कितनी सफल रहेगी पंजाब में गेहूं-धान से किसानों का मोहभंग करने की कोशिश?

पंजाब सरकार ने धान के प्रति किसानों का मोह भंग करने के लिए एक कमेटी बनाई है, इस पर विशेषज्ञ व किसान क्या कहते हैं
कितनी सफल रहेगी पंजाब में गेहूं-धान से किसानों का मोहभंग करने की कोशिश?
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पंजाब सरकार ने एक कमेटी बनाई है, जो राज्य में धान की फसल के उत्पादन के अलावा अन्य फसलों को बढ़ावा देने की संभावनाओं की तलाश करेगी। कमेटी को 30 जून तक रिपोर्ट देनी है। लेकिन विशेषज्ञ व किसानों को नहीं लगता कि इस कवायद से कोई हल निकलने वाला है।

कमेटी के सदस्य डॉ. गुरुकमल सिंह कहते हैं, “हम सभी स्टेक होल्डर्स (हितधारकों) से मीटिंग कर रहे हैं, कौन सी फसल को बढ़ावा देना है, कहां पानी की समस्या है इन सभी को ध्यान में रखकर ही रिपोर्ट तैयार की जाएगीI”

दरअसल हरित क्रांति के बाद पंजाब में गेहूं और धान का उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन उसके बदले में पंजाब को काफी कीमत भी चुकानी पड़ी। कमेटी राज्य में मूंग, बासमती, दालों और कपास को बढ़ावा देने पर विचार कर सकती है। कपास के लिए नहर का पानी उपलब्ध कराया जाएगा। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित बीजों पर 33% सब्सिडी की भी योजना है।

गेहूं-धान का सबसे बुरा असर पंजाब के भूजल स्तर पर पड़ा है। भठिंडा, मानसा, संगरूर, मुक्तसर, फरीदकोट फाजिल्का आदि में भू-जल 150 से 200 मीटर नीचे पहुंच चुका है। पहले यहां कपास लगाया जाता था। लेकिन बाद में धान की खेती शुरू कर दी।

यूपीए सरकार में प्लानिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया के नेतृत्व में बनी कमेटी ने वर्ष 2020 में सुझाव दिया था। कि सरकार उन क्षेत्रों से धीरे-धीरे धान की खरीद कम कर दे, जहां पानी की समस्या है।

जबकि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रो. कमल वत्ता कहते हैं कि किसी दूसरी फसल की ओर किसान को मोड़ने के लिए दो चीजें अहम होती हैं, आय और रिस्क फैक्टर। अगर किसान को आमदनी होगी तो वो आएगा। मार्केट और सरकारी खरीद भी होना जरूरी है। नहीं तो किसानों को पारंपरिक खेती से हटाना आसान नहीं होगा।”

गेहूं-धान की एमएसपी पर खरीद ने भी किसानों को इस ओर ज्यादा मोड़ा। किसानों को एक निश्चित आय नजर आने लगी। जबकि बाकी फसलों की एमएसपी पर खरीद न होने से बाजार के भरोसे रहने का जोखिम अधिक दिखने लगा।

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, “पहले भी कई कमेटियां बनी हैं, जिनकी रिपोर्ट आईं लेकिन पंजाब के किसान गेहूं और धान से नहीं हट रहे। कारण साफ है एक निश्चित मूल्य मिलना। चूंकि एमएसपी केंद्र सरकार देती है। इसलिए इसमें केंद्र सरकार को भी आगे आना होगा। सिर्फ राज्य के आगे आने से कुछ नहीं होगा। जब एमएसपी पर दूसरी फसलें केंद्र सरकार खरीदेगी तभी पंजाब के किसानों को गेहूं-धान से हटाया जा सकता है।”

पंजाब के फतेहगढ़ में रहने वाले किसान हरप्रीत सिंह गिल बड़े पैमाने पर आलू, खरबूजा, सूरजमुखी और मूंग और गेहूं की खेती करते हैं। लेकिन अभी सभी खेतों में धान की तैयारी कर रहे हैं। दूसरी फसलों के जोखिम को समझाते हुए किसान हरप्रीत सिंह गिल कहते हैं, “अभी तक राज्य में कोई एग्री पॉलिसी ही नहीं बन पाई है, जिससे सब्जी, तिलहनी और दलहनी फसलों की बात की जाए। इसलिए किसान गेहूं-धान को कैश क्रॉप मानते हैं।”

पंजाब में फसल विविधता के बारे में उदाहरण देते हुए गिल कहते हैं कि अगर सब्जी उगाते हैं तो मार्केट में सब्जी ज्यादा होने से रेट गिर जाते हैं। लागत नहीं लौट पाती। अभी मार्केट में सूरजमुखी की ही बात करें, किसानों को पिछले साल 6000-6500 रुपये प्रति कुंतल मिले थे, जबकि एमएसपी 6400 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित है। इस साल मंडी में सूरजमुखी का भाव 3800-4200 रुपये प्रति कुंतल ही चल रहा है। अब जाहिर है किसान इससे दूर होंगे। बाजार और निश्चित आय के साथ ही यह भी देखना होगा कि पंजाब के किस क्षेत्र में कौन सी फसल को बढ़ावा दिया जाए। जैसे आलू के लिए यहां का मौसम बहुत अच्छा होता है, तो इसके लिए सहूलियतें और कोल्ड चेन को बढ़ावा देना होगा।”

पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी धान की जगह दूसरी फसलों के उगाने पर अनुदान की घोषणा की गई थी, किसानों का इससे मोहभंग हो गया। इसके बारे में करनाल के बल्ला गाँव निवासी संदीप सिंग्रोहा बताते हैं, “किसानों को अनुदान तो मिला नहीं, फसल की खरीद न होने किसानों ने खेत में ही फसल को जोत दिया। हरियाणा की मंडियों में मक्के को एमएसपी पर खरीदा ही नहीं गया। मक्के का एमएसपी 1962 रुपये प्रति कुंतल है, जबकि पुराना मक्का मंडियों में 1500-1600 रुपये प्रति कुंतल बिक रहा है। यही हाल सूरजमुखी का है।” 

धान-गेहूं का रकबा और उत्पादन बढ़ा, बाकी फसलें कम हुईं

हरित क्रांति ने पंजाब की किसानी और किसानों को बदल दिया। किसान गेहूं-धान के ऊपर ज्यादा जोर देने लगे। जैसे-जैसे गेहूं-धान का रकबा बढ़ता गया वैसे ही अन्य फसलों के उत्पादन में कमी आती गई। 1971-72 में जितने क्षेत्रफल में गेहूं की बुआई की गई, उसका रकबा 2014-15 में 150% गुना बढ़ गया। सबसे बड़ा बदलाव धान की खेती में आया। वर्ष 1971-72 से वर्ष 2014-15 तक धान के रकबे में 660% की बढ़ोत्तरी आई। जबकि इसी बीच कपास, मक्का, दलहन और तिलहन के क्षेत्रफल में कमी आती गई।  

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