मॉनसून में देरी का असर खरीफ फसलों पर बुरी तरह से पड़ा है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 23 जून 2023 तक देश में 129.53 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है, जो पिछले साल के मुकाबले लगभग 6.12 लाख हेक्टेयर कम है, लेकिन चूंकि पिछले साल भी जून के महीने में मॉनसून देरी से आया था, इसलिए अगर 2021 के जून के तीसरे सप्ताह से तुलना करें तो चालू सीजन में लगभग 30 प्रतिशत (54.87 लाख हेक्टेयर) क्षेत्र में बुआई कम हुई है।
सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र व पंजाब हैं। खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान है और जून में होने वाली बारिश धान के लिए काफी महत्व रखती है, परंतु इस सीजन में धान उत्पादक राज्यों में बारिश न होने के कारण धान का रकबा कम हुआ है।
मंत्रालय की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की वेबसाइट बताती है कि चालू सीजन में जून के तीसरे सप्ताह तक 10.767 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है, जबकि 2021 में इस समय तक 36.02 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। यहां तक कि पिछले साल 2022 में भी मॉनसून में देरी होने के बावजूद 16.456 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो चुकी थी।
पंजाब के आंकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं। यहां 23 जून 2023 तक केवल 68 हजार हेक्टेयर में धान की बुआई हुई है, जबकि 2022 में 3.57 लाख हेक्टेयर और 2021 में 15.74 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुआई हो चुकी थी।
खरीफ की बुआई में हो रही देरी को लेकर डाउन टू अर्थ ने कुछ प्रमुख राज्यों के किसानों से बात कर जानने की कोशिश की। किसानों का कहना है कि पिछले साल भी बारिश न होने के कारण जून में वे ढ़ंग से बुआई नहीं कर पाए थे, लेकिन चालू सीजन और भी बुरा साबित होने वाला है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के टांडपुर गांव में नरेंद्र शुक्ला ने धान की नर्सरी देर से डाली है। वह बताते हैं, “पहले हम 15 मई से जून के पहले सप्ताह में नर्सरी डाल देते थे, लेकिन इस बार जून में भयंकर गर्मी पड़ने से बारिश का इंतजार इसलिए करते रहे कि कुछ खेत ठंडे हो जाएं। लोग तो अभी भी नर्सरी डाल रहे हैं।”
मॉनसून में देरी से उत्तर प्रदेश के किसानों का नुकसान बढ़ गया है। एक तो देर से धान की नर्सरी डालने से धान की फसल लेट होगी, दूसरे जो नर्सरी पहले डाली उसमें सिंचाई का खर्च अधिक आया है और खेतों में पानी अधिक गर्म हो जाने से कई किसानों की नर्सरी गल गई। जिन्हें दोबारा बोना पड़ रहा है।
नरेंद्र बताते हैं, “पिछले साल अक्टूबर में मूसलाधार बारिश होने से आलू और गेहूं की फसल देरी से बोने के कारण पैदावार कम रही, जिसके बाद मक्का की फसल, अब धान की फसल में देर से नुकसान दिख रहा है।” जब जून में गर्मी भयंकर पड़ी तो बिजली की मांग बढ़ने से भुगतना किसानों को पड़ा। सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिल पाई। गन्ने और केले की फसल में पानी नहीं लग पाया।
सीतापुर जिले के किसान नंदू पांडेय बताते हैं, “अगर जून में बारिश हो जाती तो इन फसलों में नुकसान कम होता। या तो फिर बिजली मिल जाती। धान की नर्सरी में हफ्ते-दस दिन की देरी हुई है।”
