सिर्फ आप के खाने की चीजों पर ही महंगाई की मार नहीं पड़ी है। पशुओं के चारे पर भी संकट है, भूसा पिछले साल दो से तीन गुना रेट पर बिक रहा है। पिछले साल जो भूसा 400-600 रुपए क्विंटल था, वो इस बार सीजन में ही 1100-1700 रुपए के बीच बिक रहा है। राजस्थान के बीकानेर में गेहूं का भूसा 2000 रुपए कुंटल तक पहुंच गया है।
मथुरा के मोडलिया गांव के किसान अजय कुमार के पास 4 भैंसे हैं। अजय बताते हैं, “मैंने पिछले महीने 550 रुपए मन (40 किलो) भूसा लिया, जबकि पिछले साल यही भूसा 150-200 रुपए मन था, यानि तीन गुना महंगा हो गया है। हालत ये हैं कि अब भूसा मिल ही नहीं रहा। मेरी समझ से इधर सरसों की खेती ज्यादा हुई और गेहूं कम, इसलिए भूसा महंगा हो गया।”
मथुरा में ही राजस्थान की सीमा से सटे मांट इलाके के बाजना गांव के किसान शिवकुमार के मुताबिक उनके जिले में इस बार सीजन में ही 1200-1300 रुपए का रेट था, जबकि पिछली बार अच्छा भूसा 600-800 में मिला था। शिवकुमार कहते हैं, “भूसा तो खोजना पड़ रहा है। हमारा इलाका राजस्थान से लगा है तो वहां बहुत सप्लाई होती है लेकिन इस बार डीएम (जिलाधिकारी) ने मार्च में ही आदेश जारी कर दिया, कि भूसा बाहर नहीं जाएगा, क्योंकि गोशाला वाले भूसा न मिलने की शिकायत कर रहे थे, लेकिन हम लोगों ने इसका विरोध किया, आखिर किसान की सारी फसलें तो सस्ती बिकती हैं, पहली बार भूसा सही जा रहा है तो किसान क्यों न बेचे?”
दुनिया के सबसे ज्यादा किसानों और पशुओं वाले देश भारत में कुल पशुओं की संख्या 53.58 करोड़ है। साल 2019 में आई 20वीं पशुगणना के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा संख्या गोवंश और फिर भैंसों की है। इस तरह गौ और महिषवंशीय पशुओं की कुल संख्या करीब 30.23 करोड़ हो जाती है। यही वो पशु भी हैं जो सबसे ज्यादा चारा और खासकर भूसा खाते हैं। क्योंकि इसको लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है।
कृषि और पशु वैज्ञानिकों के मुताबिक एक गाय और भैंस को औसतन 4-8 किलो भूसा चाहिए। हरा चारा न होने की दशा में ये मात्रा बढ़ भी सकती है। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक डॉ. पुतान सिंह कहते हैं, “भारत में भूसा पशुओं के चारे का प्रमुख स्त्रोत है। वैसे तो 10 लीटर दूध देने वाली एक भैंस को दिनभर में औसतन 30 किलो चारा चाहिए इसमें 4 किलो दाना, 4-5 किलो भूसा और बाकी हरा चारा होना चाहिए, लेकिन हरा चारा न होने पर किसान भूसे पर निर्भर हो जाते हैं। पशुओं का चारा उनके वजन और उपयोगिता पर निर्भर करता है।”
भूसे की महंगाई के पीछे मुख्य वजह गेहूं का कम उत्पादन बताया जा रहा है। किसान, कृषि वैज्ञानिक और जानकारों के मुताबिक पिछले साल सरसों की कीमतें अच्छी होने के चलते इस बार यूपी, राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसानों ने सरसों की ज्यादा बुवाई की। दूसरी वजह मार्च में एकाएक गर्म बढ़ने से गेहूं का कम उत्पादन भी है।
