वैज्ञानिकों ने कैंसर रोधी गुणों वाली चावल की किस्में खोजी

चावलों को जब सीधे पकाया जाता है, तो ये किस्में साबुत अनाज के बेहतर उपयोगों में लगभग 70 प्रतिशत कैंसर-रोधी या एंटीऑक्सीडेंट गुण बनाए रखते हैं।
चावल के अर्क ने स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना केवल कैंसर कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिसिटी गुण प्रदर्शित किया
चावल के अर्क ने स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना केवल कैंसर कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिसिटी गुण प्रदर्शित कियाप्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के वैज्ञानिकों ने एंटी-ऑक्सीडेंट और कैंसर विरोधी गुणों वाली चावल की कुछ किस्मों की पहचान की है

यह एक अहम विकास हो सकता है, खासकर एशिया में, जहां भारत और चीन जैसे देशों में कोलोरेक्टल कैंसर की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों ने दुनिया भर से एकत्र किए गए 1.32 लाख चावल के हिस्सों को छानकर, शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर विरोधी गुणों वाले पिगमेंटेड चावल के छह टुकड़ों पर गौर किया।

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शोध के ये निष्कर्ष मनुष्य के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए खाद्य पदार्थों और सप्लीमेंट को विकसित करने के लिए नए रास्ते खोलते हैं। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि टीम ने शुरू में 800 रंग-बिरंगे चावल की किस्मों का चयन किया और गहन चयापचय में निर्मित या उसके लिए आवश्यक पदार्थ (मेटाबोलाइट प्रोफाइलिंग) और एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों का परीक्षण किया।

दो प्रकार की कोशिकाओं की पंक्ति पर छह चावल की पंक्तियों से बने अर्क के इन विट्रो परीक्षण के लिए कोलोरेक्टल कैंसर कोशिकाओं की पंक्ति और ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं की पहचान की।

वैज्ञानिक पत्रिका फूड हाइड्रोकोलॉइड्स एंड हेल्थ में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि जांची गई 800 में से केवल छह पंक्तियों में ही अत्यधिक उच्च स्तर के एंटीऑक्सीडेंट गुण प्रदर्शित हुए, जो ब्लूबेरी और चिया सीड्स जैसे सुपरफूड में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट गुणों के बराबर थे। जब इन बेहतरीन पंक्तियों का कैंसर कोशिकाओं की पंक्तियों पर परीक्षण किया गया, तो उन्होंने कैंसर रोधी गुणों के बहुत उच्च स्तर का प्रदर्शन किया।

कैंसर की रोकथाम में जैवसक्रिय यौगिकों की क्रियाविधि का चित्रण।
कैंसर की रोकथाम में जैवसक्रिय यौगिकों की क्रियाविधि का चित्रण।स्रोत: फूड हाइड्रोकोलॉइड्स एंड हेल्थ
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चावल के अर्क ने स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना केवल कैंसर कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिसिटी गुण प्रदर्शित किया

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि एक विशेष रूप से चौंकाने वाली खोज यह थी कि इन चावल के अर्क ने स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना केवल कैंसर कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिसिटी गुण प्रदर्शित किया, जो कई कीमोथेराप्यूटिक दवाओं की तुलना में एक बड़ा अंतर है, जो अक्सर स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित करके भारी दुष्प्रभाव पैदा करते हैं।

यह इन प्राकृतिक यौगिकों के लिए संभावित रूप से सुरक्षित रूपरेखा का सुझाव देता है। चावल की भूसी के अर्क से विकसित कई तरह के पोषक मिश्रण सप्लीमेंट पर इन विट्रो जैव उपलब्धता परीक्षण भी किए गए। इसने दिखाया कि अधिकांश एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर विरोधी गुण वाले बायोमोलेक्युल्स गैस्ट्रिक चरण में अवशोषित हो गए थे। उन्होंने कहा कि अगला कदम चूहे के मॉडल जैसे जीवित मॉडलों पर सीधे साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए परीक्षण करना है।

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शोध के मुताबिक, कोलोरेक्टल कैंसर से पीड़ित चूहों जैसे मॉडलों पर सफल परीक्षणों के बाद, योजना में बायोमेडिकल चीजों के साथ मिलकर आगे की प्रभावकारिता परीक्षण करने का काम शामिल है, जिसका उद्देश्य अंततः लोगों पर सीधे फायदे के साक्ष्य स्थापित करना है। जब सीधे पकाया जाता है, तो ये बेहतरीन चावल की किस्में साबुत अनाज के बेहतर उपयोगों में लगभग 70 प्रतिशत कैंसर-रोधी या एंटीऑक्सीडेंट गुण बनाए रखती हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया कि इन महत्वपूर्ण मेटाबोलाइट्स को हासिल करने के लिए इथेनॉल का उपयोग करने जैसी सुरक्षित निष्कर्षण विधि का उपयोग करके पहचाने गए चावल से चोकर एकत्र किया गया। इस अर्क को फिर माइक्रोएनकैप्सुलेशन के माध्यम से स्थिर किया जाता है ताकि कई तरह के पोषक मिश्रण सप्लीमेंट बनाया जा सके।

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शोध में कहा गया है कि यह सप्लीमेंट पानी में अत्यधिक घुलनशील है। इन विट्रो परीक्षणों से पता चला है कि इस सप्लीमेंट के केवल 7.5 मिलीग्राम प्रति लीटर में कोशिकाओं की पंक्तियों पर बहुत ज्यादा कैंसर विरोधी गुण थे, ये कैंसर विरोधी प्रभाव अन्य कीमोथेराप्यूटिक दवाओं के समान पाए गए।

शोध के मुताबिक, लगभग 300 ग्राम चोकर से एक किलोग्राम माइक्रोएनकैप्सुलेटेड उत्पाद तैयार होगा। केतन हितम वेरिएबल पर्पल चावल इंडोनेशिया में पैदा हुआ, जबकि बलैटिनो वेरिएबल पर्पल चावल और किंटूमन रेड चावल फिलीपींस में पैदा हुए। आईआरआरआई के वैज्ञानिक अब इन प्रजातियों में कैंसर विरोधी गुणों के लिए जिम्मेदार जीन की पहचान करने का काम कर रहे हैं। 

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