चूल्हे के साथ खेतों और ट्रैक्टर पर भी हक दो

खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी महिलाओं को मर्दों से कम पैसे मिलते हैं। वहीं वे जो थोड़ा-बहुत उगा लेती हैं तो बाजार में उसकी उतनी कीमत नहीं मिलती कि वे अपने और अपने परिवार का पेट भर सके
Credit: Adithyan P C
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झारखंड से आर्इं सरिता देवी कहती हैं कि हम महिलाओं के लिए उज्ज्वला योजना शुरू की गई और कहा गया कि हमें सस्ते में गैस मिलेगी। लेकिन हम तो पूरे दाम देकर ही गैस अब तक खरीद रहे हैं। वे कहती हैं कि सरकार हम महिलाओं को चूल्हे तक ही क्यों सीमित रखे हुए है। क्या हम खेतों में काम नहीं करतीं, क्या हम ट्रैक्टर नहीं चलाती हैं। हमारी परेशानी चूल्हे से लेकर खेत तक है। खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी मर्दों से कम पैसे मिलते हैं। वहीं हम जो थोड़ा-बहुत उगा लेते हैं बाजार में उसकी उतनी कीमत नहीं मिलती कि हमारा पेट भर सके। राजधानी दिल्ली में देश भर से आए पचास हजार किसान सरकार को अपना दर्द बता रहे हैं। महिला-पुरुष किसान, खेतिहर मजदूरों की अलग-अलग समस्याओं के साथ जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक के किसानों की मांग है कि उन्हें उनकी उपज की वाजिब कीमत मिले।

जौनपुर से आर्इं सांवरी देवी कहती हैं कि चौदह-चौदह घंटे हाड़तोड़ मेहनत के बाद हमारे हाथ में आते हैं डेढ़ सौ रुपए। यह पैसा भी कोई एक ही दिन काम के बाद नहीं मिल जाता बल्कि इसके लिए कई-कई दिनों तक खेत के मालिक का मुंह ताकना पड़ता है। तब जाकर वह हमारी मेहनत का पैसा भिखारियों की तरह और ऐसे देता है जैसे कोई एहसान कर रहा हो। सांवरी देवी के पति कहीं चले गए हैं। ऐसे में उनके खेतों पर दूसरे लोगें ने कब्जा कर लिया है। अब वे अपने ही खेतों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं। 

बिहार के रोहताश जिले के नुआ पंचायत की पूर्व मुखिया कौम्या देवी सवाल करती हैं कि जब महिला और पुरुष खेत में बराबर काम करते हैं तो उन्हें मजदूरी बराबर क्यों नहीं मिलती है। इस बारे में सरकार अब तक कुछ नहीं करती है। इसका नतीजा है कि हम अपने बच्चों को ठीक से पढ़ा नहीं पा रहे हैं। कौम्या देवी कहती हैं कि हमें अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है। इसी तरह की मांग को लेकर हम यहां आए हैं। हमारी उपज के मूल्य पर मोलभाव किया जाता है। 

कौम्या देवी कहती हैं कि जब आप लोग किसी दुकान में टूथब्रश या किसी कंपनी का कोई सामान खरीदते हैं तो क्या दुकानदार से उस सामान के लिए मोलभाव करते हैं? शायद ही कोई ऐसा करता होगा। लेकिन लोगबाग जब हमारी सब्जी या गेहूं-चावल खरीदने मंडी जाते हैं तो बेचने वाले से बिना मोलभाव किए उससे सामान नहीं खरीदते हैं। वे कहती हैं कि यह कब तक चलेगा। इसी का नतीजा है कि हम आर्थिक रूप से टूट गए हैं।

बिहार के नालंदा से आए रामप्रसाद कहते हैं कि किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या कर्ज उतारने की है। क्योंकि उसे अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है। वे कहते हैं कि आज धान का मूल्य सरकार ने 1750 रुपए प्रति कुंतल निर्धारित किया है। लेकिन बाजार में धान 11 सौ से एक हजार रुपए में बिक रहा है। ऐसे में कहां से किसान अपने कर्ज को उतार पाएगा। हम सरकार से कोई भीख नहीं मांग रहे हैं, हम तो हमारा हक मांग रहे हैं। कम से कम हमारी उपज का सही दाम तो मिले। 

कन्याकुमारी से आए किसान बेबी ने कहा कि किसानों की समस्या कन्याकुमारी से लेकर जम्मू तक एक ही तरह की है। किसान की कोई जाति नहीं होती है। वह अन्न पैदा करता है तो यह नहीं सोचता है कि उसका अनाज कौन खाएगा और कौन नहीं। इसी तरह से सरकार को भी सभी वर्गों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए। तमिलनाडु के सेलम जिले से आए रवि एम ने कहा कि हम तो यहां यह बात कहने आए हैं कि देश के किसानों की एकजुटता अब बहुत जरूरी हो गई है। इसके बिना कोई भी हमारी आवाज नहीं सुनेगा।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने सवाल उठाया कि देश के प्रधानमंत्री सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची मूर्ति बना कर अपनी पीठ ठोंकते नजर आते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं कि उस सरदार सरोवर बांध ने दस लाख लोगों को उनकी अपनी पीढ़ियों से चली आ रही जमीन से बेदखल कर दिया है। वे कहती हैं कि नर्मदा के किनारे बसे लाखों आदिवासियों की आजीविका इस बांध ने उजाड़ दी। जिसे वास्तव में पानी चाहिए था वे अब भी प्यासे हैं। क्योंकि पानी तो गुजरात के तमाम उद्योगपितयों के कारखानों में पहुंच रहा है।

ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम की सदस्य राधिका मेनन बताया कि यहां आए देशभर के किसानों की मांग एक जैसी ही है। उन्हें उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलने के कारण वे अपने परिवार का ठीक से भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं। यह हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि देश को खिलाने वाले बस आंकड़ों के जाल में फंस गए हैं। जब सरकार यहां आए लोगों की बात नहीं सुन रही है तो इसका मतलब है कि सरकार को इनकी समस्या से कोई सरोकार नहीं है।

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