डाउन टू अर्थ तफ्तीश: खेती से आमदनी नहीं होती तो मजदूरी को मजबूर किसान

2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी होनी है, लेकिन बिहार के भागलपुर जिले के इस गांव की दशा कुछ और बयां कर रही है
बिहार के भागलपुर जिले के गांव गंगा करहरिया में किसानों की दशा में कोई बदलाव नहीं आया है। फोटो: राजीव रंजन
बिहार के भागलपुर जिले के गांव गंगा करहरिया में किसानों की दशा में कोई बदलाव नहीं आया है। फोटो: राजीव रंजन
Published on

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर किसानों की आय दोगुनी हो जाए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अलग-अलग स्तर पर योजनाएं चल रही हैं। इनमें से एक बड़ी योजना हर जिले में दो "डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज " बनाना, ताकि इन गांवों से सीख लेते हुए जिले के सभी गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। डाउन टू अर्थ ने इनमें से कुछ गांवों की तफ्तीश शुरू की है। इससे पहली कड़ी में आपने पढ़ा, हरियाणा के गुड़गांव जिले के दो गांवों की हकीकत । आज पढ़ें, बिहार के भागलपुर जिले के गांव गंगा करहरिया से राजीव रंजन की रिपोर्ट  - 

बिहार के भागलपुर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र ने गौराडीह प्रखंड के गंगा करहरिया और कहलगांव के देवीपुर गांव को मॉडल विलेज के रूप में चुना है। यहां के 30 से 35 किसानों की आमदनी दोगुनी की जानी है। इन गांवों की हकीकत जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने गंगा करहरिया गांव का दौरा किया।

गंगा करहरिया भागलपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां की आबादी लभगभ तीन हजार है। यह गांव कासिमपुर पंचायत के अंतर्गत आता है। सुविधा के नाम पर सड़क बनी हुई है। गांव में हाई स्कूल और दो वाटर टैंक है। कासिमपुर पंचायत का मुखिया भी इसी गांव का है।

गांव के दखिन बाड़ी टोला में रह रहे पंकज कुमार बताते हैं कि पिछले दिनों वह  कृषि विज्ञान केंद्र, सबौर कृषि कॉलेज में चना के बीज लेने के लिए गए थे। बीज के लिए खेत की मिट्टी और आधार कार्ड लेकर गए थे, किंतु हमें यह नहीं बताया गया है कि उनके गांव का चयन मॉडल के रूप में किया गया है। चने का बीज भी नहीं मिला। कारण था कि हम लोग विलंब से वहां पहुंचे थे। इस संबंध में जब पंकज कुमार ने कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारी से फोन पर बातचीत की तो उन्हें बताया गया कि सरकार प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है, जिसके लिए जल्द ही उन्हें बुलाया जाएगा।

वार्ड पार्षद पंकज कुमार कहते हैं कि उसके पास साढ़े तीन बीघा खेत है जिस पर वह चना और गेहूं की बुआई करते हैं। इस बार धान की फसल लगाई थी, प्रति बीघा 20 मन धान हुआ, सब खर्च घटाकर केवल 10 हजार रुपए की बचत हुई। इसमें हमारी अपनी मेहनत-मजदूरी शामिल नहीं है। पिछले कुछ सालों में इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसके बावजूद हमलोग खेती से जुड़े हैं, मगर परिवार चलाने के लिए दिहाड़ी पर काम भी करते है। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की आमदनी दोगुनी करना चाहते हैं, इससे कुछ उम्मीद बंधती है कि शायद हमारे दिन भी बदलेंगे, लेकिन अब तक धरातल पर कोई काम नहीं दिख रहा है

वहीं, दो बीघा खेती के मालिक नंदलाल तांती बताते हैं कि वह धान और गेहूं की बुआई करते हैं, जबकि पूरन साह मंडल का कहना है कि उनके पास 11 बीघा खेत है। अशोक कुमार मंडल के पास तीन बीघा खेत हैं। वे सब लोग चने के बीज के लिए कृषि विज्ञान केंद्र गए थे, मगर कहा गया कि अब बीज नहीं है। चना का बीज सरकार मुफ्त में दे रही है। सरकार प्रति बीघा खेत पर 15 किलो चना का बीज देती है। संजय मंडल को 40 किलो चना बीज का एक पैकेट मिला है, लेकिन अधिकारियों का कहना था कि एक एकड़ जमीन पर खेती के लिए बीज दिया जाएगा। उससे अधिक भूमि होने के बाद भी नहीं दिया जाएगा।

अशोक कुमार मंडल का कहना है कि सरकार की योजना अभी तक बीज प्रदान करने तथा प्रशिक्षण तक सीमित है, लेकिन उसका लाभ भी सबको नहीं मिल पाता है।

वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान सह वरीय वैज्ञानिक विनोद कुमार का कहना है कि दोनों गांव का चयन हाल ही में किया गया है, इसलिए अभी वहां काम शुरू नहीं किया गया है। इन दोनों गांवों में किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वे कम लागत पर अधिक फसल का उत्पादन करें। उन्होंने पारंपरिक खेती के साथ-साथ वैकल्पिक खेती के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। इसके अलावा मछली पालन, मुर्गी पालन जैसे आय के अन्य साधनों के बारे में भी बताया जाएगा।

कल पढ़ें, एक और राज्य के मॉडल विलेज की कहानी 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in