ग्राउंड रिपोर्ट: क्या सचमुच किसानों की आमदनी हो पाएगी दोगुनी?

प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हर जिले के दो गांवों को गोद लिया है। क्या इन गांवों में आमदनी बढ़ी या दोगुनी हुई है?
फोटो : विकास चौधरी
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8 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के शहर बरेली में किसान रैली को संबोधित करते हुए कहा कि उनका सपना है कि जब देश साल 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो तो किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। फरवरी 2021 में इस बात को कहे पांच साल हो जाएंगे। लेकिन सरकार के अपने ही आंकड़े बताते हैं कि कृषि विकास दर जिस गति से चल रही है, उससे नहीं लगता कि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद ही कुछ विशेषज्ञों का अनुमान था कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए 14.86 फीसदी सालाना कृषि विकास दर की जरूरत पड़ेगी। लेकिन बाद में यह स्पष्ट किया गया कि सरकार किसानों की आमदनी का आधार वर्ष 2015-16 मानेगी और कृषि वर्ष 2022-23 में यह लक्ष्य हासिल किया जाएगा। इसका मतलब था कि सरकार को सात साल का समय मिलेगा। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने मार्च 2017 में एक पॉलिसी पेपर जारी किया, जिसमें कहा गया कि सात साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कृषि क्षेत्र की सालाना विकास दर 14.86 प्रतिशत की नहीं, बल्कि 10.4 प्रतिशत की जरूरत पड़ेगी।

इस पॉलिसी पेपर में रमेश चंद ने कहा था कि 2001 से 2014 के बीच कृषि उत्पादन में 3.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। इस हिसाब से अगले सात साल (2014 से 2021 तक) में कृषि से होने वाली आय में 18.7 प्रतिशत वृद्धि रहेगी। इसलिए सरकार किसानों की दोगुनी आमदनी का लक्ष्य हासिल करने के लिए पशुपालन से होने वाली आय को भी शामिल करना चाहती है, इससे किसानों की आमदनी में 27.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। रमेश चंद के मुताबिक, पशुपालन और डेरी की आमदनी को भी बढ़ाया जाए तो सब मिलाकर 2025 तक किसानों की आमदनी में 107.5 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है। लेकिन अब तक क्या कुछ हुआ है? हकीकत क्या है?

15 सितंबर 2020 को लोकसभा में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सांसद मारगनी भरत और टीआरएस पार्टी के सांसद रणजीत रेड्डी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जानकारी दी कि किसानों की आय का आकलन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के द्वारा किया जाता है। एनएसएसओ ने पिछला अनुमान कृषि वर्ष 2012-13 में तैयार किया था और नए अनुमान अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं। हालांकि तोमर ने दावा किया कि किसानों के कल्याण के लिए चलाई जा रही विभिन्न गतिविधियां व योजनाओं का जो असर दिख रहा है, उससे संकेत मिलता है कि किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी कार्यनीति सही दिशा में चल रही है।

अपने इस जवाब में तोमर ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ऐसी कोई भी आय मूल्यांकन रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है, जिससे किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य पर कोरोनावायरस से पड़ने वाले असर का मूल्यांकन किया जा सके। इसका मतलब है कि सरकार आय दोगुनी करने की बात तो कर रही है, लेकिन साल दर साल इस तरह का कोई आकलन नहीं किया जा रहा है, जिससे पता चल सके कि सरकार अपने लक्ष्य से कितनी दूर है। कृषि मंत्री ने इतना जरूर कहा था कि एनएसएसओ वर्ष 2019-20 के लिए कृषि भू-स्वामियों की स्थिति का मूल्यांकन और पशुधन का सर्वेक्षण कर रहा है। यानी एनएसएसओ की इस रिपोर्ट में ही पता चल पाएगा कि चार साल के दौरान किसानों की आमदनी में कितनी वृद्धि हुई?

