एक ओर जहां केंद्र सरकार दावा कर रही है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल धान की सरकारी खरीद अब तक 20 फीसदी से अधिक की जा चुकी है, लेकिन कुल खरीद में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 2 फीसदी से भी कम है।
26 अक्टूबर को जारी सरकारी विज्ञप्ति के मुताबिक 25 अक्टूबर तक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, चंड़ीगढ़, जम्मू-कश्मीर, गुजरात और केरल में धान की खरीद चल रही है और इन राज्यों 151.17 लाख क्विंटल धान की सरकारी खरीद हो चुकी है, जबकि पिछले साल 125.05 लाख टन खरीद की गई थी। यानी कि इस साल अब 20.89 प्रतिशत अधिक धान खरीदी जा चुकी है।
हालांकि प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की इस विज्ञप्ति के में यह तो बताया गया है कि कुल खरीद में से 100.89 लाख टन धान पंजाब से खरीदी गई है, जो पिछले साल के मुकाबले लगभग 66.71 लाख टन अधिक है, लेकिन अन्य राज्यों की जानकारी नहीं दी गई है। दरअसल अब तक जो खरीदारी की गई है, उसमें पंजाब और हरियाणा की हिस्सेदारी प्रमुख है। इससे पहले भी ऐसा ही होता रहा है। यह बात इसलिए भी अहम हो जाती है, क्योंकि पश्चिम बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जहां धान का उत्पादन बहुत ज्यादा होता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में धान की खरीदारी बहुत कम होती है।
इस बार जब नए कृषि कानून बने तो उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी विरोध किया था, तब तुरत-फुरत में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया कि राज्य में बड़े स्तर पर धान की सरकारी खरीद जाएगी। राज्य सरकार ने इस साल 550 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है। लेकिन उत्तर प्रदेश की वेबसाइट के मुताबिक 26 अक्टूबर की शाम सात बजे तक 41387 किसानों से 2.91 लाख क्विंटल धान खरीदी गई है। जबकि उत्तर प्रदेश की वेबसाइट पर 5,75,135 किसान धान की बिक्री के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। अगर देश भर में अब तक हुई कुल खरीद (151 लाख क्विंटल) से तुलना की जाए तो अभी उत्तर प्रदेश में 2 फीसदी से भी कम धान खरीदी गई है और जबकि लक्ष्य से तो कोसों दूर हैं।
राज्य में सरकारी खरीद में ढिलाई का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। सरकारी खरीद न होने के कारण किसान अपनी धान 800 से 1,000 रुपए प्रति क्विंटल से भी कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं। जबकि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1868 रुपए और 1888 रुपए प्रति क्विंटल है। ऐसी स्थिति में अच्छी कीमत पाने के लिए उत्तर प्रदेश के किसान हरियाणा और पंजाब की मंडियों में पहुंच रहे हैं। जहां उन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तर प्रदेश से आ रहे धान से भरे ट्रकों को किसान पकड़ रहे हैं।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद बहुत कम होने के कारण वहां के व्यापारी भी कम कीमत पर खरीद करते हैं। उत्तर प्रदेश के छाता से हरियाणा की अनाज मंडी में धान बेचने आए किसान गंगा लाल बताते हैं कि उनके गांव से कुछ ही दूरी पर कोसी अनाज मंडी है। वहां सरकारी खरीद न के बराबर होती है, इस बार जब हमने वहां के व्यापारी से बात की तो उसने बताया कि वह 900 से 1,000 रुपए क्विंटल के रेट से खरीदेगा। इसलिए हम होडल आकर अपनी धान बेच रहे हैं। जहां व्यापारी (आढ़ती) भी उत्तर प्रदेश के व्यापारियों से अधिक कीमत देता है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह बताते हैं कि पंजाब-हरियाणा जितना धान उत्पादन करता है, उससे अधिक उत्तर प्रदेश में धान होता है, लेकिन सरकार की मंशा न होने के कारण यहां सरकारी खरीद होती ही नहीं है। यही वजह है कि इस बार तो किसान 800 रुपए क्विंटल धान बेचने को मजबूर है।
सिंह बताते हैं कि पीलीभीत जिले में धान की सरकारी खरीद नहीं होती थी तो उन्होंने साल 2000 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट के निर्देश पर धान की खरीद शुरू हुई थी। उस समय अदालत ने पूरे प्रदेश में मानकों को पूरा करने वाली धान की सरकारी खरीद के निर्देश दिए थे, लेकिन अदालत में बार-बार हलफनामा देने के बावजूद सरकार धान की खरीद करती ही नहीं है। इसका खामियाजा किसान को भुगतना पड़ता है। इसलिए हम लगातार एमएसपी अधिकार की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। अगर सरकार तय कर दे कि चाहे सरकारी खरीद हो या प्राइवेट, एमएसपी से कम कीमत पर नहीं खरीदी जाएगी तो ही किसान को घाटे से बचाया जा सकता है।