मधु शर्मा
भारत में अधिकांश आबादी की आजीविका का आधार कृषि है और इसके योगदान को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। हालांकि इस आबादी का कृषि में योगदान कुल जीडीपी का 20 प्रतिशत से भी कम हो गया है, लेकिन वास्तव में देखेंगे तो बढ़ते कृषि उत्पादन ने हमें आत्मनिर्भर बनाया है। कृषि और इससे संबंधित उत्पादों के मामले में हम निर्यातक बन गए हैं, जबकि आजादी से पहले हम भोजन के लिए हाथ में कटोरा लेकर मांगने की स्थिति में थे।
2019-20 के दूसरे एडवांस अनुमान (इकॉनोमिक टाइम्स) के अनुसार देश में अनुमानित रिकॉर्ड 291.95 मिलियन टन खाद्यान्न पैदा हुआ, जोकि अच्छी खबर है, लेकिन इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) के मुताबिक 2030 तक हमें 345 मिलियन टन अन्न चाहिए होगा। बढ़ती आबादी, औसत आय और भारत में बढ़ते वैश्वीकरण के प्रभाव के चलते खाने की मात्रा, पोषक भोजन में वृद्धि और भोजन के प्रकारों की मांग बढ़ी है, इसीलिए कम होती खेती योग्य भूमि पर अधिक उत्पादन, वैरायटी और अन्न की गुणवत्ता का दवाब इसी तरह बढ़ता रहेगा।
भारत में आईसीएआर की परिभाषा के अनुसार 15 कृषि जलवायु क्षेत्र हैं। जो हर तरह के मौसम की स्थिति, मिट्टी के प्रकार और फसलों की बढ़ती विविधता के लिए सक्षम हैं। भारत दूध, मसाले, दाल, चाय, काजू, जूट का प्रमुख उत्पादक है। साथ ही चावल, गेंहू, तिलहन, फल और सब्जी, गन्ना और कपास उत्पादन में हम दूसरे नंबर पर हैं। इन सब तथ्यों के बावजूद भारत में कई फसलों की औसत उत्पादकता बेहद कम है। अगले दशक तक भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा होने का अनुमान है। उस जनसंख्या के लिए भोजन सबसे बड़ा सवाल बनने वाला है। किसान आज भी सम्मानजनक धन नहीं कमा पा रहे हैं।
आजादी के 7 दशकों की प्लानिंग के बाद भी अधिकांश किसान कम उत्पादन और खराब रिटर्न जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। भारतीय कृषि की कुछ समस्याएं हैं। जैसे-
1. 2010-11 की एग्रीकल्चर सेंसस के अनुसार भारत में 138.35 मिलियन जोत होती हैं, जिसका औसत आकार 1.15 हेक्टेयर है। इस जोत में से 85 फीसदी सीमांत और छोटे किसान हैं। इनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है।
2. जीवन निर्वाह के लिए किसानी जो अर्थव्यवस्था को बनाती है, लेकिन इसका दायित्व छोटी जोत के किसानों पर है।
3. लोन की कमी और साहूकार जो असंगठित रूप से लोन देते हैं वे किसानों की खरीद और बेचान के फैसलों को प्रभावित करते हैं।
4. मशीनों और तकनीकी का काफी कम उपयोग जिसके कारण कम उत्पादन।
5. विकसित देशों की तुलना में बेहद कम मूल्य संवर्धन और किसानों के स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट्स की कमी।
6. खेती का कमजोर बुनियादी ढांचा जो किसानों की मौसम पर निर्भरता बढ़ाता है। अधिक मूल्य की फसल के लिए कमजोर मार्केटिंग और आपूर्ति श्रृंखला।
सरकार किसानों के जीवन में समृद्धि लाने के लिए कई तरह की कोशिश कर रही है, लेकिन सरकार की ओर से मिलने वाली सभी सहायता के बाद भी किसानों को सम्मानजनक जीवन जीने में कठिनाई आ रही है। उनकी उस स्तर के लिए पर्याप्त कमाई नहीं हो पा रही। खेती को और अधिक आयवर्धक बनाने के लिए कई तरह की सब्सिडी की जरूरत किसानों को है।
नीति निर्धारक और अन्य संबंधित संस्थाओं के लिए कृषि का भविष्य बेहद अहम सवाल है। सरकार और अन्य संस्थाएं भारत में खेती की समस्याओं और चुनौतियों को कम करने की कोशिश कर रही हैं। इनमें किसानों की छोटी जोत, प्राथमिक और मध्यम आकार की प्रोसेसिंग यूनिट्स, सप्लाई चेन, संसाधनों और मार्केटिंग का अधिक से अधिक उपयोग करने वाला बुनियादी ढांचा और बाजार में बिचौलियों को कम करना शामिल है। हमें लागत कम करने के साथ-साथ पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की भी आवश्यकता है।