भारत में ज्यादातर पशुपालन उत्तर भारत के यूपी, पंजाब, हरियाणा,राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में होता है। और इन्हीं राज्यों में ज्यादा गेहूं की पैदावार भी होती है। आंकड़ों की बात करें तो कृषि मंत्रालय के मुताबिक देश में करीब 335-340 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती है, साल 2021-22 में रबी सीजन में करीब 334 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती हुई थी, जिसमें सरकार को 11.13 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान था, खाद्य विभाग के सचिव सुधांशु पांडे ने पिछले दिनों बताया कि कृषि मंत्रालय ने संसोधित अनुमान में गेहूं उत्पादन 10.5 करोड़ टन किया है।
फसल वर्ष 2020-21 में देश में 10 करोड़ 95.5 लाख टन गेहूं हुआ था। भारत में गेहूं की खेती नवंबर से अप्रैल के मध्य होती है। मौसम विभाग के मुताबिक 3 मार्च को गर्मी का 122 साल का रिकॉर्ड टूटा, ये वही समय था जब गेहूं का दाना बनना और मजबूत होना शुरु होता है। बढ़ते तापमान ने न सिर्फ अगैती गेहूं की पैदावार घटाई बल्कि समयिक और पिछैती गेहूं की बढ़वार और पैदावार दोनों कम कर दी।
गेहूं की पैदावार कम होने कई राज्यों में पशु चारे का संकट सीजन में खड़ा हो गया है। जिससे निपटने के लिए हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत कई राज्यों ने दूसरे राज्यों को भूसा भेजने में पूर्ण या आशिंक-मौखिक प्रतिबंध लगा रखा है। यहां तक की यूपी के मैनपुरी जिले में जिलाधिकारी ने मई के पहले हफ्ते में जिले से बाहर भूसा जाने पर भी प्रतिबंध लगाया है।
उत्तर प्रदेश में पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह ने डाउन टू अर्थ से कहा, “चारा कम होने का सबसे बड़ा कारण है मशीनीकरण, कंबाइन से गेहूं कटने बहुत कम किसान भूसा नहीं बनवाते हैं। दूसरा कई बार किसान खेत जला देता है तो दूसरे पशुओं के चरने का नहीं मिलता है। इसके अलावा घटती जोत के चलते किसान अब अनाज या फल-सब्जी उगाने को प्राथमिकता देता है। और जो पशुचारागाह हैं उन पर कई जगह कब्जे हो गए हैं उन्हें छुड़ाने की प्रक्रिया चल रही है।”
पांच मई को जारी अपने एक आदेश में उत्तराखंड के पशुपालन विभाग ने राज्य से बाहर भूसा भेजने, भूसे का ईंट भट्टे में उपयोग रोकने, पुराल न जालने के आदेश जारी किए। पशुपालन विभाग के सचिव डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने कहा कि हरियाणा समेत कई राज्यों में भूसे को बाहर भेजने से प्रतिबंध लगाए जाने के कारण भूसे का औसत भाव जो सीजन में 400-600 रहता था वो 900 से 1300 रुपए कुंटल पहुंच गया है।
पशुपालन बाहुलता वाले राज्य हरियाणा में गेहूं की खासी पैदावार होती है लेकिन इस साल सरसों का रकबा बढने और गेहूं की पैदावार कम होने से वहां भी भूसे की किल्लत हो गई है। ऐसे में हरियाणा जहां से उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल और पश्चिमी यूपी को भूसा सप्लाई होता है, वहां भी रोक लग गई है। जिससे हिमाचल और राजस्थान के किसान खासे परेशान हैं।
