क्या जादुई चावल के बारे में जानते हैं आप?

पांच दशक पहले धान की एक किस्म विकसित की गई, जिसने भारत सहित कई देशों की भुखमरी दूर कर दी
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50 के दशक में भारत सहित कई एशियाई देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहे थे, लेकिन तब ही धान की एक नई किस्म विकसित की गई, जिसने कई देशों की भुखमरी दूर कर दी। धान की इस किस्म को आईआर8 कहा गया। इससे धान की उपज इतनी अधिक बढ़ गई कि 1966 में विश्व में धान का उत्पादन 25.7 करोड़ टन होता था, जो 2015 में बढ़ कर 74 करोड़ टन तक पहुंच गया। 

तब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में चावल के पौधे का तना लंबा और कमजोर होता था। किसान जब खाद डालते थे तो ये पौधे गिर जाते थे, जिससे इनमें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बंद हो जाती थी। इससे अनाज या तो मिट्टी में मिलकर खराब हो जाता या फिर इसे चूहे खा जाते थे। इसलिए उस समय एक बौने पौधे की जरूरत महसूस की गई, जो बिना गिरे खाद-पानी प्राप्त करे और कटाई तक सीधा रहे। यह काम आईआर8 ने कर दिखाया।

कब हुई खोज?

50 के दशक में एशिया में आबादी वृद्धि तेजी से हो रही थी, लेकिन खाद्यान्न उत्पादन नहीं बढ़ रहा था। तब अमेरिका के फोर्ड एवं रॉकफेलर फाउंडेशन ने फिलीपींस सरकार के साथ मिलकर इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। संस्थान के वैज्ञानिक पीटर जेंनिंग, ते ज़ु चांग और हांक बीचेल ने सन 1963 में धान की हजारों किस्मों की क्रास ब्रीडिंग के बाद 28 नवंबर, 1966 को इसे जारी किया। भारतीय विज्ञानी एसके डे दत्ता ने 1966 में पहली बार इसे फील्ड में प्रमाणित करने वाले दल में अहम भूमिका निभाई थी।

भारत में आई क्रांति

उस समय भारत में किसान एक हेक्टेयर में डेढ़ से दो टन चावल पैदा करते थे। लेकिन इस नई किस्म ने एक झटके में पैदावार बढ़ाकर 7-10 टन प्रति हेक्टेअर तक पहुंचा दी। इससे पहले कभी एक प्रयास में धान की पैदावार दोगुना भी नहीं हुई थी। बौनी किस्म होने की वजह से सूर्य से पोषण की अधिक मात्रा अनाज बनने में खर्च होती है। इसलिए हर पौधे में ज्यादा दाने उगते हैं और पौधा जमीन पर भी नहीं गिरता। इसी खूबी के चलते यह बीज दुनिया भर में बहुत तेजी से लोकप्रिय हुआ। हालांकि, इसके अत्यधिक प्रसार के चलते जैव-विविधता प्रभावित हुई और उर्वरकों का उपयोग बढ़ा। 

आईआर8 की सफलता के साथ ही भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हुई। आज चीन के बाद भारत दुनिया में सबसे बड़ा चावल उत्पादक और प्रमुख निर्यातक देश है। देश को इस स्थिति में पहुंचाने का बड़ा श्रेय आईआर8 जैसे उन्नत बीजों को जाता है। आईआर8 के बाद भारत की औसत चावल पैदावार में तीन गुना बढ़ोतरी हुई। 1960 के दशक में जहां औसत पैदावार दो टन प्रति हेक्टेयर थी वह बढ़कर नब्बे के दशक में छह टन प्रति हेक्टेयर हो गई।

इस किसान ने की शुरुआत 

भारत में सबसे पहले आंध्र प्रदेश के अताचंता गांव में एन सुब्बा राव नाम के किसान ने 1967 में दो हजार हेक्टेयर से अधिक खेत में आईआर8 बोया था। अगले साल इसी गांव के अन्य किसानों ने 1600 हेक्टेयर में यह बीज उगाया। इसके बाद ये बीज देश भर में पहुंच गए। सुब्बा राव ‘मिस्टर आईआर8’ और यह गांव ‘बीज ग्राम’ के तौर पर मशहूर हो गया।

आईआर8 की सफलता के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने धान की कई उन्नत किस्में विकसित कीं। सन 1967 में आईआरआरआई में शामिल हुए गुरदेव सिंह खुश ने आईआर8 की तर्ज पर चावल आईआर20, आईआर36 और आईआर50 जैसी 300 से ज्यादा किस्में विकसित करने वाले दल में अहम भूमिका निभाई।

चावल के दाम हुए आधे

70 के दशक में जहां अंतरष्ट्रीय बाजार में चावल का दाम 550 डॉलर प्रति टन था, जो नब्बे के दशक में घटकर 200 डॉलर से भी कम हो गया। हरित क्रांति से पहले के दौर की तुलना में आज चावल का दाम आधा है। अस्सी के दशक में एशिया की 50 फीसदी आबादी भूखी थी, जो अब घटकर 12 फीसदी रह गई है।

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