निजीकरण, उदारीकण और वैश्वीकरण की दिशा में किए गए सुधारों ने बाजारों को बहुत तेजी से प्रभावित किया है। 2003 के बाद किए एग्रीकल्चर मार्केटिंग में सुधारों ने विकासशील बाजारों,अनुबंध खेती (कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग) और वायदा कारोबार में निजी निवेश को मंजूरी देकर कृषि उत्पादों की बिक्री में काफी बदलाव किए, लेकिन इसकी दर बेहद कम है। देश में आईटी क्रांति के साथ, कृषि में नई टेक्नोलॉजी, विशेष रूप से रिसर्च और डेवलपमेंट में निजी निवेश, छोटी जोत और छोटी उपज जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए सहकारी आंदोलनों को फिर से जीवंत करने के सरकारी कोशिश भारत में खेती का चेहरा बदल रही हैं। पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा खेती में नए-नए स्टार्ट-अप्स का बनना बता रहा है कि युवा इस सेक्टर में संभावनाएं तलाश रहे हैं। तभी वे इसमें पैसा लगा रहे हैं और अलग तरह की कोशिशें कर रहे हैं।
कृषि में सभी बाधाएं उत्पादकता और इससे आने वाले रिटर्न को जटिल बनाती हैं, लेकिन फिर भी हमारे देश में कृषि सेक्टर में एक क्षमता है जिसका पूरा उपयोग अभी भी हम नहीं कर पाए हैं। लाभप्रद मौसम और मिट्टी की स्थिति, भोजन की उच्च मांग, अप्रयुक्त अवसर, सरकारों द्वारा दिए गए प्रोत्साहन, उत्पादन संसाधन, सस्ती ऋण सुविधाएं मार्केटिंग और एक्सपोर्ट प्रमोशन कई व्यक्ति, कंपनी, स्टार्टअप्स और उद्यमियों को आकर्षिक कर रही हैं। उद्यमी बड़ी मात्रा में इनोवेशन, आविष्कार, रिसर्च और डेवलपमेंट में निवेश भी कर रहे हैं। ये सब कृषि में आने वाली समस्याओं को अवसर में बदलने की एक कोशिश है और यही प्रक्रिया खेती का भविष्य है।
भारतीय कृषि में अपेक्षित रुझानः
1. आय में हुई वृद्धि, वैश्वीकरण और स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता के कारण बदलती मांग भविष्य में अधिक उत्पादन को प्रभावित करने वाली है। आने वाले वक्त में फल, सब्जी, डेयरी प्रोडक्ट, फिश और मीट की मांग बढ़ेगी। रिसर्च, तकनीक में सुधार, अधिक मूल्य की साग-सब्जियों की संरक्षित खेती बढ़ेगी। प्रसंस्कृत और गुणवत्ता वाले सस्ते उत्पादों की मांग अधिक बढ़ेगी।
2. निजी कंपनियों के बीच नए उत्पादों, अच्छे बीज, उर्वरक, पौधें के संरक्षण वाले केमिकल्स, खेती के लिए मशीनरी और पशुओं के लिए चारा आदि देने के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। ये सब किसानों के खेती पर किए निवेश पर उन्हें लाभ पहुंचाने वाला साबित होगा। बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग इको-फ्रेंडली और रोग प्रतिरोधी, अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट फसलों की किस्मों को विकसित करने के लिए होगा।
3. कृषि में कुछ तकनीक भविष्य में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाएंगी और कुछ थोड़े ही वक्त में सामान्य हो जाएंगी। हालांकि कुछ टेक्नोलॉजी को अपनाने और परिपक्व होने में अभी वक्त लगेगा। तकनीकी के उपयोग से संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल होगा और नई तरह के संसाधनों का उपयोग भी किया जा सके। जैसे उत्पादन में हाइड्रोपॉनिक्स, प्लास्टिक और बायो-प्लास्टिक का उपयोग। भविष्य में शहरों में भी खेती होगी। बंजर रेगिस्तान और समुद्री जल में भी खेती करने के लिए प्रयास होंगे।
