वैज्ञानिकों ने सोयाबीन में जैविक नाइट्रोजन में सुधार के लिए जंगली जीन का उपयोग किया

अब चीन के वैज्ञानिकों के एक समूह ने जंगली सोयाबीन पर एक अध्ययन शुरू किया है। इसमें पाए गए आनुवंशिक हिस्सों को लाभ पहुंचाने वाले माइक्रोब्स को शामिल किया गया
Photo: wikimedia commons
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दुनिया भर में उगाई जाने वाली शीर्ष चार फसलों में से सोयाबीन एक है। लोगों ने इसे 6 हजार साल पहले उगाना शुरू किया था। फसलों को उगाने की प्रक्रिया के दौरान, उसके कुछ लक्षणों को देखा जाता है जैसे कि उनकी खेती करना आसान होना चाहिए, फसल पक कर तैयार होने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। इन घरेलू फसलों के इनके जंगली पूर्वजों में कुछ ऐसे लक्षण हो सकते है जो अब इनमें न हो। हो सकता है इनके ये लक्षण कृषि के लिए महत्वपूर्ण भंडार हो। यह तब और महत्वपूर्ण  हो जाता है जब रोग प्रतिरोध की बात आती है।  

फसलों में रोग लगना आम बात है, इससे होने वाले नुकसान से किसानों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। यदि फसलों में इस तरह के बदलाव हो कि पौधें खुद ही रोगों से मुकाबला कर सकें अर्थात वे रोग प्रतिरोधी हो जाए, तो नुकसान से बचा जा सकता है। यह अध्ययन एमपीएमआई नाम पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

अब चीन के वैज्ञानिकों के एक समूह ने जंगली सोयाबीन पर एक अध्ययन शुरू किया है। इसमें जंगली सोयाबीन में पाए गए आनुवंशिक हिस्सों को लाभ पहुंचाने वाले माइक्रोब्स को शामिल किया गया, जो कि अब घरेलू सोयाबीन में नष्ट हो गए हैं। इस समूह ने सोयाबीन की खेती की जिसमें उनके जंगली पूर्वजों के डीएनए के छोटे हिस्से शामिल थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि सोयाबीन में सिनोरहिज़ोबियम फ़्रेडी के रूप में जाना जाने वाले लाभकारी बैक्टीरिया ने अलग-अलग प्रतिक्रिया दी।

इन अलग-अलग प्रतिक्रियाओं के आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि बैक्टीरिया पूरी तरह से 3 तरह के स्राव प्रणाली (टी3एसएस) से संबंधित थे। यह प्रणाली बैक्टीरिया द्वारा पौधों की कोशिकाओं में प्रोटीन को इंजेक्ट करने के लिए उपयोग किया जाता है। उन्होंने डीआरआर1 नाम के एक सुपाच्य प्रोटीन का उपयोग किया। प्रोटीन ने बैक्टीरिया टी3एसएस प्रणाली के साथ आनुवंशिक रूप से अंतःक्रिया की ताकि अधिकतर ग्रंथियां जड़ प्रणाली में परिवर्तन हो सके। ताकि जैविक नाइट्रोजन के निर्धारण में सुधार हो जाए। जैविक नाइट्रोजन पूरा करने का तात्पर्य है कि खेतों में इसको अधिक मात्रा में डालने की आवश्यकता नहीं होगी, इससे नाइट्रोजन से होने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सकता है।

यह नया आनुवंशिक प्रयोग किसानों को आधुनिक सोयाबीन की खेती करने में मदद करेगा। यह जैविक कृषि निर्धारण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो जैविक नाइट्रोजन निर्धारण में सुधार करने में अहम भूमिका निभाता है। यह प्रयोग सोयाबीन के पूर्वजों की कुछ आनुवंशिक विविधता का उपयोग करने में मदद करेगा।

भारत में सोयाबीन उत्पादन

भारत सोयाबीन उत्पादन के मामले में दुनिया भर में पांचवें स्थान पर है। सोयाबीन उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक शामिल हैं। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसओपीए) के अनुसार भारत ने सन 2019-2020 में 90 लाख (9 मिलियन) मीट्रिक टन सोयाबीन,  64 लाख (6.400 मिलियन) मीट्रिक टन  सोया मील और 14.4 लाख (1.440 मिलियन) मीट्रिक टन सोया तेल का उत्पादन किया।

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