क्या दाल संकट की ओर बढ़ रहा है भारत, क्यों है सरकार बेचैन?

केंद्र सरकार ने हाल ही में दाल व्यापारियों और मिलर्स की बैठक लेकर हर सप्ताह स्टॉक बताने का निर्देश दिया है
क्या दाल संकट की ओर बढ़ रहा है भारत, क्यों है सरकार बेचैन?
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मार्च के दूसरे पखवाड़े और अप्रैल के शुरुआती दिनों में बारिश व ओलावृष्टि की वजह से दलहन के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। यही वजह है कि कम उत्पादन का दाल कीमतों पर असर न पड़े, इसके लिए सरकारी प्रयास शुरू हो गए हैं। इसके लिए सबसे पहले दाल व्यापारियों और मिलरों पर नकेल कसी जा रही है।

शनिवार 15 अप्रैल 2023 को इंदौर में केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने दाल व्यापारियों की बैठक ली। सिंह ने व्यापारियों से कहा कि वे हर शुक्रवार को दालों के स्टॉक की जानकारी सरकार को दें, ताकि देश में दालों का स्टॉक कितना है, यह जानकारी सरकार के पास हो।

रोहित सिंह ने पत्रकारों को बताया कि शनिवार को देश के अलग-अलग हिस्सों में 12 जगह उपभोक्ता मंत्रालय के अधिकारियों ने दाल व्यापारियों से बात की और आग्रह किया कि वे हर शुक्रवार को दालों के स्टॉक की जानकारी मंत्रालय के पोर्टल पर अपलोड कर दें, लेकिन यदि व्यापारी ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

यूं तो साल 2022-23 की विपणन सीजन का तीसरा अग्रिम अनुमान मई के मध्य में जारी होगा, लेकिन जिस तरह से दलहन उत्पादक राज्यों में मार्च के दूसरे पखवाड़े व अप्रैल के पहले पखवाड़े में भारी बारिश और ओलावृष्टि हुई है, उसका असर दालों के उत्पादन पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

फसलों का अग्रिम अनुमान केंद्रीय कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है। 14 फरवरी 2023 को जारी दूसरे अग्रिम अनुमान में 2022-23 विपणन सीजन में दालों के कुल उत्पादन में पिछले सीजन (2021-22) के मुकाबले वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। लेकिन अगर लक्ष्य की बात करें तो दालों के उत्पादन में गिरावट का अनुमान है।

2021-22 में दालों का कुल उत्पादन 273.02 लाख टन हुआ था, जबकि दूसरे अग्रिम अनुमान में 278.10 लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। जबकि चालू वर्ष का लक्ष्य 295.50 लाख टन रखा गया था।

सभी दानों के उत्पादन में वृद्धि के अनुमान के बावजूद अरहर (तूर) के उत्पादन में गिरावट ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। बीते खरीफ सीजन में देश में अरहर उत्पादन का लक्ष्य 45.50 लाख टन रखा गया था, लेकिन दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक अरहर का उत्पादन 36.66 लाख टन ही हो पाया, जबकि पिछले साल 42.20 लाख टन हुआ था।

अरहर का उत्पादन कम होने की वजह बुआई के रकबे में गिरावट मानी जा रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2022 में देश में 42 लाख हेक्टेयर में अरहर लगाई गई थी, जबकि इससे पिछले साल यानी 2021 में 47.55 लाख हेक्टेयर में अरहर की बुआई की गई थी। अरहर की फसल छह से आठ महीने के बीच पककर तैयार होती है। इसकी बुआई जून-जुलाई में होती है।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल बताते हैं कि अरहर लगभग आठ महीने खेतों में खड़ी रहती है, जबकि उसकी अपेक्षा चना और मूंग काफी कम समय में पककर तैयार हो जाती है, इसलिए किसानों का रूझान अरहर की बजाय चना और मूंग पर अधिक हो गया है। उन्होंने बैठक में भी यह मुद्दा उठाया था कि या तो किसानों को अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक दिया जाए। या ऐसे बीज विकसित किए जाएं, ताकि अरहर की फसल जल्दी तैयार हो जाए। रोहित सिंह ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इस दिशा में काम कर रहा है।

अरहर के साथ-साथ उड़द में भी गिरावट का अनुमान है। कृषि मंत्रालय ने इस साल 37 लाख टन उड़द के उत्पादन का लक्ष्य रखा है, लेकिन दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 26.82 लाख टन उड़द के उत्पादन का अनुमान है, जबकि पिछले 27.76 लाख टन उड़द का उत्पादन हुआ था। लेकिन चना, मूंग और मूसर के उत्पादन में वृद्धि का अनुमान लगाया गया था।

हालांकि तीसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े सामने आने के बाद ही पता चलेगा कि दालों के उत्पादन में कितनी कमी आ सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दाल व्यापारी इस स्थिति का फायदा उठाने का प्रयास कर रहे हैं, जिस वजह से उपभोक्ता मंत्रालय का सक्रिय होना एक अच्छा कदम है। कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग के दलहन विकास निदेशालय के पूर्व निदेशक एके तिवारी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 15 मार्च और अप्रैल के पहले सप्ताह में कुछ जगहों में बारिश के कारण चने को नुकसान पहुंचा है। खासकर राजस्थान और मध्य प्रदेश से नुकसान की खबरें आई हैं, लेकिन यह नुकसान 3 से 5 प्रतिशत का ही है, लेकिन कुल मिला उत्पादन में कमी आने की आशंका नहीं है।

तिवारी बताते हैं कि देश में रबी सीजन में 52 प्रतिशत और खरीफ सीजन में 48 प्रतिशत दलहन पैदा होता है। और अगर केवल रबी सीजन की बात की जाए तो इस सीजन की दो प्रमुख दलहन फसल हैं चना और मसूर। रबी सीजन में होने वाले कुल उत्पादन में चने की हिस्सेदारी 66 प्रतिशत है।

सामान्यतया देश में रबी सीजन में 110 लाख हेक्टेयर चना लगाया जाता है, लेकिन चालू रबी सीजन (2022-23) में 7 प्रतिशत अधिक बुवाई हुई थी, जबकि उत्पादन में 18 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जबकि मसूर का सामान्य रकबा 14 लाख हेक्टेयर है और चालू सीजन में 21 प्रतिशत रकबे में वृद्धि हुई है और 19 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि का अनुमान है। ऐसे में बारिश की वजह से होने वाले नुकसान से तुलना की जाए तो भी इन दो दालों के उत्पादन में बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ने वाला। 

जहां तक बीते खरीफ सीजन (2022-23) की बात है तो खरीफ सीजन में दलहन का रकबा केवल 6 प्रतिशत कम है और उत्पादन में तीन प्रतिशत की कमी का अनुमान है। लेकिन रबी में 170 लाख हेक्टेयर रकबा कवर हुआ है, जो पिछले वर्ष 11 प्रतिशत अधिक है। इसलिए दोनों सीजन की कुल दलहन की बात की जाए तो 30 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है, जो पिछले साल के मुकाबले तीन प्रतिशत रकबा और 13 प्रतिशत दलहन (दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक) का उत्पादन बढ़ा है। 

तिवारी से जब सरकार की बैचेनी का कारण बताने को कहा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पौष्टिकता पर भी ध्यान दे रही है। इसलिए सरकार अतिरिक्त सर्तकता बरत रही है।

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