गुजरात में गोचर पर उद्योगपतियों की नजर, सरकार ने किराए और बिक्री पर दी जमीनें

गुजरात में गोचर पर उद्योगपतियों की नजर, सरकार ने किराए और बिक्री पर दी जमीनें
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विषनगर जिले के लक्ष्मी पूरा तहसील के भांडू गाँव के रहने वाले किसान रमेश भाई वीर भाई चौधरी ने 2019 में गुजरात हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर ग्राम पंचायत की गौचर ज़मीन पर किये गए गैर कानूनी कब्ज़े को हटाने की मांग की थी। गुजरात हाई कोर्ट ने चौधरी की याचिका खारिज कर दी थी। क्योंकि कोर्ट का मानना था, जो परिवार उस जमीन पर हैं, वह बिलकुल निम्न आय वाले परिवार हैं। रमेश चौधरी ने गुजरात हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सितंबर 2021 में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम.एम. सुद्रेश की बेंच ने गुजरात हाई कोर्ट के निर्णय को बदलते हुए कहा था “देश में चरागाहें खतरनाक दर से सिकुड़ रही हैं। मवेशियों को चराने के लिए मैदान कम हो रहे हैं। जिसका असर दूध के उत्पादन पर हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कांबेट डिसर्टिफिकेशन में दिए आंकड़ों के अनुसार भारत में 2005 से 2015 के दरमियान अर्थात एक दशक में गौचर जमीन 18 मिलियन हेक्टेयर से घट कर 12.3 मिलियन हेक्टेयर जमीन हो गई। एक दशक में भारत ने 31% गौचर मैदान खो दिया।”

बेंच ने आदेश दिया कि “ भांडू ग्राम पंचायत की गौचर ज़मीनों से गैर कानूनी कब्ज़े को तीन महीने के अन्दर खाली खाली कराया जाय। गौचर लैंड का उपयोग मात्र गौचर के लिए ही हो सकता है। गौचर लैंड अनुसूचित जाति को भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि उनके लिए अन्य योजनाएं भी है। गौचर लैंड पर सरकारी आँगन वाड़ी , सहकारी डेरी , मानव मन्दिर इत्यादि के लिए उपयोग भी गैर कानूनी है।

जिस प्रकार से गुजरात में गौचर लैंड उद्योगपतियों को कौड़ीयों के भाव ज़मीनें किराये , लीज़ तथा बेचीं गई है। प्रभावशाली लोगों ने कब्ज़े किये। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मवेशियों के लिए रहत भरा है।

गुजरात विधानसभा बजट सेशन 2022 में कांग्रेस पार्टी विधायक पूंजा वंश द्वारा गौचर ज़मीनों पर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में राजस्व मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी ने बताया “पिछले दो वर्षों में राज्य की 103 करोड़ 80 लाख 73 हज़ार 183 चौरस मीटर गौचर तथा बंजर ज़मीने किराये तथा बिक्री पर दी गई। गुजरात के 2303 गांव में गौचर ज़मीन शून्य है।जहाँ मवेशियों के लिए चारागाह बिलकुल भी नहीं है। 9029 गावों में न्यूनतम आवश्यक गौचर मौदान से भी कम गौचर है।”

बनास कांठा जिले राज्य में सबसे अधिक दूध उत्पादक जिला है। उत्तर गुजरात की बनास डेरी में 50 लाख लीटर दूध का उत्पादन प्रति दिवस होता है। राज्य का यह ज़िला भी गौचर मैदान की कमी से जूंझ रहा है।गुजरात के बनास कांठा जिले के 1165 गाँव ऐसे हैं। जहाँ आवश्यक न्यूनतम चरगाह की तुलना में आवश्यक चारागाह नहीं है। तुलनात्मक कम चारागाह है।बलसाढ़ जिले के 250 गावों में चारागाह ही नहीं है। शून्य गौचर लैंड होने के कारण चारागाह विकल्प ही उपलब्ध नहीं है।मवेशियों को मवेशालय में ही खाने की व्यवस्था करनी पड़ती है।

राज्य की सरकार भले ही गरीबों को 50-100 चौरस मीटर ज़मीन प्लाट के लिए देने में भले ही असफल हो लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले दो वर्षों में उद्योगपतियों को 14.22 लाख चौरस मीटर प्रति दिवस की औसत से ज़मीनें आवंटित हुई हैं। राजस्व मंत्री द्वारा विधानसभा को बताए गए आंकड़ों के अनुसार गौचर ज़मीने जो उद्योग के लिए किराये या बेचीं गई हैं। वह इस प्रकार है -

क्रमांक        जिले का नाम              गौचर ज़मीन ( चौरस मीटर )

