किसान कौन है? सरकार 2019 के दिसंबर महीने में राज्यसभा में इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई थी और कृषि को राज्य का मामला बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया था। अब करीब 9 महीने बाद सरकार ने राज्यसभा में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि आखिर किसान किसे कहा जाएगा। सरकार ने इसके लिए कोई नई परिभाषा नहीं बनाई है बल्कि पहले से ही मौजूद एक आधिकारिक और विस्तृत परिभाषा को ही स्वीकार लिया है। लेकिन अब दुविधा यह है कि सरकार को अभी यह नहीं मालूम है कि खेती की जमीन का उत्तराधिकार रखने वालों के अलावा भूमि-हीन और अन्य श्रेणियों में देश में कुल कितने किसान हैं?
देश में कृषि और उससे जुड़े रोजगार को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और योजनाओं का दायरा अब भी खेती की जमीन का अधिकार रखने वालों के लिए ही है। सरकारी परिभाषा में बताये गए कुल किसानों की गिनती अगर होती तो बड़ी योजनाओं की छोटाई का अंदाजा लग जाता।
लोकसभा में मार्च, 2020 में एक सवाल पर सरकार ने स्पष्ट तौर पर अपने लिखित जवाब में कहा है कि ऐसा कोई विशिष्ट सर्वे/जनगणना नहीं किया गया है जिससे देश में भूमिहीन किसानों की सटीक संख्या बताई जा सके। सिर्फ पूरी तरह से पट्टे पर दिए गए खेतों का ही आंकड़ा उपलब्ध है। 2015 कृषि जनगणना के मुताबिक देश में 531,285 पट्टे हैं, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, हरियाणा, दमन-दीव, दिल्ली, लक्षदीप, मेघालय, मिजोरम का आंकड़ा नहीं है।
किसान कौन है?
राज्यसभा में 23 सितंबर, 2020 को एमपी सतीश चंद्र दुबे के सवाल पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जवाब दिया कि “राष्ट्रीय किसान नीति, 2007 के मुताबिक “एक व्यक्ति जो सक्रिय तौर पर आर्थिक अथवा आजीविका गतिविधियों के लिए फसल उत्पादन करता है और अन्य प्राथमिक कृषि उत्पादों का उत्पादन करता है, और इसमें सभी भू-जोत व खेती, कृषि मजदूर, बटाईदार, किराएदार, पॉल्ट्री व पशु पालक, मधुमक्खी पालक, बागवानी, चरवाहे, गैर व्यावसायिक बागान मालिक, बागान मजदूर, सेरीकल्चर, वर्मीकल्चर और कृषि-वानिकी से जुड़े व्यक्ति शामिल हैं। साथ ही इसमें आदिवासी परिवार या वे व्यक्ति भी शामिल है जो खेती के साथ ही संग्रहण आदि का काम करते हैं। या फिर माइनर व नॉन टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस का इस्तेमाल व बिक्री करते हैं।“
कौन हैं विशेष किसान ?
राष्ट्रीय किसान नीति के निर्णायक प्रारूप दस्तावेज को प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) ने अक्तूबर 2006 में सरकार को सौंपा था, जिसे 11 सितंबर, 2007 को स्वीकृति मिली। इस नीति में विशेष किसानों के संरक्षण औऱ संवर्धन के लिए भी कहा गया है।
राष्ट्रीय किसान नीति, 2007 के मुताबिक इस विशेष श्रेणी वाले किसानों की सूची में सबसे पहला नाम आदिवासी किसानों का है। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि किसानों में सबसे हाशिए पर और लाभ से वंचित तबके का किसान इस श्रेणी में है जो कि मुख्य रूप से वन और पशुपालन से आजीविका चलाता है। इनकी भी संख्या स्पष्ट नहीं है।
कृषि मामलों के जानकार देविंदर शर्मा डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि किसान सिर्फ परिभाषा तक सीमित नहीं होना चाहिए। कृषि के सभी क्षेत्रों से लोगों को लाभार्थियों की सूची में भी शामिल होना चाहिए। पीएम कृषि सम्मान निधि को अगर देखा जाए तो इसमें सिर्फ 14.5 करोड़ खेती की जमीन का उत्तराधिकार रखने वाले परिवारों को ही लाभार्थी की सूची में शामिल किया गया है। यदि बटाईदार और किराएदार किसान भी इसमें शामिल हों तो किसानों की संख्या का यह आंकड़ा काफी बड़ा हो सकता है।
सरकार का स्पष्ट कहना है कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना में किराएदार या बटाईदार किसानों को शामिल नहीं किया गया है। वहीं 18 सितंबर तक सरकार ने 102,171,345 किसानों तक ही इस योजना का लाभ पहुंचाया है। सरकार का कहना है कि भूमिहीन, किराएदार और बटाईदार किसानों के लिए मनरेगा के जरिए सहायता दिया जा रहा है। वे इस योजना में शामिल नहीं हैं। सरकार का कहना है कि उनकेे जरिये मॉडल एग्रीकल्चरल लैंड एक्ट 2016 राज्यों को लागू करने के लिए कहा गया है।
यह एक्ट लागू करना राज्यों पर निर्भर है लेकिन सवाल यह है कि ऐसे किसानों की असल संख्या क्या है? जानकार यह मानते हैं कि एग्रीकल्चर सेंसस का आंकड़ा किसानों के संख्या की सही तस्वीर नहीं पेश करता है। खासतौर से किराए या बटाईदार किसानों के बारे में इससे सटीक संख्या की जानकारी नहीं मिलती है। वहीं, एनएसएसओ के आंकड़े एग्रीकल्चर सेंसस के मुकाबले थोड़े ठीक होते हैं, जबकि एनएसएसओ के आखिरी आंकड़े 2013 के ही उपलब्ध हैं।
ज्यादातर परिवार लीज के बारे में जानकारी नहीं देते हैं क्योंकि कई राज्यों में लीज अवैध माना जाता है। ऐसे में अभी तक कोई ऐसा अध्ययन या सर्वे नहीं हो पाया है जो किराए और बटाईदारी के भूमिहीन किसानों की वास्तविक स्थितियां सामने रखे।
किसानों की विस्तृत परिभाषा भले ही सभी को किसान होने का मान देती हो लेकिन योजनाओं और नीतियों के लाभ से वंचित जरूरतमंद किसान वंचित तबके में ही खड़े हैं।