मध्य प्रदेश में समर्थन मूल्य से नीचे बिक रही है मूंग, सरकारी खरीद का इंतजार

मध्य प्रदेश में सरकारी खरीद शुरू न होने के कारण किसान मूंग की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं
मध्य प्रदेश में किसानों के खलिहान में मूंग की फसल पड़ी हुई है, जबकि मॉनसून भी आ चुका है। फोटो: राकेश कुमार मालवीय
मध्य प्रदेश में किसानों के खलिहान में मूंग की फसल पड़ी हुई है, जबकि मॉनसून भी आ चुका है। फोटो: राकेश कुमार मालवीय
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मध्यप्रदेश में किसानों के लिए वरदान कही जाने वाली मूंग की उपज का खलिहानों और आंगन में लगा ढेर चिंता का सबब बनता जा रहा है। वजह यह है कि सरकार ने अब तक समर्थन मूल्य पर खरीदी शुरू नहीं की है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन के आंकड़े बताते हुए सरकार और कृषि विभाग के अफसरान गदगद है, पर खरीद शुरू करवाने के लिए केंद्र की तरफ देख रहे हैं।

इधर किसानों को खरीफ सीजन की अगली फसल की तैयारी के लिए रुपयों का इंतजाम करना है, इसके लिए वे समर्थन मूल्य से दो से तीन हजार कम कीमत पर व्यापारियों को उपज बेचने को मजबूर है। आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने ग्रीष्मकालीन मूंग का समर्थन मूल्य 7,275 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन फिलहाल मप्र की मंडियों में 4,500 से 6,000 रुपए प्रति क्विंटल की ही बोली व्यापारी लगा रहे हैं, करीब 2500 रुपए कम मूल्य पर मूंग बेचनी पड़ रही है।

मप्र के नर्मदापुरम जिले के जुझारपुर गांव के किसान राजू चौधरी कहते हैं कि “मूंग की फसल कड़ी मेहनत मांगती है। कम समय में खेत तैयार करो ऊपर से निगरानी भी ज्यादा। मूंग के उत्पादन में किसान इल्ली और अन्य कीटों से फसल को बचाने के लिए कम से कम चार बार कीटनाशक का उपयोग करते हैं। वहीं जरा सी भी देर होने पर बारिश होने का खतरा मंडराता है, ऐसे में फसल सुखाने के लिए भी दवा का उपयोग करना पड़ता है। इसके बावजूद सही दाम नहीं मिले तो इतनी मेहनत का क्या फायदा?” राजू की तरह सैकड़ों किसान इस इंतजार में कटी हुई मूंग की देखभाल में जुटे हैं जिससे सही दाम मिल सके।

कृषि विभाग के मुताबिक मप्र में इस वर्ष 12 लाख हेक्टे्यर में ग्रीष्म कालीन मूंग की बुवाई की गई थी। इसके चलते लगभग 15 लाख टन उत्पादन का अनुमान जताया जा रहा है,  जबकि केंद्र सरकार ने इस साल राज्य से 2 लाख 25 हजार टन मूंग खरीदने का लक्ष्य तय किया है। ऐसे में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से पूरी मूंग का उपार्जन समर्थन मूल्य पर करने की मंजूरी मांगी है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चिट्ठी लिखकर लक्ष्य वृद्धि की मांग की है। पिछले साल भी केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के निवेदन पर खरीदी बढ़ाकर 2 लाख 40 हजार टन किया था, जबकि सरकार ने लगभग 4 लाख टन का उपार्जन किया था।

काबिले गौर है कि यदि केंद्र से मंजूरी मिलती है तो समर्थन मूल्य पर होने वाली खरीदी का वित्तीय बोझ प्रदेश सरकार पर नहीं आएगा। राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल ने स्वीकार किया कि केंद्र सरकार ने उपार्जन के लिए जो लक्ष्ल तय किया है वो काफी कम है। उन्होंने केंद्र से उपार्जन का लक्ष्य बढ़ाने की मंजूरी मांगी गई है, मंजूरी मिलते ही उपार्जन शुरू किए जाने की उम्मीद है।

हरदा जिले के किसान राम इनानिया कहते हैं कि ग्रीष्मकालीन मूंग के लिए 8 जून से पंजीयन किए जाने थे, लेकिन अभी तक पंजीयन भी शुरू नहीं हो सके, यानी बिक्री के लिए लंबा इंतजार बाकी है। वह कहते हैं कि हरदा मंडी में व्यापारी जो रेट दे रहे हैं, उससे लागत भी नहीं निकल पा रही है। यदि समर्थन मूल्य पर खरीदी हो तो उन्हें लागत निकालने पर प्रति क्विंटल दो से तीन हजार रुपए तक का लाभ हो सकता है।

किसानों की मजबूरी का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि एक दिन में छोटी कृषि मंडियों में भी दो से ढाई हजार क्विंटल मूंग व्यापारियों को बेची जा रही है। नर्मदापुरम जिले की ही बानापुरा कृषि उपज मंडी में 20 जून को 2515 क्विंवल मूंग की आवक हुई। यहां मूंग का न्यूनतम रेट 3050 और अधिकतम 5970 प्रति क्विंटल रहा। तोरनिया गांव के किसान बलराम अहीरे कहते हैं कि सरकार ने जल्दी समर्थन मूल्य पर खरीदी शुरू नहीं की तो मजबूरी में किसान और इंतजार नहीं कर सकेंगे और ऐसे ही दाम पर उपज बेचनी होगी।

समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदी शुरू नहीं होने से क्रांतिकारी किसान मजदूर संगठन ने आंदोलन की चेतावनी दी है। 

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