4. सटीक खेती के लिए मृदा परीक्षण, खेती में अच्छे परिणामों के लिए ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए ज्यादा काम होगा। लागत को कम और प्रभावी बनाने, गुणवत्ता सुधारने के लिए सेंसर और ड्रोन का उपयोग किया जाएगा। छोटे और सीमांत किसान भी निजी कंपनियों, सरकार या एफपीओ की मदद से इन टेक्नोलॉजी का उपयोग करेंगे। किसानों के जीवन को स्मार्ट फोन से चलने वाले ड्रोन और रोबोट काफी आसान करेंगे। ये एडवांस डिवाइस खेती को और अधिक लाभदायक, आसान और पर्यावरण के अनुकूल बनाएंगे।
5. खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा को बढ़ाने के लिए नेनो-टेक्नोलॉजी का उपयोग किए जाएगा। खेती में नेनो सामग्रियां केमिकलों के उपयोग में अधिक खर्च को रोकेगी, निषेचन में पोषक तत्वों के नुकसान को भी नेनो टेक्नोलॉजी/ सामग्री कम करेगी। इफको पहले ही नैनो-उर्वरकों में सफल परीक्षण कर चुका है।
6. डिजिटाइजेशन की शक्तिः भारत वो देश है जहां सबसे ज्यादा युवा आबादी है। भारत ने डिजिटल कनेक्टिविटी को काफी उन्नत किया है जिससे मार्केट तक पहुंच काफी आसान हो गई है। 2025 तक देश में इंटरनेट उपयोग करने वालों की संख्या 666.4 मिलियन आंकी गई है। हाथों में फोन लिए किसान अधिक स्मार्ट होंगे और अलग-अलग हितधारकों के साथ जुड़ने में सक्षम होंगे। किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने, जानकारी साझा करने, पैसे के सीधे हस्तारंतरण (ट्रांसफर) के लिए सरकार डिजिटल टेक्नोलॉजी का बड़े स्तर पर उपयोग कर रही है।
7. तेजी से घटते जल संसाधनों के संरक्षण में सरकार, ग्राम समुदाय, एग्री स्टार्ट-अप्स औऱ निजी क्षेत्र के लोगों द्वारा अधिक काम किया जाएगा। डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग इस क्षेत्र में क्रांति ला सकता है।
8. उपग्रहों और आई का उपयोग होगा। मृदा परीक्षण, फसल क्षेत्र और उपज के बारे में डेटा की बेहतर जानकारी जुटाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल होगा। इससे बेहतर परिणाण आएंगे जो बीमाकर्ताओं की लागत को भी कम करेगा और इससे सिस्टम अधिक सटीक और प्रभावी बनेगा।
9. संचालन, क्षेत्र और फसलों के लिए विशेष छोटे उपकरणों में बाजार रूचि लेगा। ये उपकरण छोटे खेतों में आसानी से काम कर पाएंगे।
10. कृषि में अपशिष्ट पदार्थों का इस्तेमाल और बेहतर होगा एवं खाने की बर्बादी भी कम होगी। निजी सेक्टर के वेयरहाउस की संख्या बढ़ेगी। साथ ही सरकार और निजी कंपनियां मिलकर वेयरहाउस बनाएंगी। ये बाजार में एग्री आउटपुट्स की कीमतों में स्थिरता और मांग में बैलेंस बनाने में मददगार साबित होंगी।
11. कृषि में रिटेल मार्केट बड़े स्तर पर डिजिटाइज्ड हो जाएगा। एक स्टडी के मुताबिक साल 2025 तक भारत के 90 प्रतिशत किराना स्टोर्स डिजिटल टेक्नोलॉजी से जुड़ जाएंगे जो आधुनिक रूप से ट्रेस करने योग्य और पारदर्शी सप्लाई चेन के साथ होगी। कई निजी खिलाड़ी इस खेल में उतर चुके हैं और ग्राहकों को उनके घर तक किराने का सामान पहुंचा रहे हैं। इनमें अमेजन और जियो मार्ट जैसे ब्रांड शामिल हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या किसान इन मॉडर्न तकनीकों का उपयोग कर पाएंगे जहां शिक्षा, होल्डिंग साइज, बुनियादी ढांचा, टेक्नोलॉजी को अपनाने की निम्न दर जैसी कई बाधाएं हैं? उत्पादन प्रक्रिया और उत्पाद की मार्केटिंग अर्थव्यवस्था के पैमाने पर एक सवाल है। इन सभी समस्याओं को सरकार समझ रही है और किसानों के उत्पादक संगठनों, उद्यमियों और स्टार्ट-अप्स के जरिए कई तरह के सामूहिक फैसले सरकार कर रही है।