वहीं, कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि मॉनसून में देरी को देखते हुए किसानों को धान की नर्सरी पर समय खराब नहीं करना चाहिए। लखनऊ में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश कुमार दुबे कहते हैं, “किसानों को अब नर्सरी डालने से अच्छा है कि धान की सीधी बुआई कर दें। इससे कम से कम दस दिन का समय बच जाएगा। ये बारिश काम की है जिन्हें उड़द, मक्का आदि की बुआई करनी है वो कर सकते हैं।”
कर्नाटक
कर्नाटक में 2023-24 में प्री-मॉनसून और दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान अच्छी बारिश होने की उम्मीद थी, इसलिए खरीफ सीजन के दौरान 82.35 लाख हेक्टेयर को कवर करने का कार्यक्रम बनाया गया था। लेकिन मॉनसून में देरी के बाद, बुआई की गति और संख्या धीमी हो गई है। सामान्य मॉनसून अवधि में कुल 82.35 लाख हेक्टेयर में से 10.59 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है।
कृषि निदेशालय, गुजरात सरकार द्वारा जून 2023 में तीसरे सप्ताह की खरीफ बुआई के आंकड़े बताते हैं कि साल-दर-साल आधार पर तिलहन मिश्रित बुआई में कमी आई है, जिसमें मूंगफली प्रमुख है। जबकि कपास की बुआई में वृद्धि हुई है।
राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, "यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि यह प्रवृत्ति इसी तरह जारी रहेगी, जहां मूंगफली की खेती में गिरावट जारी रहेगी और कपास की खेती बढ़ती रहेगी।"
सौराष्ट्र ऑयल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष समीर शाह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि इस खरीफ सीजन में मूंगफली की बुआई कम रहने की संभावना है।'' वहीं, किसानों का कहना है कि मूंगफली की फसल नष्ट हो जाती है, लेकिन कपास की फसल के साथ नहीं होता।
केरल
केरल में खरीफ का रकबा 1.94 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है, लेकिन दक्षिण पश्चिम मॉनसून में लगातार देरी के कारण केवल 35 प्रतिशत खेतों में ही बुआई हो पाई है। केरल में धान के साथ-साथ केला और अदरक को भी खरीफ फसल माना जाता है और इसकी खेती मुख्य रूप से वायनाड, पलक्कड़, इडुक्की, अलाप्पुझा, त्रिशूर और एर्नाकुलम जिलों में होती है। सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य के पारंपरिक धान के कटोरे, अलाप्पुझा और पलक्कड़ के कुट्टनाड क्षेत्र हैं।
पलक्कड़ में पिछले साल की तुलना में बारिश की कमी 65 फीसदी दर्ज की गई है। जिले के चित्तूर, मुथलमाडा और नेनमारा क्षेत्रों में किसानों ने 1 जून से चार दिनों में चावल के बीज बोए, जिस दिन दक्षिण पश्चिम मॉनसून शुरू होना था। मई के आखिरी सप्ताह में अप्रत्याशित गर्मी की वजह से बारिश हुई थी। लेकिन 1 जून के बाद से इस क्षेत्र में कोई बड़ी बारिश नहीं हुई है।
सिंचाई के बिना धान के पौधे मुरझा कर नष्ट हो रहे हैं। मुथलमदा राइस फार्मर्स कलेक्टिव के अध्यक्ष एममणि के अनुसार, चित्तूर तालुक में कम से कम 4,000 हेक्टेयर में पौधे मुरझा गए और पूरी तरह से नष्ट हो गए। अलाप्पुझा में समुद्र तल से नीचे चावल के खेतों, कुट्टनाड में भी यही स्थिति है।
आस-पास के बैकवाटर में उपलब्ध पानी का उपयोग करके अंकुरों को सहारा देने के लिए सिंचाई की सुविधाएं ही एकमात्र सांत्वना हैं। केरल में इस साल जनवरी से गर्मियों में बारिश के मामले में 35 फीसदी की कमी देखी गई है। पिछले साल मॉनसून के दौरान केरल में बारिश में 22 फीसदी की कमी आई थी।