राजस्थान में बीकानेर जिले के किसान आसुराम गोदारा डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “य़हां कहीं भूसा है ही नहीं, जो है वो 20 रुपए किलो के ऊपर है। हमारे इलाके में ज्यादातर किसान गाय पालते हैं। भूसे की किल्लत की तत्कालिक वजह तो हरियाणा-पंजाब से भूसे का न आना है लेकिन लंबी अविधि में इसके लिए पानी की किल्लत और मौसम जिम्मेदार है। सिंचाई की समस्या के चलते गेहूं तो बहुत कम होने लगा है। जो मौसम आधारित खेती यानि बारिश के पानी पर होती थी वो भी कम हो गई है। पिछले साल कम बारिश के चलते हमारे यहां ज्वार भी नहीं हो पाई, वर्ना इस सीजन में पशु वही खा लेते।”
गोदारा के मुताबिक उनके 5-10 साल पहले उनके यहां 400 फीट पर पानी मिल जाता था अब 1500 फीट गहरा बोर कराने पर पानी नहीं मिलता। इतनी गहरी बोरिंग में 10-20 लाख रुपए तक लग जाते हैं। अब अगर कहीं पानी मिला भी तो किसान गेहूं नहीं बोता है।
राजस्थान में ही पंजाब से सटे श्रीगंगानगर जिले के किसान हरविंदर सिंह (36 वर्ष) भी भूसे और चारे की किल्लत के लिए मौसम को जिम्मेदार बताते हैं। डाउन टू अर्थ को वो बताते हैं, “ये सब क्लाइमेंट चेंज के चलते हैं। पूरे राजस्थान में गेहूं की बुवाई कम हो गई है। किसान कम पानी वाली फसलें, चना और सरसों बो रहे हैं। गेहूं में 6 पानी (सिंचाई) लगते हैं, सरसों में एक या 2 में ही काम हो जाता है। मैं ही हर साल 12-13 एकड गेहूं बोता था इस बार 5 एकड़ ही बोया था, क्यों करें।”
थोड़ा रुक वो आगे कहते हैं, “ये पहला साल है जब गेहूं और भूसे दोनों का रेट ठीक है। पहले यहां भूसा कभी महंगा नहीं होता था क्योंकि पंजाब नजदीक है वहां बहुत होता है तो आसानी 400-500 में आ जाता था इस बार वो लोग गाड़ियां आने नहीं दे रहे तो थोड़ी दिक्कत है।
आईवीआरआई के क्षेत्रीय केंद्र पालमपुर, के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पुतान सिंह कहते हैं, “चारा संकट से निपटने के दो मुख्य उपाय हैं, पहला सरकार भूसे का व्यवसायिक इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए। भूसे का कागज उद्योग से लेकर ईंट भट्टे तक में इस्तेमाल होता है। उसे रोके जाने की जरुरत है, ये काम सरकार करे। और किसान क्या करें कि हरे चारे की बुवाई करें। कई किस्में ऐसी हैं जो एक बार लगाने पर 4-6 तक कटाई देती हैं। दूसरा चीनी मिल भूसे, शीरे और खोई को मिलकर संगठित चारा बिक्र बना सकते हैं जो न सिर्फ उपयोगी और पोषण देने वाला होगा बल्कि चीनी मिलों को पूरे साल काम और पशुपालकों को अच्छा और किफायती चारा मिलेगा।”
उत्तर प्रदेश छुट्टा पशुओं (निराश्रित गोवंश) की बड़ी आबादी है, जिनसे निपटने के लिए गोवंश आश्रय स्थल और गोशालाएं बनवाई गई हैं। यूपी सरकार एक पशु के लिए चारे के लिए 30 रुपए देती है। ऐसे महंगाई को देखते हुए इन पशुओं के लिए चारे का इंतजाम टेढी खीर रहेगी।
उत्तर प्रदेश में पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह ने आगे कहा, “मौजूदा वक्त में भूसे की किल्लत को देखते हुए विभाग सक्रिय है, खासकर निराक्षित गोवंश के लिए रणनीति तैयार की गई है। जिलाधिकारी और सहयोगी विभागों ने मिलकर टेंडर निकाले हैं। बहुत सारे लोग भूसा दान भी कर रहे हैं। इसके अलावा हम लोग किसानों को हरे चारे का उगाने के लिए पशु चिकित्स्यालयों के माध्यम के किसानो को बीज देकर प्रेरित करते हैं।”