किसान संगठनों और सरकार के बीच वार्ता फिर विफल

कृषि कानूनों को रद्द करने की किसानों की मांग पर केंद्रीय मंत्रियों की आनाकानी के बाद बैठक बेनतीजा रही
सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई बातचीत फिर विफल रही
सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई बातचीत फिर विफल रही
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सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत विफल रही। तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की बजाय कानूनों में सुधार की सरकार की पेशकश को किसान संगठनों ने नहीं माना। अब दोनों पक्षों के बीच आठ जनवरी को बातचीत होगी।

पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत 4 जनवरी को दोपहर दो बजे किसान संगठनों और सरकार के मंत्रियों के बीच बातचीत शुरू हुई। आंदोलन के दौरान जिन किसानों की मौत हुई, उन्हें दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी गई। इसके बाद बातचीत शुरू हुई।

किसान नेताओं ने बताया कि केंद्रीय मंत्रियों ने किसान नेताओं को कृषि कानूनों के फायदे बताने का प्रयास किया, लेकिन किसान नेताओं ने साफ कर दिया कि कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग मानने के बाद ही बात आगे बढ़ेगी।

केंद्रीय मंत्रियों ने कहा कि कृषि कानूनों का वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन सरकार इनमें सुधार करने को तैयार हैं। लेकिन किसान संगठनों ने इससे इंकार कर दिया।

सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय मंत्रियों ने किसानों की दूसरी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी पर बात करने की पेशकश की, लेकिन किसान नेताओं ने कहा कि वे पहली मांग यानी कृषि कानूनों को रद्द करने पर पहले बात करेंगे।

गौरतलब है कि इससे पहले हुई छठे दौरे की वार्ता में सरकार ने किसानों की तीसरी और चौथी मांग को मान लिया था, लेकिन एमएसपी और कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग मानने से इंकार कर दिया था। जिन मांगों को माना गया था, उनमें पराली जलाने पर कैद व जुर्माने का प्रावधान हटाना और नए बिजली अधिनियम में से किसानों को हटाने की मांग थी।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछली बैठक में सरकार के रवैये से निराश किसान संगठनों ने आंदोलन तेज करने की घोषणा कर दी है। किसान संगठनों का कहना है कि वे छह जनवरी से आंदोलन को तेज करेंगे और अन्य किसानों को भी जोड़ेंगे। ऐसे में यदि 26 जनवरी से पहले किसानों की मांग नहीं मानी गई तो 26 जनवरी को किसान दिल्ली में ट्रेक्टर परेड निकालेंगे।

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