इडुक्की जिले में बारिश के मामले में 48 फीसदी की कमी है, जिसका असर सब्जियों की खेती पर भी पड़ा है। केरल कृषि विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण विज्ञान कॉलेज के पी ओ नामीर के अनुसार, 2018 से केरल के मामले में विलंबित मानसून और खरीफ एक नई सामान्य बात बन रही है।
केरल के बारिश और कृषि कैलेंडर पिछले कुछ वर्षों में बदले गए हैं। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का प्रवेश द्वार होने के बावजूद, केरल को अभी तक बारिश के मौसम का पूरा एहसास नहीं हुआ है। बारिश की कमी के कारण खेती की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में किसान मॉनसून का इंतजार कर रहे हैं। राज्य में मॉनसून 15 जून तक आ जाता है, लेकिन 23 जून तक मॉनसून नहीं पहुंचा है। आने वाले दो—तीन दिनों में भी इसके आने की कोई पुख्ता सूचना नहीं है, इससे खरीफ फसलों में देरी होने की आशंका है। खासकर सोयाबीन बोने वाले किसान मौसम की लेटलतीफी से ज्यादा परेशान हैं। धान की फसलों में रोपा (नर्सरी) लगाने की तैयारी चल रही है।
किसानों ने खाद—बीज की पूरी तैयारी कर ली है। नर्मदापुरम् जिले के सतवासा गांव के किसान प्रदीप गौर मूंग की फसल निकालकर फुर्सत हुए तो खरीफ की तैयारी में जुट गए। उनका कहना है कि तूफान के कारण मॉनसून पिछड़ गया है, इससे हमारी बोवनी (बुआई) भी प्रभावित हो रही है। यदि ठीक वक्त पर मॉनसून आ गया होता तो उनकी आधी से अधिक बोवनी हो गई होती।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के लातूर क्षेत्र के किसान सुनील बाबळसुरे सोयाबीन बोते हैं। पिछले साल राई और पीला मोजॅक रोग के कारण उनकी फसल को भारी नुकसान हुआ था। एक एकड़ में केवल दो से ढाई क्विंटल ही उत्पादन हुआ था। इस साल बारिश न होने के कारण अब तक बुआई नहीं कर पाए हैं। बाबळसुरे कहते हैं कि बुआई में देरी के कारण इस बार भी सोयाबीन को भारी नुकसान होने का डर है।
वहीं, सुरेश बाबलसुरे ने बताया कि जून महिना बीत जाने के बावजूद भी बारिश की एक बूंद नहीं गिरने से जानवरों के लिए चारा नहीं मिल पा रहा है। पूरे मराठवाड़ा में कहीं भी बुआई शुरू नहीं हो पाई है। सुनील कहते हैं कि आर्थिक फसल के रूप में राज्य में फिलहाल कोई अन्य फसल उपलब्ध नहीं है , इसलिए सोयाबीन बोना पड़ेगा।
बिहार
बिहार में बारिश नहीं होने की वजह से अधिकांश जगह धान के खेतों में दरारें पड़ गई हैं। सुपौल जिला के वीणा पंचायत के अनिल झा बताते हैं कि,"अभी तक पूरे पंचायत में कहीं भी रोपाई शुरू नहीं हुई है। वैसे जून के पहले सप्ताह में हम लोग रोपनी शुरू कर देते थे। अब 5 से 6 दिन और बारिश की स्थिति को देख लेते हैं, उसके बाद मशीन से पटवन शुरू करके रोपाई शुरू करेंगे। नहर में पानी बहुत सूख चुका है। पिछले साल भी सूखाड़ की वजह से हम लोगों का काफी नुकसान हुआ था।"
ओडिशा
मॉनसून में देरी और अत्यधिक गर्मी की स्थिति के कारण ओडिशा में खरीफ के लिए कृषि गतिविधियां अभी तक शुरू नहीं हुई हैं। किसानों ने कहा कि परिणामस्वरूप कृषि गतिविधियों में 15 दिनों की देरी हुई है। खरीफ के दौरान ओडिशा में धान, मूंगफली, मक्का, दालें, बाजरा, कपास, अदरक और हल्दी जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
ओडिशा का सकल फसल क्षेत्र 83 लाख हेक्टेयर से अधिक है। राज्य कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों ने कहा कि पिछले खरीफ के दौरान शुद्ध बोया गया क्षेत्र 53.30 लाख हेक्टेयर था। चूंकि इस साल पानी की कमी के कारण बुआई शुरू नहीं हुई है, इसलिए विभाग ने अभी तक इस साल शुद्ध बुआई क्षेत्र का अनुमान नहीं लगाया है।
