ग्लोबल वार्मिंग: मिट्टी के बढ़ते तापमान के साथ कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा फसलों में कीड़ों का कहर

तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ गेहूं, चावल, और मक्के की फसलों पर कीड़ों का कहर 10 से 25 फीसदी तक बढ़ जाएगा
कॉर्न इयरवॉर्म; फोटो: यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड
कॉर्न इयरवॉर्म; फोटो: यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड
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वैश्विक स्तर पर जिस तरह तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते मिट्टी के तापमान पर असर पड़ रहा है। साथ ही सर्दियों में बढ़ता तापमान भी फसलों की पैदावार को खतरे में डाल सकता है क्योंकि यह फसलों को चट करने वाले कीटों के लिए अनुकूल माहौल तैयार कर रहा है। नतीजन कीटों का कहर दक्षिण के साथ-साथ उत्तर के सर्द इलाकों में भी बढ़ रहा है।

इस बारे में नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि ऐसे में मिट्टी का तापमान कॉर्न इयरवॉर्म (हेलिकोवरपा जिया) जैसे कीड़ों के प्रसार की प्रभावी निगरानी और भविष्यवाणी करने में मददगार साबित हो सकता है। गौरतलब है कि कॉर्न इयरवॉर्म नामक यह कीट मकई, कपास, सोयाबीन, मिर्च, टमाटर और अन्य सब्जियों की फसलों को अपना निशाना बनाता है।

शोध के अनुसार मिट्टी के तापमान की मदद से न केवल इस कीट के प्रकोप की बेहतर निगरानी की जा सकती है, साथ ही इसकी मदद से कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग और पर्यावरण पर पड़ते उसके प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। यह अध्ययन मंगलवार को जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुआ है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ऐतिहासिक रुप से एकत्र किए मिट्टी के तापमान संबंधी आंकड़ों को इयरवॉर्म मॉनिटरिंग डेटा के साथ जोड़कर देखा है। साथ ही कैसे यह कीट ठंड में भी सफल रहता है इसको समझने के लिए लैब में उसे ठन्डे वातावरण में रखकर जानने का प्रयास किया है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने रिसर्च में यह भी समझने का प्रयास किया है कि कैसे कॉर्न इयरवॉर्म ठंडे महीनों में मिट्टी के भीतर भी जीवित रह सकता है।

सर्दियों में इनके पनपने की सम्भावना को और बढ़ा रहा है जलवायु में आता बदलाव

शोधकर्ताओं के मुताबिक चूंकि यह कीट लम्बी दूरी तक प्रवास कर सकता है, ऐसे में यह सर्दियों के मौसम में कहीं ज्यादा दूरी तक प्रवास कर सकता है। देखा जाए तो सर्दियों के मौसम में भी इस कीट के सफलतापूर्वक जीने की क्षमता उन क्षेत्रों में भी इसके प्रसार को बढ़ा सकती है, जहां यह पनप सकते हैं और पहले नहीं पाए जाते थे।

आशंका है कि इससे फसलों को होने वाले नुकसान की सम्भावना कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी। साथ ही इन कीटों का विस्तार पहले की तुलना में उत्तर के ठन्डे इलाकों की ओर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। रिसर्च से यह भी पता चला है कि जलवायु में आता बदलाव इन कीटों को सर्दियों में भी पनपने के लिए अनुकूल दशाएं तैयार कर रहा है, जिससे इसके प्रसार की सम्भावना कहीं ज्यादा बढ़ सकती है।

शोधकर्ताओं ने इस कीट के प्रसार को समझने के लिए एक मॉडल का भी उपयोग किया है, जिससे पता चला है कि 1981 के बाद से इस कीट की दक्षिणी सीमा में 3 फीसदी की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं अनुमान है कि सदी के अंत तक इन कीटों की दक्षिणी सीमा आकार में बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। मतलब कि यह पहले से कहीं ज्यादा क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले लेगा। इसी तरह जलवायु में आते बदलावों के चलते उत्तर में भी इनका प्रसार बढ़ जाएगा।

इस बारे में शोध से जुड़े शोधकर्ता और नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी में एंटोमोलॉजी के सहायक प्रोफेसर एंडर्स हुसेथ का कहना है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते इन कीटों की उत्तरी सीमा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी।

गौरतलब है कि इससे पहले भी वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों के कहर के बढ़ने की आशंका पर प्रकाश डाला था। जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ कीड़ों की तादाद और उनकी भूख कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी।

इसके चलते वो अब की तुलना में 50 फीसदी अधिक गेंहूं और 30 फीसदी ज्यादा मक्के की फसल को नष्ट कर देंगें। रिसर्च से पता चला है कि कीट पहले ही 5 से 20 फीसदी के बीच खाद्यान्न फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। शोध में यह भी सामने आया है कि तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ तीन प्रमुख खाद्यान्न फसलों गेहूं, चावल, और मक्का पर कीड़ों का कहर 10 से 25 फीसदी तक बढ़ जाएगा।

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