3 मार्च 2020 को कृषि पर बनी स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की गई, जिसमें बताया गया कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई स्तर पर काम चल रहा है। सरकार ने सभी संबंधित विभागों को इस काम में जुटने के निर्देश दिए थे। इसके मद्देनजर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने किसानों की आय दोगुना करने के लिए राज्यों के लिए अलग-अलग कार्यनीति दस्तावेज तैयार कर राज्य सरकारों को भेजा है। इस कार्यनीति को सही मायने में लागू करने के लिए आईसीएआर ने हर जिले में मॉडल के तौर पर दो गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी करने का बीड़ा उठाया है और हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र को यह जिम्मेवारी सौंपी गई कि वे दो गांव को गोद ले लें।

रिपोर्ट के मुताबिक, 30 राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के 651 केवीके ने 1,416 गांवों को गोद लिया है। इन मॉडल गांवों को “डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज” नाम दिया गया है। इसके अलावा आईसीएआर से संबंद्ध अलग-अलग संस्थान भी कुछ मॉडल पर काम कर रहे हैं, जैसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शुगर रिसर्च (आईआईएसआर), लखनऊ ने 2017 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल अपनाते हुए उत्तर प्रदेश के आठ गांव को गोद लिया है और 2028 किसानों की आमदनी दोगुनी करने का बीड़ा उठाया है।

डाउन टू अर्थ ने झारखंड, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, बिहार के कुल 66 कृषि विज्ञान केंद्रों से संपर्क किया। इनमें से केवल 22 केंद्रों ने जानकारी दी कि उन्होंने अपने जिले में 2-2 गांव गोद लिए हुए हैं। 15 केंद्रों ने बताया कि उन्होंने 2018 में गांव गोद लिए थे। 4 केंद्रों ने कहा कि उन्होंने 2019 में गांव गोद लिए हैं, जबकि 3 केंद्रों ने 2017 में ही गांव गोद ले लिए थे। लेकिन 44 कृषि विज्ञान केंद्रों ने अलग-अलग वजहों से यह जानकारी ही नहीं दी। 27 कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने सूचना देने से इनकार कर दिया। कुछ अधिकारियों का कहना था कि यह ऑफिशियल जानकारी है, वे यह सूचना नहीं दे सकते तो कुछ अधिकारियों ने कहा कि इस तरह की जानकारी लेने के लिए उन्हें ईमेल करना होगा तो कुछ अधिकारियों ने डाउन टू अर्थ के सवाल सुनते ही फोन काट दिया। 21 जिले ऐसे थे, जहां काफी प्रयासों के बाद फोन ही नहीं मिले।

यहां यह बात उल्लेखनीय है कि जिला कृषि विज्ञान केंद्र की जिम्मेवारी होती है कि उसके अधिकारी व वैज्ञानिक किसानों को खेती से संबंधित सलाह दें, लेकिन जब इन केंद्रों के फोन ही नहीं मिलते हैं तो किसानों को क्या सलाह दी जाती होगी। दिलचस्प बात यह है कि जिन 22 कृषि विज्ञान केंद्रों के अधिकारियों ने जानकारी दी, उनमें से ज्यादातर ने कहा कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 रखा है। इस योजना का मकसद यह है कि इन मॉडल गांवों से सीख लेते हुए राज्य सरकार व जिला प्रशासन सभी गांवों के किसान की आमदनी दोगुनी करने की योजनाएं बनाएं, लेकिन जब मॉडल गांवों की आमदनी 2022 में दोगुनी होगी तो दूसरे गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी कब होगी? डाउन टू अर्थ ने ऐसे कुछ गांवों का दौरा किया, जहां आमदनी दोगुनी करने पर काम किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश

डाउन टू अर्थ ने उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के पांच गांवों का दौरा किया। इन गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ शुगर रिसर्च और डीसीएम श्रीराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड के बीच 2017 में समझौता हुआ था। इसके तहत हरदोई जिले के छह गांव और लखीमपुर खीरी जिले के दो गांवों को गोद लिया गया। इस समझौते में कहा गया कि इन गांवों के किसानों की आमदनी 2020-21 तक दोगुनी कर दी जाएगी। यानी कि मार्च 2021 तक इन गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी।

डाउन टू अर्थ ने हरदोई के हरियावां गांव पहुंचकर किसानों से बात की। इस गांव की जमीन पर डीसीएम श्रीराम लिमिटेड की चीनी मिल है। मिल ने हरियावां को भी गोद लिया है। गांव के लगभग सभी किसान गन्ने की खेती करते हैं। 73 साल के कामेश्वर प्रसाद मिश्रा लगभग 15 बीघा गन्ने की खेती करते हैं। वह कहते हैं कि कुछ में आमदनी बढ़ने की बजाय घटी है, क्योंकि कुछ साल पहले मिल वालों के कहने पर गन्ने की वैरायटी 0238 लगाते थे, उसकी पैदावार पहले ज्यादा होती थी, लेकिन अब घटती जा रही है। चार साल पहले 50-60 क्विंटल प्रति बीघा गन्ना होता था, अब 40 क्विंटल होता है।