जून के पहले सप्ताह से राज्य में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अधिकांश निगरानी केंद्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया है। संबलपुर और सोनपुर में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि कई अन्य केंद्रों पर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया।
भीषण गर्मी के कारण अधिकांश जलस्त्रोत सूख गये हैं। मॉनसून में देरी के कारण बांधों के जलाशयों में जल स्तर भी कम हो रहा है। जलधाराओं में पानी नहीं होने से लिफ्ट सिंचाई व्यवस्था ठप हो गई है।
हीराकुंड बांध के अधिकारियों को 15 जून तक बांध कमांड क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी छोड़ना होता है, लेकिन वे ऐसा करने में विफल रहे, क्योंकि जलाशय में जल स्तर तेजी से घट रहा है। हीराकुंड बांध कमांड क्षेत्र में ज्यादातर बरगढ़ में सिंचित भूमि शामिल है, जिसे ओडिशा का 'धान का कटोरा' कहा जाता है। इसमें संबलपुर और सुबर्नापुर के कुछ हिस्से भी शामिल हैं।
किसान नेता अशोक प्रधान ने कहा, "किसानों के विरोध के बाद बांध अधिकारियों को 18 जून को सासोन नहर (संबलपुर में भूमि की सिंचाई के लिए) से कुछ पानी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।" बरगढ़ के किसानों ने कहा कि बांध की बरगढ़ नहर से अभी तक सिंचाई के लिए पानी नहीं छोड़ा गया है।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में मॉनसून सामान्य समय से लगभग एक सप्ताह की देरी से दक्षिण बंगाल के अधिकांश हिस्सों में पहुंचा है। इस वजह से बीज आधार की बुआई और तैयारी, जिसे स्थानीय भाषा में बिजटोला कहा जाता है, काफी प्रभावित हुई है।आमतौर पर राज्य में बुआई की तैयारी मॉनसून की शुरुआत के साथ जून के मध्य से शुरू होती है और लगभग 25 दिनों तक चलती है।
राज्य कृषि विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य में खरीफ धान के लिए लगभग 42 लाख हेक्टेयर भूमि निर्धारित है, लेकिन मॉनसून में देरी के कारण लगभग 25 प्रतिशत भूमि में बुआई नहीं हो सकी, जो पिछले साल की तुलना में काफी पीछे है।
राज्य के कृषि सचिव ओंकारनाथ मीना ने हालांकि उम्मीद जताई कि समग्र खरीफ उत्पादन पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक कि पिछले वर्षों की तरह अगस्त के मध्य और सितंबर की शुरुआत में लगातार सूखा नहीं पड़ता।
मीना कहते हैं, “उत्तर बंगाल में मॉनसून कमोबेश तय समय पर पहुंचा और अब यह दक्षिण बंगाल में प्रवेश कर रहा है। हमें उम्मीद है कि जो भी देरी हुई है, उस पर ध्यान दिया जाएगा। जलवायु की दृष्टि से यह अधिक महत्वपूर्ण है यदि अगस्त के मध्य में, सितंबर की शुरुआत में लगभग 15 दिनों तक सूखा रहता है, जब धान रोपण प्रक्रिया चल रही होगी, यह पश्चिमी बंगाल के जिलों जैसे बैंकुटा, बीरभूम, पश्चिम मिदनापुर और इसी तरह अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
अधिकारी ने याद दिलाया कि पिछले साल जलवायु परिवर्तन के कारण 10 प्रतिशत कम क्षेत्र में खरीफ की बुआई की गई थी। लेकिन तब भी बंपर उत्पादन हुआ, क्योंकि सूखे के अलावा काफी बारिश हुई थी।
(इनपुट उत्तर प्रदेश से मनीष मिश्रा, बिहार से राहुल कुमार झा, महाराष्ट्र से माणे सिद्धांत)