मंडी में बिका हुआ बाजरा वापस लेने को मजबूर मध्य प्रदेश के किसान, खराब गुणवत्ता का हवाला

मध्य प्रदेश में जिन किसानों का बाजरा एमएसपी पर बिक गया था उन्हें खराब क्वालिटी का हवाला देकर बाजरा वापस ले जाने को कहा गया है
Photo: Pixabay
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मध्य प्रदेश में बारिश की मार झेल रहे बाजरा किसानों को अब अनाज बेचने के बाद दोबारा परेशानी उठानी पड़ रही है। सहकारी समितियों में खरीदी के बाद अब सैंपल रिजेक्ट कर कई जिलों में सरकार ने बाजरा खरीदने से मना कर दिया है, जिस के कारण सहकारी समितियां अब किसानों को अपना बिका हुआ बाजरा वापस ले जाने के लिए कह रही हैं।

इस वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में हुई वर्षा के कारण काफी बाजरा सहकारी मंडियों में ही रिजेक्ट हो गया था।  अब रहा बचा भी किसानों को लौटाया जा रहा है। 

मध्य प्रदेश के ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी और श्योपुर में अतिवृष्टि से बाजरे की फसल प्रभावित हुई थी। बारिश और बाढ़ के कारण फसल की गुणवत्ता पर बुरा असर हुआ था। बाजरे का समर्थन मूल्य 2250 रुपए प्रति क्विंटल है लेकिन इस वर्ष किसान अपनी फसल 1300- 1800  रुपए प्रति क्विंटल पर बेचने पर मजबूर हो रहे थे।

सरकार ने बाजरा खरीदी की आखिरी तारीख 31 दिसंबर तय की थी। सहकारी मंडियों में अपना अनाज बेच निश्चिंत हुए किसान जब भुगतान का इंतज़ार कर रहे थे। अब उन्हें पता चला कि उनका अनाज खाद्य निगम ने रिजेक्ट कर दिया  है। 

मुरैना के किसान नेता रामपाल तोमर ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया कि भारतीय खाद्य निगम ने कई जिलों में क्वालिटी खराब बताकर किसानों का बेचा हुआ अनाज गोदाम में उठवाने से मना कर दिया है जिस के कारण मुरैना और श्योपुर के कई किसान बेहद परेशानी में गए हैं।  

"श्योपुर के 400 किसानों से 2250 रु प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर बाजरा खरीदा गया था। मगर अब खाद्य निगम ने उसे रिजेक्ट कर उन किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। अब मजबूरन किसानों को निजी व्यापारियों को औने-पौने दाम में अनाज बेच कर भरी नुकसान उठाना पड़ेगा।" तोमर ने बताया।

श्योपुर जिले में 10,285 क्विंटल बाजरा किसानों ने बेचा था जिस में से अब केवल 3284 क्विंटल विपणन संस्था पर जमा हुआ और बाकि 7001 क्विंटल बाजरा खराब बताकर लौटाया जा रहा है। 

"किसान को भुगतान तब ही मिलता है जब अनाज निगम के गोदामों में पहुंच जाता है। मगर अब खरीदी के 17 दिन बाद उनको बोला जा रहा है कि वे अपना अनाज उठा लें। खाद्य निगम के सुपरवाइजर कह रहे हैं कि दाने काले पड़ गए हैं और आकार में छोटे हैं। अगर खराब थी फसल तो समर्थन मूल्य पर क्यों बिकी?", तोमर पूछते हैं।

श्योपुर की सेवा सहकारी संस्था, सहसराम के प्रबंधक मुन्नालाल धाकड़  ने कहा, "खरीदी के समय नागरिक आपूर्ति केंद्र वाले सरकार से छूट की मांग कर रहे थे और हमें आदेश था कि सारा बाजरा किसानों से खरीद लें।  अब लेकिन हमें बोला जा रहा है की गुणवत्ता होने के कारण अब केवल 3,284 क्विंटल बाजरा ही खरीदा जायेगा और बचा हुआ अनाज किसानों को लौटा दें।"

मुरैना जिले के पोरसा विकास केंद्र के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, वीरेश शर्मा ने कहा , "जब बाजरे की कटाई हुई थी तब बारिश होने के कारण फसल खराब हो गई थी जिस के कारण किसानों को अब माल वापस ले जाना पड़ रहा है। 

जिले के कृषि निदेशक को जब सैंपल दिखाया तो उन्होंने दाने छोटे और काले होने के कारण काफी माल को रिजेक्ट कर दिया।  हमने भोपाल तक अधिकारियों को सैंपल भेजे थे पर उन्होंने भी उचित गुणवत्ता होने की वजह से उसे निरस्त कर दिया।"

मुरेना जिले में  39,102 किसानों के पंजीकृत होने के बावजूद सरकार ने केवल 283 किसानों से 2159 मीट्रिक टन  बाजरा ही खरीदा था  जिस में से अधिकांश अब किसानों को लौटाया जा रहा है। 

मध्य प्रदेश के स्टेट सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर अरुण जैन ने डाउन टू अर्थ से बातचीत  में कहा, "इस वर्ष अतिवृष्टि के कारण जो बाजरा ख़राब हुआ था उस के लिए मुरैना कलेक्टर ने मध्य प्रदेश शासन को पत्र लिख कर मांग की थी कि किसानों को भारत सरकार के मानकों पर छूट दी जाये जिस से वे बाजरा समितियों में समर्थन मूल्य पर बेच सकें। 

मध्य प्रदेश शासन ने भी केंद्र सरकार से यही मांग की थी पर अभी तक केंद्र से इस छूट को ले कर कोई निर्णय नहीं आया है जिस के कारण हमें किसानों को ये अनाज लौटना पड़ रहा है। वजह अनाज का नॉन-एफएक्यू है। 

इस वर्ष मुरैना में 2159 मीट्रिक टन बाजरा खरीदा गया था जिस में से करीब 1800 मीट्रिक टन किसानों को वापस किया जा चुका है जिस से वे निजी व्यापारियों को बेच कम से कम अपनी लागत तो निकाल सकें।"

नॉन-एफएक्यू का मतलब वह फसल जो पूरी तरह सूखी हो। ऐसे अनाज में नमी, मिट्टी, बदरंग और क्षतिग्रस्त दाने की संख्या निर्धारित मात्रा से अधिक होती है। 

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