गेहूं फसल की कटाई जारी है। प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए यह सीजन काफी खराब साबित हो रहा है। कई किसान गेहूं की फसल में उपज घटने की शिकायत कर रहे हैं और इसकी वजह मार्च महीने में असमान्य औसत तापमान बढोत्तरी को बताया जा रहा है। इन तीन प्रमुख राज्यों में मार्च महीना का वातावरण गेहूं के दाने तैयार होने के लिए काफी अहम होता है। दशकों से जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च महीने का तापमान अस्थिर हो रहा है। इससे फसलों को तात्कालिक झटके लग रहे हैं। अत्यधिक ताप के यह झटके न सिर्फ गेहूं के दानों का विकास बाधित करते हैं बल्कि फसल को नष्ट कर देते हैं।
वैश्विक स्तर पर हीट के जरिए गेहूं के नष्ट होने के मामले वैज्ञानिकों का ध्यान खींच रहे हैं। इस मामले पर एडवांसिंग अर्थ एंड स्पेस साइंस में 13 अक्तूबर, 2021 को प्रकाशित जर्नल “प्रोबैबिलिस्टिक एसेसमेंट ऑफ एक्सट्रीम हीट स्ट्रेस ऑन इंडियन वीट यील्ड्स अंडर क्लाइमेट चेंज” की प्रमुख शोधार्थी डॉ मरियम जैकाराय से डाउन टू अर्थ ने बातचीत की। डॉ मरियम लंदन के इंपीरियल कॉलेज में पोस्ट डॉक्टरल साइंटिस्ट हैं जिन्होंने अपने शोधपत्र में पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गेहूं की फसलों पर हीट के असर को लेकर शोध किया है। पेश हैं बातचीत के अंश :-
पंजाब-हरियाणा और यूपी के किसान मार्च महीने के अत्यधिक गर्म होने पर गेहूं की फसलों के उपज घटने की शिकायत कर रहे हैं, इस बारे में आपका शोध क्या कहता है?
डॉ मरियम : हां, हमारी पड़ताल यह प्रदर्शित करती है कि फरवरी और मार्च के महीने में जब गेहूं के दाने बन रहे होते हैं और उस वक्त यदि तापमान 34 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है तो इन राज्यों (पंजाब-हरियाणा, यूपी) में किसानों को गेहूं के फसल की उपज औसत से कम मिलती है।
क्या आपके पास देश में हीट के कारण गेहूं के नुकसान को लेकर कोई आकलन है?
डॉ मरियम : हां, हमने यह विश्लेषण किया है कि जलवायु परिवर्तन कैसे पंजाब-हरियाणा और यूपी जो कि प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं उन्हें कैसे प्रभावित कर रहा है। हमने पाया कि यदि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते हैं तो 2100 तक इन राज्यों में दीर्घावधि के लिए गेहूं की उपज 12 से 27 फीसदी तक कम हो सकती है।
क्या हीट के कारण हो रहे गेहूं के नुकसान की रोकथाम को लेकर कोई रास्ता है?
डॉ मरियम : राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं उत्पादन को बनाए रखने के लिए पंजाब-हरियाणा और यूपी काफी अहम भूमिका निभाते हैं। आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन के शमन (मिटिगेशन) को कम करने के उपाय तत्काल उठाए जाएं। साथ ही खेती के अभ्यास को समय पर अपनाया जाए और ताप रोधी (हीट-टॉलरेंट) सीड वेराइटीज को विकसित करने पर जोर दिया जाए। ऐसा करने से इस नुकसान को कम किया जा सकता है।