बीज के फेर में फंसा किसान

सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि बीज की उपलब्धता मांग से अधिक है लेकिन इसके बावजूद किसानोें को उनकी जरूरत के अनुसार बीज उपलब्ध नहीं हो रहा है
फोटो : मीता अहलावत / सीएसई
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कोरोनावायरस के चलते केन्द्र सरकार ने मार्च में पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी। लॉकडाउन के बाद मजदूर लौटकर अपने गांवों में आए और खेती के काम में लग गए, लेकिन लॉकडाउन के चलते साल 2020 के खरीफ सीजन के लिए बीज मिलने में काफी समस्या आई। ट्रकों के एक से दूसरे राज्य में आने-जाने पर कड़े प्रतिबंधों के चलते लाखों किसानों को बीज खरीदने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। 2020-21 के खरीफ सीजन में देश के 20 फीसदी किसानों को बीज और एग्रोकेमिकल्स की आपूर्ति नहीं हो पाई। ये हालात तब थे जब बीज, फर्टिलाइजर, कीटनाशक सहित कई तरह के एग्रोकेमिकल आवश्यक वस्तुओं की फेहरिस्त में शामिल थे। बीजों की उपलब्धता घटने से खरीफ की बुआई प्रभावित हुई। हालांकि आंकड़े कहते हैं कि मांग की तुलना में बीजों की उपलब्धता ज्यादा ही थी, लेकिन सही समय पर बीज किसानों तक नहीं पहुंच पाए। बीज और रोपण सामग्री पर होने वाला खर्च भी 2020-21 में घटा है।

सीडनेट इंडिया पोर्टल के आंकड़े बताते हैं कि 2020-21 में बीज और उसे रोपने की सामग्री के लिए सरकार ने सिर्फ 37.42 करोड़ रुपए ही जारी किए हैं। जबकि 2019-20 में चारों तिमाहियों को मिलाकर 191.78 करोड़ रुपए रिलीज किए गए थे। 2020-21 की पहली, तीसरी और चौथी तिमाही में अब तक कोई भी राशि रिलीज नहीं की गई है। 2017-18 में सरकार ने 200.82 करोड़ रुपए बीज और रोपण सामग्री के लिए रिलीज किए थे। 2016-17 में 168.78 और 2015-15 में 145.23 करोड़ रुपए सरकार ने जारी किए थे। सीड इंड्रस्टी इन इंडियाः मार्केट ट्रेंड्स, स्ट्रक्चर, ग्रोथ, की-प्लेयर्स और फोरकास्ट 2021-2026 की रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत का बीज बाजार 4.9 बिलियन डॉलर का हो गया है।

भारतीय कृषि एवं खाद्य परिषद की सीड इंड्रस्ट्री सिनेरियो-2019 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का बीज व्यापार 2018 में 59.71 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। 2011-18 के बीच ये 7 प्रतिशत रफ्तार से बढ़ा है। सरकार के ही आंकड़े बता रहे हैं कि देश में बीज की उपलब्धता जरूरत के मुताबिक ज्यादा ही है। सीडनेट इंडिया पोर्टल पर दिए आंकड़ों के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में देश को 443.14 लाख क्विंटल बीजों की जरूरत थी जबकि उपलब्धता 483.67 लाख क्विंटल की है। इसी तरह 2019-20 में जरूरत 387.33 लाख क्विंटल की थी और उपलब्धता 431 लाख क्विंटल रही। 2018-19 में मांग 353.52 और उपलब्धता 398.87 लाख क्विंटल, 2017-18 में मांग 371.39 और उपलब्धता 419.41 लाख क्विंटल रही। आंकड़ों की तुलना में सामने आ रहा है कि देश में बीज की जरूरत लगातार बढ़ रही है और उपलब्धता भी मांग की तुलना में ज्यादा है। विशेषज्ञों के अनुसार 2020-21 में बढ़ी मांग के पीछे कोरोनाकाल में गांव लौटे लोगों का खेती में वापस काम करना मुख्य कारण है।

इन्हीं आंकड़ों को फसल चक्र के हिसाब से देखें तो 2020-21 में खरीफ सीजन में 150.51 लाख क्विंटल बीज की जरूरत थी और उपलब्धता 153.71 लाख क्विंटल रही। इसी तरह 2019-20 के खरीफ सीजन में बीज की मांग 140.39 लाख क्विंटल थी और मांग 152.24 लाख क्विंटल थी। इस साल के रबी में बीज की मांग 292.63 और उपलब्धता 329.96 लाख क्विंटल थी। 2019-20 में ये 246.94 और उपलब्धता 278.76 लाख क्विंटल रही। राज्यों के हिसाब से देखा जाए तो 2020-21 के रबी सीजन में बीजों की सबसे अधिक मांग करने वाले टॉप 5 राज्यों में उत्तर प्रदेश (49.5 लाख क्विंटल), गुजरात (44.43 लाख क्विंटल), पंजाब (41.61 लाख क्विंटल), पश्चिम बंगाल (37.65 लाख क्विंटल) और हरियाणा (17.8 लाख क्विंटल) थे। इसी साल खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा बीजों की मांग आंध्र प्रदेश (16.38 लाख क्विंटल), मध्य प्रदेश (17.81 लाख क्विंटल), महाराष्ट्र (16.57 लाख क्विंटल), तेलंगाना (14.22 लाख क्विंटल) और कर्नाटक (10.98 लाख क्विंटल) थी। जरूरत की तुलना में इन सभी राज्यों में बीज की उपलब्धता अधिक रही।

2020-21 के खरीफ सीजन में सबसे अधिक बीजों की मांग धान (75.96 लाख क्विंटल), सोयाबीन (27.23 लाख क्विंटल), मूंगफली (19.37 लाख क्विंटल), मक्का (11.61 लाख क्विंटल) और अरहर (2.72 लाख क्विंटल) रही। वहीं, इन्हीं फसलों के बीज की उपलब्धता क्रमश 79.83 लाख क्विंटल, 24.03, 19.65, 12.12 और 2.78 लाख क्विंटल क्विंटल रही। 2019-20 की तुलना में खरीफ सीजन में बीजों की मांग और उपलब्धता 2020-21 में अधिक रही है। साथ ही 2020-21 के रबी सीजन में आलू के बीज मांग की तुलना में कम उपबल्ध हो पाए। आलू के बीज की जरूरत 99.96 लाख क्विंटल थी, जबकि उपलब्धता 99.23 लाख क्विंटल रही। आलू के अलावा सबसे अधिक बीज की मांग गेहूं (124.75 लाख क्विंटल), धान (22.83 लाख क्विंटल), सभी प्रकार का चना (22.03 लाख क्विंटल)और मूंगफली (6.98 लाख क्विंटल) की रही।

बीजों की पर्याप्त उपलब्धता के बाद भी देश का बीज आयात निर्यात की तुलना में काफी अधिक है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2019-20 में 851.78 करोड़ रुपए के 1,77,768.48 क्विंटल फल और सब्जी के बीज आयात किए। जबकि इसी साल 723.43 करोड़ रुपए कीमत के 14,796 क्विंटल बीज निर्यात किए गए। इसी तरह 2018-19 में 805.58 करोड़ रुपए में 1,96090.92 क्विंटल टन फल और सब्जी के बीज आयात किए। जबकि निर्यात 849.23 करोड़ रुपए रहा। 2017-18 में फल और सब्जी के बीजों का आयात 768.21 करोड़ था। इस साल निर्यात 670.89 करोड़ रुपए रहा। आंकड़ों से स्पष्ट है कि फल एवं सब्जी के बीजों के मामले में हम निर्यात कम कर रहे हैं जबकि देश का आयात काफी ज्यादा है।

पिछले 30 सालों में भारत के बीज मार्केट ने काफी तरक्की की है। भारत सरकार ने इसके विकास के लिए तीन चरण (1977-78, 1978-88 और 1990-91) में राष्ट्रीय बीज प्रोजेक्ट चलाए थे। इन प्रोजेक्ट्स की बदौलत भारत में बीज व्यापार ने एक इंड्रस्टी का रूप लिया है। हालांकि इसमें निजी कंपनियों का बोलवाला ज्यादा है। राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड के अनुसार भारत में 60 फसलों की करीब 600 किस्मों के बीज से फसलों का उत्पादन हो रहा है। इसमें अनाज, दालें, तिलहन, फाइबर, हरी खाद, चारा और सब्जी शामिल हैं। देश में 8 फार्म और 12500 रजिस्टर्ड बीज उत्पादक हैं। 2019-20 में देश में देश में अनाजों (गेहूं, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा ) जैसी फसलों के लिए बीज की मांग 6.71 लाख क्विंटल थी। जबकि भारत ने इन अनाजों के 14.90 लाख क्विंटल बीज उत्पादित किए। दालों के मामले में हमारी जरूरत 1.71 लाख क्विंटल की थी और 2.52 लाख क्विंटल दालों के बीज उत्पादित हुए।

हालांकि तिलहनों के बीज की मांग की तुलना में उत्पादन काफी कम रहा। तिलहन के बीज की मांग 4.34 लाख क्विंटल थी, लेकिन उत्पादन 4.31 लाख क्विंटल ही रहा। 2019-20 में देश में बीजों की कुल मांग 13.26 लाख क्विंटल थी और उत्पादन 22.25 लाख क्विंटल रहा। राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018-19 में निगम ने बीजों के बिक्री से 1008 करोड़ रुपए कमाए। ये 2017-18 की तुलना में 42.42 प्रतिशत ज्यादा है। इसमें सरकारी एजेंसिंयों ने 54.17 प्रतिशत और निजी एजेंसिंयों ने 45.83 प्रतिशत की बिक्री की। बीज व्यापार में कुछ बड़ी कंपनी का एकाधिकार है। बीज बाजार में मोंसेंटो, डूपोन्ट और सिंजेंटा नाम की कंपनियां का आधे से ज्यादा बाजार पर कब्जा है। ये तीनों कंपनियां 55 प्रतिशत से ज्यादा बीज दुनियाभर में बेचती हैं।

ला वाया कैंपेसिना नाम के एक अंतर्राष्ट्रीय किसान संगठन का मानना है कि बीज की गुणवत्ता, प्रमाणीकरण, नकली बीज की रोकथाम के लिए नियम और बाजार में पारदर्शिता लाने के नाम पर अलग-अलग देश नए कानून लेकर आ रहे हैं, लेकिन ये कानून अप्रत्यक्ष रूप से किसानों की स्वतंत्रता और बीज पर उनके स्वामित्व को सीमित भी कर रहे हैं।

कई देशों में ऐसे कानूनों का विरोध भी दर्ज किया जा रहा है। कई देशोें ने आरोप लगाया है कि बायर के स्वामित्व वाले मोनसेंटो अपने स्वयं के पेटेंट बीजों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के लिए नए कानून के पीछे है। मोंसेंटो पहले ही मलावी सरकार के स्वामित्व वाली बीज कंपनी पर कब्जा कर चुका है।

इस संबंध में मलावी जैसे देशों का तर्क है कि उत्पादकता के लिए एक विश्वसनीय और स्वस्थ बीज महत्वपूर्ण है। कंपनियां अपने पेटेंट किए गए बीजों के लिए संरक्षित बाजार चाहती हैं। मलावी का नया बीज बिल ठीक यही कर रहा है।

17 दिसंबर, 2017 को इस विवादास्पद बहस को और तेज कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले किसानों और अन्य लोगों के अधिकारों की घोषणा को मंजूरी दी। यह घोषणा उन किसानों को मानवाधिकार संरक्षण प्रदान करती है, जिनकी बीज संप्रभुता को खतरा है।

इसी फरवरी टिमोथी वाइज की किताब ईटिंग टुमॉरो: एग्रीबिजनेस, फैमिली फार्मर्स एंड द बैटल फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड का विमोचन किया गया। उनकी पुस्तक का तर्क है कि छोटे किसान, जो हमारे भोजन का अधिकांश उत्पादन करते हैं, को उनकी समस्याओं के समाधान की तलाश में अधिक गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

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