पिछले साल दिसंबर में भारत के तंगहाल कृषि क्षेत्र के लिए तत्काल कदम उठाने और मीडिया में मचे हो-हल्ले के बीच केंद्र सरकार ने महंगाई से संबंधित आंकड़े जारी किए।
भारत की थोक और खुदरा महंगाई क्रमश: 3.8 और 2.2 प्रतिशत थी। ऐसी स्थिति में नरेंद्र मोदी सरकार चुनावों में अपनी पीठ नहीं थपथपा सकती क्योंकि कृषि क्षेत्र के ऐसे आंकड़े रंग में भंग डाल देते हैं।
महंगाई की यह दर 18 महीनों में सबसे कम थी। यह वह समय था जब किसान अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। वे गेहूं और प्याज जैसे उत्पाद खुले में बर्बाद कर रहे थे क्योंकि वे अपने निवेश का 30 प्रतिशत भी वसूल नहीं कर पा रहे थे।
आइए यह समझने की कोशिश करते हैं कि इस क्षेत्र के लिए महंगाई कम होना चिंता का विषय क्यों है तथा किसानों की परेशानी से इसका क्या संबंध है।
दरअसल यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 28 जनवरी 2016 को उत्तर प्रदेश के बरेली में किसान रैली में किए गए इस वादे को तोड़ती है कि वर्ष 2022 तक उनकी आय दोगुनी हो जाएगी। इसका आधा समय बीत चुका है।
महंगाई संबंधी ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि जुलाई 2018 से प्राथमिक खाद्य वस्तुओं की कीमत नकारात्मक रही हैं, जब महंगाई की दर शून्य से नीचे थी।
इस स्थिति को अवस्फीति भी कहा जाता है। यह थोक बाजार में होता है जहां किसान अपनी फसल बेचते हैं जिसका मतलब यह है कि किसानों को कोई आमदनी नहीं हो रही है।
वर्ष 2008-09 में खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति ने समग्र मुद्रास्फीति को बढ़ाया था जिसके कारण 2014 में तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार गिर गई थी। हालांकि इस बार खाद्य पदार्थों की अवस्फीति से समग्र सूचकांक नीचे नहीं आ रहा है, फिर भी किसानों की आय पर बहुत बड़ा संकट पैदा हो गया है।
इस समय वैश्विक रूप से कृषि उत्पादों की कीमतों में गिरावट आ रही है। एक ओर जहां कृषि क्षेत्र में भारत का निर्यात प्रभावशाली नहीं है, वहीं दूसरी ओर यदि किसान निर्यात करना भी चाहें तो कीमतें उत्साहवर्धक नहीं हैं।
वादा करने के तीन वर्षों में से दो वर्षों 2017-18 में खाद्य उत्पादों की कीमत में गिरावट के कारण आय का स्तर भी कम रहा है। किसानों की आमदनी इतनी नहीं रही है कि वह अपनी आय को दोगुना करने के रास्ते पर पहुंच सकें।
किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना एक सामान्य रुझान बन गया है। खाद्य वस्तुओं का थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) वर्ष 1981-82 से अधिकांश वर्ष कृषि निवेश से कम था। निवेश लागत में वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक कारण सिंचाई, बिजली और कीटनाशक तथा उर्वरकों की लागत में बढ़ोतरी होना है।
यदि हम भारत में किसानों की औसत आय को देखें तो पाएंगे कि इसमें मुश्किल से ही कोई बढ़ोतरी होती है।
वर्ष 2004-14 में एक कृषि परिवार औसतन 214 रुपए प्रतिमाह कमा रहा था तथा 207 रुपए खर्च कर रहा था। उनके पास केवल 7 रुपए बच रहे थे। 4 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर की बदौलत यह किसानों के लिए ‘रिकवरी चरण’ के रूप में देखा जाता है।
वर्ष 2015 से भारत दो बड़े अकालों का सामना कर चुका है तथा बेमौसम बारिश व मौसमी घटनाओं से फसल बर्बाद होने के 850 मामले सामने आए हैं। आखिरकार, दो वर्ष अच्छी फसल होने से कीमतों में भारी गिरावट आई है। इन सर्दियों में किसानों ने कम बुआई की है तथा लगभग 300 जिले सूखे से प्रभावित हुए हैं। इसका अर्थ है कि न तो किसानों के पास निवेश के लिए पूंजी बची है और न ही वे खेती करने का जोखिम उठाना चाहते हैं। इससे संकट बढ़ा है जिसने विरोध का रूप ले लिया।
कम आय के बावजूद, कई अध्ययन यह बताते हैं कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य प्राप्त करना संभव नहीं है।
किसानों की आय में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि के आधार पर नीति आयोग द्वारा कराए गए अपनी तरह के पहले अध्ययन के परिणामों के अनुसार, वास्तविक मूल्य (मुद्रास्फीति के लिए समायोजित) पर किसानों की आय केवल 3.8 प्रतिशत बढ़ी है। इस दर से मोदी सरकार के वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकेगा। इसे हासिल करने में 25 वर्ष लग जाएंगे।
इसके अलावा, ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉर्पोरेशन एंड डेवलपमेंट और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च इन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के अनुसार, वर्ष 2014-16 के लिए कृषि राजस्व में प्रतिवर्ष 6 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह अवधि सवालों के घेरे में है। ऐसे में यह सफाई दी जा सकती है कि आय दोगुना करने का वादा आय पर आधारित है, इसलिए इसे पूरा किया जा सकता है।
नीति आयोग के सदस्य रमेश चन्द के अनुसार, वर्ष 2001-14 में भारत के फसल क्षेत्र की वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत थी। इस दर से सात वर्षों (2021) में केवल कृषि से होने वाली आय 18.7 प्रतिशत हो जाएगी। लेकिन सरकार लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मवेशियों से होने वाली आय को भी इसमें शामिल करना चाहती है। यदि इसे जोड़ा जाता है, तो वर्ष 2022 तक आय 27.5 प्रतिशत हो जाएगी। लेकिन यदि किसानों की आय के सभी संभावित स्रोतों में होने वाली बढ़ोतरी को शामिल किया जाए तो 2025 तक आय में 107.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।
भारत के कर्जदार परिवारों में से लगभग 43 प्रतिशत परिवार किसान हैं। मौजूदा योजना के केंद्र में यही हैं और यही कृषि संकट से सबसे अधिक प्रभावित हैं। तीन महीनों में होने वाले चुनाव में यही लोग सत्तारूढ़ दल पर भारी पड़ सकते हैं।