पशुपालन की वजह से पैदा हुई जलवायु चुनौतियां, निपटने के लिए निवेश की जरूरत

दक्षिण एशिया और अफ़्रीका में लगभग एक अरब लोगों की आजीविका के लिए जानवर पालना जरूरी है
फोटो: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन में कहा गया है कि, जलवायु संकट से निपटने के लिए, दुनिया भर में पशुपालन के क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव करने के अलावा अब कोई विकल्प नहीं रहा, यह एक आवश्यकता बन गई है। लेकिन ये बदलाव कैसे और कहां होने चाहिए?

अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह (सीजीआईएआर) के पशुधन और जलवायु पहल और वैगनिंगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पशुपालन में बदलाव को लेकर अध्ययन किया है। यह अध्ययन नेचर सस्टेनेबिलिटी जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययन में पाया गया कि, केवल कुछ मुट्ठी भर देशों जिनमें भारत, चीन, ब्राजील, पाकिस्तान और सूडान शामिल है, इन देशों में किया जाने वाला निवेश दुनिया भर में एक बड़ा बदलाव कर सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि, अध्ययनकर्ता मानते है कि, पशुपालन क्षेत्र में बदलाव से जलवायु संकट को कम करने में मदद मिल सकती है।

मवेशीयों में बढ़ोतरी जलवायु में बदलाव के लिए जिम्मवार है और साथ ही इसके प्रति संवेदनशील भी है। जुगाली करने वाले जानवरों की डकारें और खाद वातावरण में ग्रीनहाउस गैस मीथेन छोड़ते हैं और पशु पालन से जुड़े अन्य कार्बन उत्सर्जन भी होते हैं।

पशुपालन सीधे तौर पर वैश्विक वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 5.8 फीसदी है और इससे संबंधित वनों के काटे जाने और मिट्टी के क्षरण सहित 23 फीसदी के करीब है। पशु-आधारित खाद्य पदार्थ दुनिया भर के उत्सर्जन में खाद्य प्रणालियों के योगदान का लगभग एक-तिहाई के बराबर हैं।

लेकिन विकासशील दुनिया में अधिकांश पशुओं पर निर्भर लोगों का जलवायु पदचिह्न विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। जबकि सूखा, लू या हीटवेव और बाढ़ जैसे जलवायु संबंधी खतरे ग्लोबल साउथ में छोटे किसानों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं।

अफ़्रीका और दक्षिण एशिया में लगभग एक अरब लोगों की आजीविका के लिए जानवर पालना महत्वपूर्ण है। बकरियां, गायें और भेड़ों से दूध और मांस हासिल होता हैं तथा जानवरों का उपयोग खेती में किया जाता है।

अध्ययन के मुताबिक, इन प्रणालियों को बेहतर बनाने में किसी भी निवेश के लिए जलवायु शमन और अनुकूलन दोनों पर विचार करने की जरूरत है। कुछ ऐसा जो अधिकांश निवेशक और देश अभी तक नहीं कर रहे हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि, आप ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाली गाय को उस गाय से अलग नहीं कर सकते जिसका पालन जलवायु तनाव से प्रभावित होता है। केवल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित हस्तक्षेपों और नीतियों के कारण बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल छोटे किसानों की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

अध्ययन में 132 निम्न और मध्यम आय वाले देशों के पशुपालन से होने वाला उत्सर्जन और जलवायु के खतरों दोनों का विश्लेषण किया और पाया कि लगभग हर जगह, शमन और अनुकूलन उलझे हुए थे। उन्होंने भारत, चीन, ब्राजील, पाकिस्तान और सूडान को शीर्ष पांच निवेश प्राथमिकताओं के रूप में पहचाना।

जहां अधिक उत्सर्जन वाले स्थान और बड़ी संख्या में लोग और जानवर जलवायु में बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं। संयुक्त रूप से, इन पांच देशों में पशुधन उत्पादन के कुल मूल्य का 46 फीसदी, कुल ग्रामीण आबादी का 35 फीसदी जलवायु से होने वाले खतरों की कगार में है और 51 फीसदी पशुधन ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।

