एक अजीब दुविधा ने देश के कई राज्यों के किसानों को आशंका में डाल दिया है। वहां इस साल आम के पेड़ों पर बढ़िया बौर आता दिख रहा है, इससे उन्हें डर सता रहा है कि कहीं इससे अप्रत्याशित बारिश और उसके चलते तूफान के आसार न बन जाएं। उनके मुताबिक, ऐसी आशंका पारंपरिक ज्ञान में जताई गई है।
केरल के वायनाड की थिरूनेल्ली एग्री प्रोडयूसर कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश कृष्णन ने डाउन टू अर्थ को बताया, हमारे बुजुर्ग ऐसी आशंका जताते रहे हैं कि जिस साल आम के पेड़ों पर अच्छा बौर आता है, उस साल अप्रत्याशित बारिश हो सकती है।
केरल में आम पर इतना अच्छा बौर 2018 में आया था और उस साल राज्य ने सौ साल की सबसे भयंकर बाढ़ का सामना किया था ।
कृष्णन कहते हैं कि, जब बुजुर्ग ऐसा कहते थे, तो हम उनकी बात को हंसी में उड़ा देते थे, लेकिन वास्तव में वे सही साबित हुए।
कृष्णन के मुताबिक, पारंपरिक ज्ञान में यह बताया गया है कि आने वाली बाढ़ या सूखे के खतरे को भांपकर पेड़, पौधे अपना बर्ताव बदलने लगते हैं। जमीन और वातावरण के गर्म होने का संबंध तूफान और बारिश से हो सकता है, पौधों के उगने और उर्जा के संवहन दोनों के लिए गर्मी जरूरी है, लेकिन अधिक होने पर यही प्रक्रिया तूफान को पैदा करती है।
इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू के प्रोफेसर एमडी सुभाष चंद्रन कहते हैं, आम के पेड़ों पर अच्छा बौर आने के लिए दो चीजें जरूरी हैं, वह यह कि उन्हें ज्यादा मात्रा में प्रकाश और गर्मी मिले। गौरतलब है कि पिछले दो महीनों से देश के कई हिस्सों में तापमान सामान्य से ज्यादा है।
लखनऊ के सेंट्रल इंस्टीटयूट ऑफ सबट्राॅपिकल हार्टीकल्चर में क्राॅप इम्प्रूवमेंट एंड बायोटेक्नलाॅजी के प्रमुख शैलेंद्र रंजन ने 2012 में अपने एक पेपर में लिखा था कि जिन क्षेत्रों में आम पाया जाता है, उनमें से ज्यादातर में तापमान ग्रोथ साइकल, समय और बौर आने की आवृति के साथ ही फल की ग्रोथ और उसके स्वाद में प्रभावी भूमिका निभाता है। उनके मुताबिक, सर्दी के मौसम के ठीक बाद आम के पेड़ों पर बौर और उसकी ग्रोथ के लिए सामान्य से ज्यादा तापमान की जरूरत होती है, जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, बौर भी बढ़ता है।
गर्मी के बने रहने का समय बढ़ने के साथ वातावरण की ऊपरी सतहों को बढ़ाने के लिए जमीन के नजदीक हवा भी बढ़ती हैै। इससे अगर इस हवा में कोई नमी होती है, तो वह भी बढ़ती है, जिससे हवा के चक्रवात बनते हैं, जिन्हें संवहन कहते हैं।
इस तरह के संवहन से होने वाले तूफान से पूरे देश में तेज बारिश होती है, इस बारिश के साथ बिजली, बौछारें और धूल भी उड़ती है। गर्मी से इन चीजों के संबंध का किसानों और खेती से जुडे विशेषज्ञों ने दशकों तक निरीक्षण किया है, यही वजह है कि ये बात पारंपरिक धारणा में शामिल हो गई है।
बदलता वातावरण
एक और अजीब चीज जो वायनाड में इस साल देखी जा रही है, वह यह कि आम के पेड़ों पर फूल, कलियां, और फल एक के बाद एक आ रहे हैं। यह असामान्य है, क्योंकि आमतौर पर आम के पेड़ों पर फूल और फल एक साथ आते हैं।
कृष्णन के मुताबिक, यह बदलते वातावरण का एक संकेत हो सकता हैं। वह बताते हैं कि 2020 में केरल में आई बारिश पूरी तरह से असामान्य थी। यह बारिश मानसून के पहले के महीनों यानी मार्च, अप्रैल और मई में हुई थी जबकि जून में थोड़ी बारिश हुई थी और जुलाई, अगस्त व सितंबर लगभग सूखे रहे थे। उसके बाद अक्टूबर में बारिश फिर तेज हो गई थी।
कृष्णन की परिकल्पना से पश्चिमी तटों की इकोलाॅजी के एक्सपर्ट चंद्रन भी सहमति जताते हैं। वह वातावरण में ज्यादा नमी की वजह असाामान्य बारिश को मानते हैं, जिसके चलते आम के पेड़ों पर फूल, कलियां, और फल एक के बाद एक आ रहे हैं।
दरअसल देश के दक्षिणी राज्य केरल में पिछले दो महीनों से तेज बारिश हो रही है। यहां इस साल एक जनवरी से 22 फरवरी के बीच औसत से पांच गुना ज्यादा बारिश हुई है। वायनाड जिले में तो तो सामान्य के पांच गुने से भी ज्यादा बारिश दर्ज की गई। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इसी दौरान कई बार तेज बारिश हुई।
चंद्रन ने कहा कि इन क्षेत्रों में आम के पेड़ों पर अच्छे बौर का आना, इनका भूमध्य रेखा के करीब होने की वजह से भी हो सकता है, लेकिन बौर ज्यादा घना होने की वजह असंवाहनिक मौसम नहीं है। दक्षिण के अन्य हिस्सों और उत्तर भारत में भी अच्छा बौर दिख रहा है। चंद्रन कहते हैं कि स्थानीय वातावरण की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है।
तेलंगाना में एक जनवरी से 22 फरवरी के बीच लगभग सूखे मौसम के बावजूद आम के पेडों पर अच्छा बौर और फूल दिख रहे हैं। यहां इस साल अभी तक औसत से 75 फीसदी कम बारिश हुई है।
दूसरी ओर आर्गेंनिक खेती करने वाले किसान सुरेश देसाई बताते हैं कि कर्नाटक के बेलगाम में इस साल आम के पेडों पर कम फूल आए हैं। उनके मुताबिक, केवल तीस फीसदी आमों के पेडों पर फूल आए हैं।
उनके क्षेत्र में भी यह मान्यता है कि ज्यादा बौर आना, तूफान के आने का संकेत होता है। हालांकि देसाई कम बौर आने से चिंतित नहीं हैं, वह पहले ही आम की विभिन्न किस्मों के पेड़ तैयार कर चुके हैं, जिन पर पहले ही फल आ जाते हैं।
दरअसल वह कुछ दिनो पहले ही इस सीजन के आम की पहली खेप बाजार भेज चुके हैं। वह चट से जवाब देते हैं, अगर तूफान भी आता है तो मेरे आमों के पेड़ से फल नहीं गिरेंगे, क्योंकि वे ऐसे तूफान का सामना करने में सक्षम हैं।