2011 में जब भारत सरकार ने केन्द्र, राज्य और विभिन्न एजेसिंयों की योजनाओं और कार्यक्रमों के तहत एफपीओ को बढ़ावा देने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था।
फिलहाल, देश में 6 हजार एफपीओ (एफपीसी मिलाकर) हैं। इनकी कई सफलता की कहानियां हैं तो कई प्रयास उतने काम नहीं कर पाए जितने करने चाहिए थे। सवाल यह भी है कि क्या किसान इन सभी प्रक्रियाओं को सीखने में सक्षम है और क्या ट्रेनिंग के बाद वे अकेले इन तकनीकों को इस्तेमाल कर पाएंगे? हालांकि यह एक सबसे अच्छा तरीका है और भारतीय परिस्थितियों के अनुसार खेती में फायदेमंद तरीके से काम करने का यही एकमात्र तरीका है। इसीलिए उम्मीद है कि यह सिस्टम सफल होगा।
उत्पादन, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग, कम्यूनिकेशन और दूसरी सेवाओं में बदलाव लाने के लिए उत्साही, कुशल और नई टेक्नोलॉजी को स्वीकार करने वाले लोगों की जरूरत है। जिससे अर्थव्यवस्था सही दिशा में जा सके।
पिछले कुछ सालों में भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में स्टार्टअप्स ने काफी ध्यान आकर्षित किया है।
स्टार्ट-अप्स को अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए काफी महत्वपूर्ण साधन माना जाता है और ये कई तरह की समस्याओं का बेहतर समाधान देते भी है। अच्छे परिणाम देने वाले स्टार्टअप को बढ़ाने और बनाने के लिए सरकार काफी प्रयास कर रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए खेती में नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ाने के लिए 16 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री ने स्टार्टअप इंडा योजना की शुरूआत की थी। डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए बुआई से पहले और कटाई के बाद के कार्यों के लिए स्टार्टअप की संख्या को बढ़ाया जा रहा है।
कुलमिलाकर कृषि टेक्नोलॉजी के द्वारा बहने के कगार पर है, जिसमें दशकों नहीं बल्कि कुछ साल ही लगेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग, बड़ा डेटा, ब्लॉकचेन बेहद तेज इंटरनेट कनेक्शन के सपोर्ट से एक पौधे और फसल का एकदम सटीक देखभाल करने जा रही हैं।
किसानों को अपने खेत में आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं को संभालने के कौशल में महारत हासिल करने की जरूरत है। बिजली का बटन चालू करने के अलावा खेतों में बीज बोने की तारीख से कीटों का पता लगाने, कीटनाशकों की सही मात्रा और अपनी फसल को सही दामों पर बाजार में बेचने के काम में इंसानों का ज्यादा काम नहीं रहेगा।
कॉरपोरेट और स्टार्टअप अपनी कृषि सेवाओं को आईटी और आईटीईएस आधारित मॉडलों के साथ किराए पर लेंगे ताकि किसान की इनपुट लागत में वृद्धि न हो लेकिन इससे दक्षता और प्रभावशीलता निश्चित रूप से बढ़नी चाहिए। आइए, एक ऐसा भविष्य देखें जहां किसान बदलावों को सकारात्मक रूप से स्वीकार करे और खेती को लाभकारी और अनुमानित बनाने के लिए कॉर्पोरेट अपनी विशेषज्ञता और मशीनों को खेतों तक लाए। किसान दुनिया में धनी कबीले की अगली नस्ल हैं। यह कुछ यूरोपीय देशों और अमेरिकी राज्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में है। जीडीपी योगदान के मामले में कृषि का योगदान प्रतिस्पर्धी रूप से बढ़ेगा। हम औद्योगीकरण की अगली लहर को उद्योगों में नहीं बल्कि कृषि में देखेंगे और इससे कार्बन फुटप्रिंट की भी बचत होगी।
लेखिका स्वामी केशवानंद राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी बीकानेर के इंस्टीट्यूट ऑफ एग्री बिजनेस मैनेजमेंट की डायरेक्टर हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं