीन एन. रघुराम कहते हैं कि यदि पिछले साल की तरह इस साल भी फसल बोआई का क्षेत्रफल समान है और खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल भी उतना ही किया गया है, बावजूद इसके उत्पादन कम हो रहा है तो इसका मतलब है कि बेमौसमी बारिश या अचानक तेज गर्मी ने फसल की ग्रोथ पर बुरा असर डाला है।
उधर, उत्‍तर प्रदेश की मृदा परीक्षण अभियान की रिपोर्ट में कहा गया कि खेतों को स्वस्थ रखने वाला जीवांश कार्बन मिट्टी से गायब हो चुका है। यह हालत एक-दो जिलों की नहीं बल्कि सभी 75 जिलों की है। जहां की मिट्टी में बमुश्किल से 0.25 प्रतिशत ही जीवांश कार्बन है जबकि मानक 0.8 होना चाहिए। इसका नतीजा ये निकल रहा है कि खेत में जो खाद और पानी लगाया जा रहा है वह व्‍यर्थ जा रहा है।

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