अध्ययन में कहा गया है कि, मुट्ठी भर देश दुनिया भर में पशुधन उत्सर्जन में असामान्य रूप से योगदान करते हैं, मुख्य रूप से उनके आकार और बड़ी आबादी के कारण। ये जलवायु प्रणाली, भूमि और आजीविका के साथ पशुधन क्षेत्र के परस्पर प्रभाव  के लिए महत्वपूर्ण बिंदुओं के रूप में कार्य करते हैं। प्रभावी शमन रणनीतियों को इन उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्थायी पशुधन प्रथाओं में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए।

उच्च आय वाले देशों को अपने कृषि उत्सर्जन के लिए छूट नहीं मिलती है या इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य कम आय वाले देशों में निवेश नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, केन्या और इथियोपिया, दोनों ने सबसे अधिक अंक हासिल किये हैं। यह सिर्फ इतना है कि यदि आप इन पांच देशों में पशुपालन के तरीके को बदल देते हैं, तो आप जलवायु प्रणाली में बहुत, बहुत बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं।

शोध पहले से ही ऐसे बदलाव के लिए रास्ते सुझाता है। सबसे बुनियादी स्तर पर, पशुपालन को वनों की कटाई से अलग किया जाना चाहिए। हमारे पास पर्याप्त भूमि है। वनों को काटे जाने से रोकने की जरूरत है। वनों की कीमत पर पशुपालन का कोई औचित्य नहीं है। किसानों को घूम-घूम कर  चराई प्रणालियों को लागू करने में मदद करने के लिए तकनीकी सहायता को बढ़ावा देना भी कोई आसान काम नहीं है।

जानवरों के आहार को स्थानीय रूप से अनुकूलित चारा पौधों में स्थानांतरित करना व्यावसायिक चारा खरीदने की तुलना में जलवायु के लिए अधिक अच्छा है। झुंड के आकार को कम किए बिना भी मीथेन उत्सर्जन में कटौती की संभावना है। कोलंबिया में पारंपरिक घास मोनोकल्चर में चारा फलियां जोड़ने से गायों के मीथेन उत्सर्जन को 15 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

चारागाह प्रणालियों या घास के पौधे लगाने से भी कई जलवायु संबंधी फायदे होते हैं। झाड़ियां और पेड़ कार्बन भंडारण और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं, उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, जैव विविधता को बढ़ावा दे सकते हैं और हीटवेव के दौरान जानवरों को छाया प्रदान कर सकते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि, कोलंबिया में, सरकारी निवेश ने अकेले 2023 में 35,000 हेक्टेयर तक पेड़ों को लगाने में मदद की है, इनक 2026 तक 300 हजार हेक्टेयर तक पहुंचने का लक्ष्य है। ब्राजील में, कई पुनर्वनीकरण कार्यक्रम भी देश भर में जंगलों का विस्तार कर रहे हैं।

पांच अच्छे जानवरों को रखने की तुलना में 10 कमज़ोर जानवरों को रखना शमन और अनुकूलन के मामले में बहुत खराब है। यदि साबित हो जाए, तो इस प्रणाली को पूरे अफ़्रीका में जहां 26.8 करोड़ जलवायु से प्रभावित लोग महाद्वीप के 43 फीसदी हिस्से में जानवर पालते हैं, जिन पर भारी प्रभाव पड़ सकता है।

यदि पुरे ग्लोबल साउथ में पशुधन उत्पादक अपने चरागाह प्रबंधन में सुधार कर सकते हैं और पेड़ लगा सकते हैं और जलवायु के अनुरूप निर्णय लेने में मदद करने के लिए सुरक्षा-जाल, जानकारी और संसाधनों तक पहुंच हासिल कर सकते हैं, तो मुझे लगता है कि हम कार्बन उत्सर्जन और पशुपालन दोनों में एक नाटकीय बदलाव ला सकते हैं।

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