छत्तीसगढ़: समय पर शुरू हो जाती सरकारी खरीद तो बर्बाद नहीं होते किसान

छत्तीसगढ़ के किसानों का कहना है कि वे धान की सरकारी खरीद का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन बेमौसम बारिश के कारण उनकी सारी फसल खराब हो गई
छत्तीसगढ़ के धमंतरी जिले में नवंबर के अंतिम सप्ताह में हुई भारी बारिश के कारण धान की फसल खराब हो गई। फोटो: अवधेश मलिक
छत्तीसगढ़ के धमंतरी जिले में नवंबर के अंतिम सप्ताह में हुई भारी बारिश के कारण धान की फसल खराब हो गई। फोटो: अवधेश मलिक
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नवबंर के महीने में हुई बारिश ने धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के किसानों को बड़ा नुकसान पहुंचाया। पहले सूखा, उसके बाद अचानक बारिश ने राज्य के किसानों को तबाही के कगार पर पहुंचा दिया है। नवंबर में चार बार बेमौसम बारिश हुई। जिसके चलते खेतों में खड़ी धान खराब हो गई। किसानों का कहना है कि यदि राज्य सरकार 1 नवंबर से धान की सरकारी खरीद शुरू कर देती तो उनको नुकसान नहीं होता।

राजधानी रायपुर, और सटे जिलों में 21-22 तारीख के रात में इतनी भारी बारिश हुई कि उसने पिछले 10 वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया। रायपुर के मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक 33 मिमी बारिश हुई। माना एयरपोर्ट और दुर्ग में 70-70 मिमी तो लाभांडी में 50, छुरा में 40, मैनपुर में 30, धमधा, अभनपुर, पाटन और मगरलोड में 20-20 मिमी बारिश हुई। उस रात मध्य छत्तीसगढ़ के अलावा राज्य में बिलासपुर और जगदलपुर में भी हल्की बारिश हुई थी।

रायपुर से सटे अभनपुर आले-खूंटा गांव के आदिवासी किसान मनोज ध्रुव कहते हैं कि उन्होंने 6 एकड़ खेत में धान की फसल लगाई थी, लेकिन बारिश के कारण पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो गई। आज हफ्ता हो गया है, लेकिन आज भी हिम्मत नहीं हो रही है कि कटी हुई धान का फसल को खेतों से उठवा लूं, वह अभी भी भीगा हुआ है। अगर इसे उठवा भी लेता हूं तो मिंजाई और मजदूरों को देने के लिए पैसे नहीं निकल पाएंगें। हम लोग तो बर्बाद हो गए। फसल बीमा तो किया गया है पर पता नहीं बीमा का क्लेम मिलेगा भी कि नहीं। कर्ज लेकर इस बार धान की फसल लगाई थी, पता नहीं कहां से पैसे दे पाउंगा।

रायपुर से सटा हुआ धमतरी जिले के किसान नरेश साहू बताते हैं कि इस बारिश ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। खेतों में तैयार धान फसल पानी में भीग गया। रात में हुई बारिश से खेतों में गिरी धान फसल में पानी भर गया है। रात में रुक-रुक कर बारिश हुई। जिससे खेतों में कट कर रखी फसल भी पानी में डूब गई।

किसान गैंद कुमार साहू बताते हैं कि उनकी खेतों में पड़ी फसल में बारिश के कारण से अंकुरित होने लगी है और उनकी फसल न अब मिंजाई के लिए उपयुक्त बची है न उसना बनाकर बेचने के लिए। टूट भी बहुत आएगा। सरकार ने अगर 1 नवंबर को ही धान खरीदी शुरू कर देती तो शायद बच जाते।

बस्तर के दंतेवाड़ा से प्रकाशित एक पत्रिका के रिपोर्ट में बताया गया है कि इस बार इस बार धान की खेती करीब 96 हजार हेक्टेयर रकबे में की गई थी लेकिन नवंबर महीने में हुई मूसलाधार बारिश में अधिकतर खेतों में पानी भर गया और धान की फसल तबाह हो गई। 

राजनांदगांव के किसान नेता सुदेश टीकम कहते हैं – जिले में नुकसान एक समान नहीं हुआ है, बल्कि कहीं कम और कहीं अत्याधिक है। टीकम भी कहते हैं कि सरकार 1 नवंबर से ही धान की खरीदी चालू कर देती तो किसान बर्बाद होने से बच जाते। 

दुर्ग के किसान नेता राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि पहले महंगाई, तेल के कीमतों में बढ़ोत्तरी, खाद की कालाबाजारी, अमानक बीजों का किसानों को वितरण और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अरब और बंगाल की खाड़ी में तूफान और अनायास बारिश, उस पर सरकार की बेरूखी गरीब किसान जाए तो जाए कहां। इस महीने जो बारिश हुई है इससे तो प्रदेश भर का अगर सही तरीके से आकलन हो तो धान के फसल में नुकसान 50 प्रतिशत या उससे अधिक निकलेगा और फिर सरकारी लीपा-पोती हुई तो फिर कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन सरकार द्वारा मुआवजा और बीमे के राशि में कटौती हुई तो हम किसानों के पास लड़ने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचता है।

अंगारा डही जुनवानी बगदही दौरा करने वाले लीला राम साहू छत्तीसगढ़ किसान युनियन प्रदेश संयोजक लीला राम साहू किसानों काव्यात्मक लहजे में स्थिति कुछ इस तरह बयान करते हैं -  

“बेमौसम भारी बारिश से देखो खेती में कितना नुकसानी है, खेतों के धान मे जरई, खरही के धान पाखड़, सब तरफ से हानि हानि है, कितने ही किसानों का धान पानी में डूबे डूबे सड़ गये, कितने किसानों के धान का कलर बिगड़ गये

खेतों में बोये तिवड़ा,गेहूं, चना, उड़द मुंग सब सड़ गयी है, सोचों किसानों का सब तरफ से हालत बिगड़ रही है, अब किसानों को किसान हितैषी सरकार से ही उम्मीद बंधी हुई है, सभी किसानों का कर्ज कर दे माफ, फसल बीमा का सभी को दिलादे लाभ, अब समर्थन मुल्य में खरीदे काले रसे जरई पाखड़ सभी तरह के धान, तभी इस भयानक प्राकृतिक आपदा से उबर पायेगी किसान” 

स्थानीय पत्रकार अंकुर तिवारी कहते हैं किसानों की स्थिति बहुत ही खराब है, सरकारी आदेश व पटवारियों का फसल सर्वे करने का तरीका काफी नायाब है। पटवारी जाता है सरपंच से मिलता है, उसके नजदीकियों का नाम लिखा, फिर रेंडम सर्वे का खेल होता है और फिर फर्जी आंकड़ों के आधार रिकार्ड बन जाता है और पेश भी हो जाता है। सरकार भी खुश और सरकारी महकमा भी खुश। बस्तर के अंदरूनी इलाकों में नक्सलियों के भय होने का बात कह कर कई बार तो कार्यालय में रिकार्ड तैयार हो जाता है।

उधर, राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव नीलम नामदेव एक्का कहते हैं कि - बारिश से नुकसान हुआ है, राज्य सरकार ने स्टेट लेवल सर्वे के आर्डर दिए हैं, अधिकांश नुकसान जो धान की फसल कट गई थी उसमें हुआ है। इस महीने के अंत तक में डेटा आ पाएगा। हालांकि 33% से अधिक नुकसान होने पर मुआवजा का प्रावधान है।

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