पश्चिमी यूपी में गन्ना की फसल को चौपट कर सकता है 'चोटी भेदक' कीट, बदलता मौसम जिम्मेवार

गन्ना वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले 2-3 वर्षों में इनका चोटी भेदक जैसे कीटों का प्रकोप बढ़ा है
पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल में लगे चोटी भेदक कीट की वजह से नुकसान का अनुमान है। फोटो: कुलवीर सिंह, बिजनौर, यूपी
पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल में लगे चोटी भेदक कीट की वजह से नुकसान का अनुमान है। फोटो: कुलवीर सिंह, बिजनौर, यूपी
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान दिनों एक कीट से बहुत परेशान हैं। किसान आम बोलचाल की भाषा में इसे सुंडी कहते हैं, कृषि अधिकारी और वैज्ञानिक टॉप बोरर (चोटी भेदक) कहते हैं। गन्ने के इस प्रमुख कीट के प्रकोप हरियाणा और पंजाब की अपेक्षा पश्चिमी यूपी में ज्यादा है। कीट से हो रहे नुकसान को देखते हुए प्रदेश के गन्ना विभाग और यूपी गन्ना शोध परिषद ने किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है।

बिजनौर जिले में गौसपुर टौकरी गांव के किसान विपुल चौधरी ने 'डाउन टू अर्थ' को बताया कि उनके पास 18 एकड़ गन्ना है। फसल को कीटों से बचाने के लिए वो पिछले 15-20 दिनों में 20-22 हजार रुपए के कीटनाशकों का छिड़काव कर चुके हैं।

विपुल बताते हैं, “करीब 15 दिन पहले खेत में सुंडी दिखी थी, जिसके बाद हमने कई कीटनाशकों का छिड़काव किया, जिस पर करीब 20 हजार रुपए खर्च हुए होंगे। इस दौरान हमने ये भी कोशिश की है कि आगे भी समस्या न हो। हमारे गांव के बुजुर्ग लोग कहते हैं जब पुरवा हवा चलती तो ये कीट ज्यादा लगता है, पछुवा में कम लगता है।” 

यूपी के सीतापुर-हरदोई जिले के बॉर्डर पर पिसांवा कस्बे में कीटनाशक विक्रेता शिवा शुक्ला ने 'डाउन टू अर्थ' को बताया कि पिछले 15-20 दिनों से किसान इस कीट की शिकायत कर रहे थे, जिसमें कई प्रमुख बड़ी कंपनियों की दवा ही असर करती है क्योंक कीट गन्ने के अंदर होता है। ऐसे में अगर कीट लगा तो किसानों को पेस्टीसाइड डालने ही होते हैं। अकेले मेरी दुकान से पिछले 15 दिनों में करीब 5 लाख रुपए के ऐसे कीटनाशक बिके होंगे।

कीट का प्रकोप हरियाणा व पंजाब में भी देखा जा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल ने अपनी एडवाजरी में कहा कि पर्यावरण परिवर्तन के कारण पिछले 2-3 वर्षों से इस कीट के जरिए गन्ने की फसल में ज्यादा क्षति महसूस की जा रही है।

'डाउन टू अर्थ' से बात करते हुए, गन्ना प्रजनन केंद्र, करनाल के अध्यक्ष और प्रधान कीट वैज्ञानिक डॉ.एस. के. पांडे ने कहा, “हरियाणा-पंजाब में कम, लेकिन पश्चिमी-यूपी में इसका ज्यादा प्रकोप देखा जा रहा है। छिद्रक कीट कई तरह के होते हैं, इस बार टॉप बोरर का प्रकोप ज्यादा है। एक साल की गन्ने की फसल के दौरान ये 6 बार अपनी संख्या बढ़ाता है और एक मादा एक बार में 200-300 अंडे देती है, जो एक हफ्ते में तैयार हो जाते हैं। फिलहाल जो खेतों में पाई जा रही कीट की तीसरी पीढ़ी है। मैंने फरवरी में ही किसानों को सचेत किया था कि इस बार टॉप बोरर सक्रिय हो गया है। यूरिया के छिड़काव के कारण भी यह कीट तेजी से बढ़ता है।”

उन्होंने आगे कहा कि पिछले साल भी इस कीट का ज्यादा प्रकोप था, इस दौरान पांचवीं और छठवीं पीढ़ी ने नुकसान किया था, लेकिन इस बार तीसरी पीढ़ी से अटैक हो गया है तो अगर समय पर प्रबंधन नहीं किया गया तो ये गन्ने के पूरे सीजन में काफी नुकसान पहुंचाएगी।”

पर्यावरण परिवर्तन से आशय हवा, तापमान और बारिश के पैटर्न में आ रहे बदलाव से है। पांडेय कहते हैं, “आपने भी महसूस किया होगा कि पिछले 3-4 वर्षों से गर्मी ज्यादा होने लगी है। बरसात का क्रम बदला है। इस बदलाव के चलते कीट पतंगों ने अपना जीवन चक्र बदल लिया है। जैसे टॉप बोरर हर साल गन्ने में लगता था, लेकिन ये मई-जुलाई में आता था, इस बार ये फरवरी में सक्रिय होने लगा था, क्योंकि इस बार तापमान ज्यादा होने लगा था। ये कीट नमी में ज्यादा पनपता है। पिछले साल अक्टूबर तक बारिश और बाढ़ का मौसम का था, ऐसे में कीट ने अपने अनकूल वातावरण में तेजी से विकास किया।”

उत्तर प्रदेश में सालाना औसतन 25-28 लाख हेक्टेयर के बीच गन्ने की खेती होती है और सालाना करीब 100-110 लाख टन के करीब चीनी का उत्पादन होता है। उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश में बहुतायत से उगाई जाने वाली गन्ने की प्रजाति सीओ-0238 है, गन्ना प्रजनन संस्थान के मुताबिक ये किस्म लाल सड़न और चोटी भेदक (टॉप बोरर) के प्रति संवेदनशील होती है।

गन्ना वैज्ञानिकों के मुताबिक पत्तों पर अंडों से जीवन शुरू कर ये कीट पत्ती के सहारे ही गन्ने के अंदर प्रवेश कर जाता है और गन्ने को रोगग्रस्त कर देता है। उसकी बढ़वार रुक जाती है। ये अगर कीट गन्ने में गया वो फरवरी तक अंदर रह सकता है और फसल कटाई के बाद नए अंकुर आने या रैटून (गन्ने की दूसरी पीढ़ी) को संक्रमित करता है।

एडवाइजरी में किसानों को सलाह दी गई है कि रासायनिक कीट नियंत्रण के अंतर्गत किसान अप्रैल के अंतिम सप्ताह अथवा मई के पहले सप्ताह में क्लोरेंट्रानिलिप्रोल (कोराजिन) 18.5 एस.सी. का 375 मिलीमीटर की मात्रा 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से जड़ों के पास ड्रैन्चिंग करने के बाद सिंचाई कर दें। किसान यांत्रिक, रासायनिक के अलावा जैविक कीटनाशकों के जरिए भी कीट नियंत्रण कर सकते हैं।

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