पश्चिमी राजस्थान में मौसमी परिवर्तन से खानपान में बदलाव, बाढ़ से खेजड़ी को नुकसान

पिछले तीन माह की बारिश ने खेजड़ी के उत्पादन को प्रभावित किया
पश्चिमी राजस्थान में मौसमी परिवर्तन से खानपान में बदलाव, बाढ़ से खेजड़ी को नुकसान
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पश्चिमी राजस्थान के खानपान में तेजी से बदलाव आ रहा है। इसका एक बड़ा कारण है कि यह इलाका पिछले 15 सालों में तीन बड़ी-बड़ी बाढ़ ( 2006, 2008-09 और 2017 में) का सामना कर चुका है। इसके चलते इस इलाके की उपज पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

यह बात पाली जिले और आसपास के पांच जिलों में पर्यावरणीय मुद्दों पर लगातार जोधपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले प्रेम सिंह राठौर ने कही।

उनका कहना है कि  शुष्क क्षेत्र में पानी की उपलब्धता की कमी फसल उत्पादकता कम होने का तो एक मुख्य कारण है ही। लेकिन इस शुष्क क्षेत्र में वर्षा की अत्यधिकता अब बहुत अधिक अविश्वसनीय होती जा रही है। विशेषकर पिछले डेढ़ दशक में इस क्षेत्र ने अचानक बाढ़ (बहुत कम समय में तीव्र वर्षा होने से) और इसके बाद तेजी से सूखा शुष्क क्षेत्र जैसी जुड़वां परेशानियों के कारण प्राकृतिक रूप से खेतों में या रेगिस्तानों में लगे पेड़-पौधों पर इसका अधिक विपरित असर पड़ा है।

इस क्षेत्र में, दक्षिण-पश्चिम मानसून का खराब प्रदर्शन भी सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। राठौर का कहना है कि यहां के खानपान में खेजड़ी एक बहुत ही महत्वपूर्ण पेड़ है लेकिन इसकी उपज भी इस आर सत्तर फीसदी कम होने का अनुमान लगाया गया है।

ध्यान रहे कि खेजड़ी (प्रोसोपिस साइनेरेरिया) शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में पाया जाने वाला बहुउपयोगी एवं बहुवर्षीय वृक्ष है। खेजड़ी की पत्तियों का चारा (लूंग) बकरिया, ऊंट तथा अन्य पशु खाते हैं। लेकिन पिछले पांच सालों से देखा जा रहा है कि राज्य का वृक्ष कहा जाने वाला खेजड़ी का पेड़ अब कमजोर होते जा रहा है। प्रदेश में मारवाड़, शेखावटी के जांगल क्षेत्र में राज्य की 90 प्रतिशत खेजड़ी के पेड़ पाए जाते हैं।

जोधपुर में खेजड़ी के पेड़ की खेती करने वाले किसान राजेंद्र सिंह ने बताया कि अब इसमें फंगस व कीट लगने के कारण इस पर लगने वाले सांगरी फल की उत्पादकता में 60 से 70 फीसदी से अधिक गिरावट आ गई है। अब हमारे लिए यह लाभदायक पेड़ नहीं रहा है।

वह कहते हैं कि  पिछले चार-पांच साल से जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध छंगाई, ट्यूबवैल की पानी की सिंचाई, कीटनाशकों के प्रयोग से खेजड़ी के पेड़ में बीमारियां लगनी शुरू हो गई हैं और सांगरी के उत्पादन में गिरावट आई है। 

वह बताते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह है मौसम में नमी का बढ़ना है। क्योंकि पश्चिमी राजस्‍थान में इस साल के मार्च, अप्रैल और मई के महीनों में तीन गुना ज्‍यादा बारिश हुई है और हवा में नमी के कारण कीड़े पनपने लगे हैं। इसकी वजह से इससे सांगरी की जगह गांठें (गिरड़ू) निकल आई हैं।

वह कहते हैं कि जहां गर्मी पड़नी थी, वहां पर बारिश के कारण ठंडक हो गई है। नमी के कारण खेजड़ी के प्राकृतिक दुश्मनों जैसे फंगस और कीट के पनपने के लिए अच्‍छी परिस्थितियां पैदा हो गईं हैं, पहले ये इलाके में गर्मी और तेज अंधड़ चलने से मर जाते थे लेकिन नमी के कारण ये बड़ी संख्या में पनप गए हैं। 

इस संबंध में राजस्थान विश्व विद्यालय में इंदिरा गांधी सेंटर के पर्यावरण विभाग के पूर्व प्रमुख टीआई खान का कहना है कि खेजड़ी का उत्पादन में कमी या उसमें लगने वाली बीमारियों का कारण जलवायु परिवर्तन कहना थोड़ा अभी जल्दबाजी होगी। हां हम कह सकते हैं कि लगातार पिछले तीन माहों की बारिश की अधिकता इसके लिए अधिक जिम्मेदार है।