जब उनसे पूछा गया कि चीनी मिल ने आईआईएसआर के साथ मिलकर उनका गांव गोद लिया है तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसके बारे में नहीं पता, परंतु मिल वाले कभी-कभी आते हैं और उन्हें गन्ने के बारे में प्रशिक्षण देते हैं, लेकिन इसके बावजूद उनके गन्ने की उपज कम हो रही है। 15 बीघा में गन्ने की खेती करने वाले गांव के ही आशुतोष मिश्रा कहते हैं कि सरकार ने 2016 में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया और उसके बाद से ही फसल की लागत बढ़ रही है। पहले खाद की कीमत 250 रुपए प्रति 50 किलोग्राम थी, अब 400 रुपए प्रति 45 किग्रा हो गई है। गन्ने की छिलाई की मजदूरी पहले 25-30 रुपए प्रति क्विंटल थी, अब 50 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। डीजल की कीमत पहले 60 रुपए लीटर थी, अब 71 रुपए लीटर है। कीटनाशक दवा की कीमत भी बढ़ गई। पोटाश पहले 250 रुपए प्रति 25 किग्रा था अब 600 रुपए प्रति 25 किग्रा हो गई है। आशुतोष मिश्रा को जानकारी है कि उनके गांव को आमदनी दोगुनी करने के िलए गोद लिया गया, लेकिन वह कहते हैं कि गोद लेने के बाद भी उनके गांव में कुछ बड़ा बदलाव नहीं किया गया। हरियावां से सटा गांव अहमदी भी उन गांवों में शामिल है, जहां आमदनी दोगुनी की जानी है।

यहां के 50 बीघा के किसान हरिकरण नाथ कहते हैं कि दो साल से तो गन्ने को रेड रोट (लाल सड़न) रोग लगना शुरू हो गया है। मिल वालों ने भी यह गन्ना लेना बंद कर दिया है तो ऐसे में किसानों की कैसे आमदनी बढ़ेगी? डीसीएम श्रीराम लिमिटेड की दूसरी चीनी मिल लोनी में हैं। लोनी भी डबलिंग फार्मर्स विलेज में शामिल है। लगभग 28 वर्षीय मुसीम ने बताया कि उनके गांव में चीनी मिल लग रही थी तो उस समय कई वादे किए गए लेकिन कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया। अब सभी किसान गन्ना लगाते हैं, लेकिन तीन साल से गन्ने की कीमत नहीं बढ़ी। इसी गांव से सटा नगला भगवान भी मॉडल विलेज है। लेकिन इस गांव के लोग भी आमदनी घटने की शिकायत करते हैं। यहां से लगभग 40 किलोमीटर दूर रूपनगर चीनी मिल के पास के गांव मुंढेर को भी गोद लिया गया है, लेकिन यहां के किसान भी बढ़ती महंगाई, आवारा पशु और मिल की अनदेखी की वजह से परेशान हैं। इसके बाद डाउन टू अर्थ ने कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा गोद लिए गांवों की हकीकत जानने के लिए कुछ गांवों का दौरा किया।

हरियाणा

गुड़गांव जिले की मानेसर तहसील में स्थित सकतपुर और लोकरा गांव किसानों की आमदनी दोगुनी करने के पायलट प्रोजेक्ट में शामिल हैं। शिकोहपुर के कृषि विज्ञान केंद्र ने जुलाई 2019 में इन दोनों गांवों को गोद लिया था। इन दोनों गांवों को गोद लिए करीब सवा साल हो गए हैं। इस दौरान किसानों की आय बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं और ये प्रयास कितने सफल रहे हैं, यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने गांव का दौरा किया। गांव जाकर पता चला कि न सरपंचों को और न ही किसानों को इस बारे में कोई जानकारी है। सकतपुर के सरपंच प्रीतम और लोकरा के सरपंच पंकज से जब हमने ऐसे किसानों के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। हालांकि सकतपुर में कुछ युवा जरूर मिले जिन्होंने केंद्र से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया है, लेकिन इससे आमदनी बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिली है।

