जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 31,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता

संसद में सात फरवरी को पूछे गए सवालों के जवाब में सरकार ने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय चरम मौसमी घटनाओं से प्रभावित फसलों और फसल चक्रों के बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं रखता
सरकार सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर) में परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है।
सरकार सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर) में परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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देश में जैविक खेती को बढ़ावा देना

संसद का बजट सत्र लगातार जारी है, इसी बीच कल, यानी सात फरवरी को जैविक खेती को लेकर संसद में उठाए गए एक सवाल के लिखित जवाब में, कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ने राज्यसभा में बताया कि सरकार सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर) में परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है।

पूर्वोत्तर राज्यों के लिए, सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) योजना को लागू कर रही है। दोनों ही योजनाएं जैविक खेती में लगे किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन और कटाई के बाद प्रबंधन प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण तक के लिए शुरू से अंत तक समर्थन पर जोर देती हैं।

पीकेवीवाई के तहत, जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए तीन साल की अवधि के लिए प्रति हेक्टेयर 31,500 रुपये की सहायता प्रदान की जाती है। इसमें से, जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को ऑन-फार्म या ऑफ-फार्म जैविक खेती के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से तीन साल की अवधि के लिए 15,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है।

ठाकुर ने कहा कि मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) के तहत किसान उत्पादक संगठन के निर्माण, जैविक खेती के लिए किसानों को सहायता आदि के लिए तीन सालों के लिए 46,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है। इसमें से, किसानों को तीन सालों के लिए 32500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें योजना के तहत किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में 15,000 रुपये की राशि भी शामिल है।

देश में टीबी उन्मूलन अभियान

सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने लोकसभा में बताया कि सरकार ने हिमाचल प्रदेश के आठ जिलों सहित 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 347 प्राथमिकता वाले जिलों में 100 दिनों का सघन टीबी मुक्त भारत अभियान शुरू किया है। ताकि टीबी से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों में तेजी लाई जा सके।

अभियान में शामिल कुल जिलों में से 38 आदिवासी, 27 खनन और 46 आकांक्षी जिले हैं। अभियान टीबी के छूटे हुए मामलों को खोजने, टीबी से होने वाली मौतों को कम करने और नए मामलों को रोकने के लिए नए नजरिए पर आधारित है।

दुर्लभ रोगों का वर्गीकरण

संसद में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में, दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीआरडी), 2021 का हवाला देते हुए कहा, देश में 63 बीमारियों को दुर्लभ रोगों के रूप में पहचाना गया है। वर्गीकृत दुर्लभ रोगों की सूची स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

हिमाचल प्रदेश में नई वाटरशेड विकास परियोजनाओं को मंजूरी

हिमाचल प्रदेश में नई वाटरशेड बनाने को लेकर कल, सदन में एक सवाल उठाया गया। अपने लिखित जवाब में, ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने लोकसभा में बताया कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 के वाटरशेड विकास के अंतर्गत, भूमि संसाधन विभाग ने अब तक हिमाचल प्रदेश को 0.54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाली 26 परियोजनाओं को मंजूरी दी है।

इनकी कुल लागत 151.20 करोड़ रुपये (केंद्रीय हिस्सा: 136.08 करोड़ रुपये) है। योजना की शुरुआत से लेकर अब तक राज्य को केंद्रीय हिस्से के रूप में 55.77 करोड़ रुपये की राशि जारी की जा चुकी है।

पेम्मासानी ने कहा, भूमि संसाधन विभाग ने हिमाचल प्रदेश सहित सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 के अंतर्गत 2024-25 के दौरान अतिरिक्त वाटरशेड परियोजनाओं को मंजूरी देने का निर्णय लिया है।

देश में चरम मौसमी घटनाओं के कारण फसलों का नुकसान

कल, यानी सात फरवरी को कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में उत्तर देते हुए कहा कि चरम मौसमी घटनाओं से प्रभावित फसलों और फसल चक्रों के बारे में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है, जो पहले से ही उनके पास मौजूद राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से सूखे सहित अधिसूचित आपदाओं के मद्देनजर प्रभावित लोगों को वित्तीय राहत प्रदान करती हैं।

हालांकि गंभीर प्रकृति की आपदा की स्थिति में, निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) से अतिरिक्त वित्तीय सहायता दी जाती है, जिसमें अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय दल (आईएमसीटी) के दौरे के आधार पर मूल्यांकन शामिल है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय सूखे, ओलावृष्टि, कीटों के हमले और शीत लहर के लिए एनडीआरएफ के तहत वित्तीय सहायता के लिए राज्य सरकार के अनुरोध का आधार पर जांच करता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के साथ-साथ मौसम सूचकांक आधारित पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं और प्रतिकूल मौसम की घटनाओं से उत्पन्न फसलों के नुकसान से पीड़ित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करके फसल की विफलता के खिलाफ एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है।

ग्राम पंचायतों और सरपंचों के बीच जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना

संसद में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कल, कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में बताया कि वर्तमान में, सर्वश्रेष्ठ जलवायु अनुकूल प्रथाओं को अपनाने वाले गांवों को मान्यता देने के लिए रैंकिंग प्रणाली शुरू करने की कोई योजना नहीं है।

हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) नामक एक नेटवर्क परियोजना को लागू कर रही है, जो कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर अध्ययन करती है और संवेदनशील क्षेत्रों के लिए कृषि में जलवायु अनुकूल तकनीकों को बढ़ावा देती है।

जलवायु परिवर्तन प्रोटोकॉल पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार मुख्य रूप से 651 कृषि प्रधान जिलों के लिए जिला स्तर पर जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि को खतरे और संवेदनशीलता का आकलन किया गया है। संवेदनशील के रूप में पहचाने गए 310 जिलों में से 109 जिलों को 'बहुत अधिक' और 201 जिलों को 'अत्यधिक' संवेदनशील के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

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