उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में पश्चिमी विक्षोभ यानी वेस्टर्न डिस्टर्बन्स का नदारद रहना रबी फसलों के लिए चिंता को बढ़ा रहा है। इसके चलते इस क्षेत्र में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है और नमी की भी कमी है। जोकि सर्दियों में गेहूं की फसल के लिए बहुत मायने रखती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पश्चिमी विक्षोभ या वेस्टर्न डिस्टर्बन्स भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में आने वाला तूफान है। जो भूमध्य सागर, अन्ध महासागर और कुछ हद तक कैस्पियन सागर से नमी लाकर उसे अचानक बारिश और बर्फ के रूप में उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल पर गिरा देते हैं। यह विक्षोभ अत्यधिक ऊंचाई पर पूर्व की ओर चलने वाली ‘वेस्टरली जेट धाराओं’ के साथ यात्रा करते हैं।
यदि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा 13 दिसंबर तक के लिए जारी आंकड़ों को देखें तो उत्तर-पश्चिमी भारतीय राज्यों में बारिश की कमी है, केवल पंजाब में ही मौसमी बारिश (1 अक्टूबर से 13 दिसंबर) में औसत से 33 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। वहीं बाकी राज्यों में या तो सामान्य, या सामान्य से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है।
देखा जाए तो मौसम की सक्रिय कई प्रणालियों के चलते अक्टूबर के पहले दो हफ्तों में इस क्षेत्र में लगातार बारिश हुई थी, जिसने इस विरोधाभास का जन्म दिया। वहीं भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में जारी ला नीना की घटना और गर्म होते आर्कटिक क्षेत्र के संभावित प्रभाव की भी इसमें भूमिका हो सकती है। वहीं दक्षिण-पश्चिम मानसून के बाद हुई बारिश पहले ही अधिकांश क्षेत्रों से हट चुकी है।
उसके बाद इस क्षेत्र में बहुत कम बारिश हुई है। कुछ राज्यों में तो बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई है। इससे संभवतः नमी का स्तर काफी कम हो गया है, जिससे रबी फसलों की वृद्धि प्रभावित हुई है। ऐसे में असामान्य बारिश क्षेत्र की मौसमी वर्षा में बदल गई है।
यह विषमता सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई है, जहां 1 अक्टूबर से 13 दिसंबर के बीच हुई मौसमी बारिश 344 फीसदी ज्यादा थी। गौरतलब है कि राज्य में इस अवधि के दौरान 145.6 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। देखा जाए तो 1 से 16 अक्टूबर के बीच यूपी में कुल 145.4 मिलीमीटर बारिश हुई थी। मतलब की 16 अक्टूबर से 13 दिसंबर, लगभग दो महीनों में राज्य में केवल 0.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई।
क्या है इसके पीछे का विज्ञान
देखा जाए तो अक्टूबर की शुरूवात में हुई भारी बारिश के लिए जिम्मेवार मौसम प्रणालियों में एक पश्चिमी विक्षोभ भी था। वहीं दूसरी ओर अक्टूबर के बाद से वर्षा में आई कमी का मुख्य कारण नवंबर में पश्चिमी विक्षोभ में आई कमी और दिसंबर में उसका पूरी तरह गायब होना जिम्मेवार है।
नवंबर में लगातार तीन पश्चिमी विक्षोभ आए थे। पहला उत्तर पश्चिम भारत में 5 से 8 नवंबर, दूसरा 9 से 10 नवंबर और तीसरा 13 से 19 नवंबर तक प्रभावित करता रहा। डाउन टू अर्थ द्वारा आईएमडी के आंकड़ों के किए विश्लेषण से पता चला है कि तीन पश्चिमी विक्षोभों के चलते नवंबर के पहले दो हफ्तों में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के साथ राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और यूपी के अलग-अलग हिस्सों में कुछ बारिश दर्ज की गई थी।
नवंबर 2017 में क्वार्टरली जर्नल ऑफ द रॉयल मेट्रोलॉजिकल सोसाइटी में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि आमतौर पर दिसंबर में 3 से 5 मजबूत पश्चिमी विक्षोभ आते हैं। दिसंबर 2019 में भी उत्तर पश्चिमी भारत में इसी तरह की कमी दर्ज की गई थी। विशेषज्ञों ने इसके पीछे पश्चिमी विक्षोभ का दक्षिण के मैदानी इलाकों को प्रभावित न करने को जिम्मेवार बताया था। वहीं इस बार वे पूरी तरह नदारद रहे हैं।
इस बारे में मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के विजिटिंग प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने डीटीई को बताया कि, “चक्रवात मैंडूस के बावजूद, पूर्वोत्तर मानसून ने अंदरूनी इलाकों में बारिश की है। वहीं भारत के पूर्वी तट पर बारिश की कमी है।“
उन्होंने बताया कि यह ला नीना प्रेशर पैटर्न है। हवाएं उत्तर से चलेंगी, जो पश्चिमी विक्षोभ के लिए प्रतिकूल है। मुर्तुगुड्डे का कहना है कि, "ला नीना के बावजूद, चक्रवात की गतिविधि कुल मिलाकर कमजोर रही है। इससे ठंडी हवाएं प्रायद्वीप में और नीचे जाएंगी, ऐसे में उत्तर पश्चिम भारत सामान्य से अधिक गर्म हो सकता है।" उनका कहना है कि यह कृषि और भूजल के लिए बुरी खबर हो सकती है। लेकिन पश्चिमी विक्षोभ अभी भी बन सकता है।