लोकरा गांव के किसान अशोक कुमार भी अपनी आय दोगुनी से अधिक बढ़ाने में कामयाब हुए हैं, लेकिन इसका श्रेय वह केवीके को नहीं देते। कृषि विज्ञान केंद्र की मुख्य वैज्ञानिक अनामिका शर्मा ने बताया कि गोद लिए गए गांवों आमदनी दोगुनी करने के लिए अलग से फंडिंग या अन्य किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिला है। इसके बावजूद किसानों की आय बढ़ाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। उनका दावा है कि केंद्र ने दोनों गांवों के कुल 48 किसानों को अब तक लाभांवित किया है। भले ही आमदनी दोगुनी नहीं हुई है, डेढ़ गुणा तक जरूर बढ़ गई है।

बिहार

बिहार के भागलपुर जिले में केवीके ने दो गांव का चयन किया है। ये गांव हैं गौराडीह प्रखंड का गंगा करहरिया और कहलगांव का देवीपुर। डाउन टू अर्थ ने गंगा करहरिया गांव में जाकर किसानों से बात की। ग्रामीण पंकज कुमार ने बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके गांव के किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए गोद लिया गया है। पंकज कुमार तांती वार्ड से पार्षद भी हैं, इसलिए हकीकत जानने के लिए केवीके के अधिकारी को फोन मिलाया तो जवाब मिला कि सरकार प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है जिसके लिए जल्द ही उन्हें बुलाया जाएगा। गांव के ही नंदलाल तांती, पूरन साह मंडल और अशोक कुमार मंडल ने भी कहा कि उन्हें सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है।

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कृषि विज्ञान केंद्र ने दो गांव बनखेड़ी और घाना काे गोद लिया है। डाउन टू अर्थ ने दोनों गांव का दौरा किया। बनखेड़ी के किसानों को जानकारी नहीं है कि उनके गांव को गोद लिया गया है। छह एकड़ जमीन पर खेती कर रहे किसान नंदलाल लोधी ने कहा, “पहले की तुलना में उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन लागत डीजल, खाद—बीज और दवाई का खर्चा इतना बढ़ गया है कि लाभ तो वहीं का वहीं है।” सरपंच कल्याण सिंह लोधी ने कहा, “केंद्र (केवीके) वाले बुलाते हैं, नाश्ता कराते हैं और किसान भी सोचते हैं कि आय डबल हो जाए पर यह कैसे होगी?” वहीं दूसरे गांव घाना की महिला किसान पानबाई ने बताया, “कुछ समय खेत से मिट्टी के नमूने लेकर गए थे, लेकिन लौटकर नहीं आए, न कोई जवाब दिया।” मनबाई अहिरवार ने बताया​, “एक बार टमाटर और पपीते के चार-चार पौधे देकर गए थे, जो सूख गए। उसके बाद कुछ नहीं मिला।

मुझे नहीं लगता कि आय दोगुनी करने के लिए कुछ खास किया जा रहा है।” कृषि विज्ञान केंद्र, रतलाम ने जामथून और नवाबगंज गांव को गोद लिया है। नवाबगंज के किसानों का कहना है कि केवीके के अधिकारी तीन साल से लगातार संपर्क में हैं और डेढ़ से दो माह के बीच उनके खेतों में भी आते हैं। यहां के ग्रामीणों को पता है कि आय बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं और इसमें कुछ तक सफलता भी मिली है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आय बढ़ाने में केवीके के प्रयास अभी जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। गांवों में जिन चुनिंदा किसानों की आय बढ़ी है, वह उनकी दूरदर्शिता और मेहनत का नतीजा है। केवीके के पास फंडिंग की कमी है। ऐसी स्थिति में किसानों की आय बढ़ाना, अंधेरे में तीर मारने जैसा है।

(हरियाणा से भागीरथ, बिहार से राजीव रंजन, मध्यप्रदेश से राकेश कुमार मालवीय और विक्रम भट्ट के इनपुट के साथ)

दूर की कौड़ी

लगभग दो साल का समय बचा है, लेकिन अब तक मॉडल गांवों के किसान ही दोगुनी आमदनी के लक्ष्य से दूर हैं 

वादा : वर्ष 2017 में इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च ने घोषणा की थी कि हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) द्वारा दो गांवों को मॉडल के तौर पर विकसित किया जाएगा, ताकि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके

हकीकत: हमने 66 कृषि विज्ञान केंद्रों में फोन किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितना काम हो चुका है.

स्त्रोत: सीएसई-डीटीई डाटा सेंटर
*इनमें वे केवीके शामिल हैं, जिन्होंने फोन काट दिया, बात करने से इनकार कर दिया या फोन नंबर बंद मिले

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