किसान आंदोलन: फिर नहीं निकला हल, सरकार-किसान संगठन अपनी जगह से नहीं हिले

किसान संगठनों ने साफ किया कि कृषि कानूनों की वापसी के बिना वे घर वापस नहीं जाएंगे
A delegate during the talks January 8, holds a placard which says in Gurmukhi: We will die or we will win. Photo: @ManuManjit1 / Twitter
A delegate during the talks January 8, holds a placard which says in Gurmukhi: We will die or we will win. Photo: @ManuManjit1 / Twitter
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किसान संगठनों और सरकार के बीच बातचीत का एक और दौर बेनतीजा रहा। सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि एक बार फिर से 15 जनवरी को समाधान के लिए दोनों पक्ष बैठेंगे।

बैठक के बाद सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सरकार द्वारा तीनों कृषि सुधार कानूनों पर बिन्दुवार चर्चा करने का अनुरोध किया गया, जिस पर किसान संगठनों ने अपनी असहमति जताई और कानून को वापस करने की मांग की। इस पर कृषि मंत्री ने कहा कि कानून से संबंधित प्रावधान या बिन्दु, जिन पर किसान संगठन असहमत हों या उन्हें कोई आपत्ति हो तो उसे सरकार के संज्ञान में लाया जा सकता है, तब उन पर यथोचित विचार करके संशोधन किया जा सकता है। लेकिन किसान संगठन तैयार नहीं हुए।

आठ जनवरी को विज्ञान भवन में हुई बैठक में 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तौमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल, वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोमप्रकाश उपस्थित हुए।

उधर किसान नेताओं का कहना है कि बैठक में कृषि मंत्री ने कहा कि यह कानून केवल पंजाब-हरियाणा के लिए नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए है, जिसके जवाब में किसान नेताओं ने उनसे कहा कि खेती-किसानी राज्य सरकारों का मसला है, केंद्र को इस तरह दखल नहीं देना चाहिए।

बैठक के दौरान ही एक किसान नेता ने एक नोट बनाकर दिखाया, जिसमें लिखा था कि मरेंगे या जीतेंगे।

वहीं, एक किसान नेता ने यह तक कह दिया कि एक ओर सरकार बातचीत कर रही है तो दूसरी ओर सरकार के मंत्री यह दावा कर रहे हैं कि तीनों कानून उचित हैं, जबकि हम लोग इसका विरोध कर रहे हैं, इसलिए इस तरह बैठक करने का कोई औचित्य नहीं है।

किसान संगठनों का कहना है कि बेशक सरकार से अगली दौर की बातचीत 15 जनवरी को होगी, लेकिन उनकी 26 जनवरी की ट्रेक्टर परेड की तैयारियां जारी रहेंगी।

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