1              आनंद                       29800

2          भरूच                           33690

3          कच्छ

4          द्वारका

5         खेड़ा                              31025

6          नर्मदा                           4900

7         अहमदाबाद                        27312

8         बोटाद                            4900

9        गांधीनगर                          7487

10       वडोदरा                            16154

11        सूरत                               0

12        वलसाड़                           10579

13        जूनागढ़                           6098.75

14        डांग                                 0

15       पाटन                              384178

16       मेहसाणा                           537900

17       अमरेली                            29273

18      भावनगर                             0

19       दाहोद                             4900

20       छोटा उदयपुर                         0

21      गीर सोमनाथ                        127400

22       जामनगर                          13300

23     मोरबी                               71850

24     सुरेन्द्र नगर                           8094

25     राजकोट                              73430

26      पोरबंदर                             30000

27      बनास कांठा                         229628

28      साबर कांठा                           0  

29      अरवल्ली                          70002

30      महीसागर                            0

31      पंचमहल                             44988

32       तापी                             19600

33      नवसारी                            14700

राज्य में न केवल गौचर सिकुड़ रहा है। बल्कि मवेशियों की स्वास्थ व्यवस्था को लेकर भी सरकारें गंभीर नहीं दिख रही है। राज्य में पशु चिकत्सालय तथा पशुपालन विभाग में आवश्यक स्टाफ भी नहीं है। राज्य के पशु चिकित्सालयों में 290 पशु चिकित्सक (वर्ग 2) की जगह खाली है। चिकित्सक के अलावा ड्रेसर (वर्ग 4) की 157 और चपरासी/ड्रेसर कम अटेंडेंट/ अटेंडेंट 294 जगह की भर्ती है लेकिन सरकार द्वारा भर्ती न निकले जाने के कारण यह जगहें खाली हैं। राज्य के प्राथमिक पशु चिकित्सा केन्द्रों में पशुधन निरीक्षक (वर्ग 3) की 274 जगह और चपरासी की 405 जगह खाली है। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सालयों में भरी गई जगहों की तुलना में खाली जगह अधिक है। राज्य के पशु चिकित्सालयों में खाली वर्ग 2 की सभी भर्तियों को 10 वर्षीय भर्ती कैलेंडर के अनुसार भरा जाना चाहिए था। लेकिन अभी तक एक भी भर्ती नहीं हुईं है। राज्य सरकार का भर्ती कैलेंडर की अवधि 2023 में पूरी हो जाएगी। वर्ग 2 की 455 में से 315 जगह खाली है।

राज्य में गौ विकास बोर्ड और गौ वंश हत्या विरोधी कानून भी है। गौचर की कमी के कारण राज्य में छुट्टा पशुओं की भी समस्या भी है। गायों को को आस्था के चलते संस्थाओं और मन्दिरों की गौशालों में पालन हो जाता है। परन्तु बछड़े और अन्य पशुओं को सड़कों पर आवारा ही घूमना पड़ता है। अहमदाबाद के नारोल स्थित श्री केदारनाथ महादेव गौशाला है। जहाँ लगभग पौने दो सौ गाय बछड़े हैं। पूछे जाने पर गौ सेवक हिम्मत भाई वीर भाई बताते हैं। इस गौ शाला में लगभग डेढ़ सौ गएँ और पच्चीस बछड़े हैं। सरकार से हमने गौ सेवा के लिए अनुदान मांगा है। परन्तु अभी तक सरकार से कोई अनुदान नहीं मिला है। गाय के प्रति लोगों को आस्था है। लोग पुण्य के लिए यहाँ आते हैं। गायों को चारा देते हैं। जिससे इन सभी का पालन पोषण हो जाता है। यह गौशाला पिछले पंद्रह सोलह वर्षों से सेवा कर रही है।

सरकार जो ज़मीनें उधोग के लिए आवंटित करती है। उन ज़मीनों में फ़ाज़िल , बंजर के अलावा गौचर की भी ज़मीनें होती हैं। मुंद्र पोर्ट स्पेशल इकनोमिक ज़ोन के लिए राज्य सरकार ने गौतम अडानी को साढ़े पांच करोड़ चौरस मीटर जो ज़मीन दी गई थी। उसमें गौचर की भी ज़मीने शामिल थी। 2017 तक गुजरात सरकार ने 1.92 लाख हेक्टेयर ज़मीन उधोग के लिए आवंटित किया है। उधोग के नाम पर टाटा नैनो को 2008 में 1100 एकड़ ज़मीन राज्य सरकार ने आवंटित किया था। लेकिन अब सानंद प्लांट में नैनो गाड़ियों का प्लांट बंद हो चूका है।प्रभावशाली व्यक्ति सरकारों से उधोग के नाम पर ज़मीनें तो ले लेती हैं। लेकिन उधोग का भी उद्देश्य हासिल नहीं हो पाता है।             

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