इसके लिए हमें यहां ध्यान रखना होगा कि एक तो हमारी पारंपरिक ज्ञान हमारे साइंस को सपोर्ट नहीं करता है और पारंपरिक ज्ञान का कहना है कि खेजड़ी एक बहुत ही धीरे-धीरे बढ़ने वाला पेड़ है और यह बीज से पेड़ बनने के बीच छह चरणों को पार करता है।

यही इसका जीवन चक्र है। यह एक ऐसा पेड़ है जो सभी प्रकार के मौसम को आत्मसात कर लेता है ऐसे में इसकी क्षमता भी अधिक होती है। इसके बावजूद उनका कहना है कि अब खेजड़ी में परिवर्तन नजर आ रहे हैं। खेजड़ी के उत्पादन के छह चरण होते हैं लेकिन मार्च से मई माह तक लगातार बारिश ने इसके चरण को कहीं न कहीं अवरुद्ध कर दिया है।

इसके कारण इसके उत्पादन पर असर पड़ रहा है। खेजड़ी के उत्पादन पर असर पड़ने का एक अन्य कारण जोधपुर स्थित केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसन्धान संस्थान यानी काजरी के निदेशक ओपी यादव ने डाउन टू अर्थ से बात करते हुए बताया कि हर साल यदि खेजड़ी की छंगाई (पेड़ में कटाई-छंटाई) नहीं हेाती है तो भी इसके उत्पादन पर असर पड़ता ही है।

जलवायु परितर्वन के के असर पर प्रेम सिंह राठौर कहते है कि राजस्थान के पश्चिमी भाग में जलवायु परिवर्तन का असर पिछले डेढ़ दशक से दिख रहा है। इसी के नतीजतन यहां बारिश के स्वरूप में बदलाव आया है। एक दिन में होने वाली बारिश का औसत बढ़ा है। पिछले 15 सालों से यहां बारिश 15 फीसदी की दर से बढ़ रही है। इसका कारण है हवा के स्वरूप (विंड पैटर्न) में तेजी से बदलाव। यह क्षेत्र समुद्र से बहुत अधिक दूरी (यह दूरी लगभग 350 किलोमीटर) पर नहीं है। इसके कारण वातावरण में तेजी से आर्द्रता आ रही है।

मानसून का स्वरूप अब पश्चिम की ओर हो रहा है। वहीं यदि भविष्य में राज्य के पश्चिमी भाग के बारे में देखें तो इण्डियन ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी संस्थान का 2006 का शोधपत्र काफी अहम है जिसमें दावा किया गया है कि जब हम 21वीं सदी में जैसे-जैसे और आगे बढ़ेंगे राज्य में मानसूनी बरसात और कम होती जाएगी। ध्यान रहे कि इस शोधपत्र का उपयोग राजस्थान राज्य जलवायु परिवर्तन की कार्ययोजना में हुआ था।

लेकिन अब तक उसका क्रियान्वयन नहीं दिखा है। यही नहीं मैक्स प्लैक संस्थान के 2013 के शोध में उच्च रिजॉल्यूशन वाले मल्टीमॉडल का उपयोग किया था ताकि हाल के सालों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्पष्ट और अवलोकन को परिभाषित किया जा सके। इस अध्ययन का अनुमान है कि 2020-2049 में 1970-1999 के औसत स्तर की तुलना में पश्चिम राजस्थान में बारिश में 20-35 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।

इसके अलावा स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन की 2009 की रिपोर्ट के अनुसार सघन बारिश का घनत्व और आवृत्ति और बढ़ेगी। वर्ष 2071-2100 के बीच राज्य में एक दिनी बारिश अधिकतम 20 मिमी और पांच दिनी बरसात 30 मिमी तक बढ़ने की आशंका जताई गई है।  

राठौर बताते हैं कि राज्य के इस भाग में तेजी से मौसम में बदलाव देखने में आया है और यह अब तक के अध्ययन से स्पष्ट भी होता है। खेजड़ी जैसे पेड़ राज्य के प्राकृतिक परिवर्तन को कितना झेल पाते हैं। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। ध्यान रहे कि यह खेजड़ी का पेड़  राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र , गुजरात, पंजाब और कर्नाटक राज्य के शुष्क, अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है।

पंजाब में इसे जंड, हरियाणा में जांड, दिल्ली के आसपास जांटी, सिंधी में कजड़ी, गुजरात में सुमरी, कर्नाटक में बनी और तमिलनाडु में बन्नी या वणि आदि नामों से पुकारा जाता है। भारत के अलावा यह प्रजाति अफगानिस्तान, अरब तथा अफगानिस्तान मे भी पाई जाती है। संयुक्त अरब अमीरात में इसे राष्ट्रीय पेड़ का दर्जा हासिल है जिसे घफ कहा जाता है। सूखे इलाकों में इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण मरुस्थलीकरण को रोकने में यह सहायक होता है।

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