नरेंद्र सिंह तोमर को एक साथ कई जिम्मेवारियां दी गई हैं। उन्हें कृषि मंत्रालय के साथ-साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय भी सौंपा गया है। दोनों ही क्षेत्र गंभीर संकट से गुजर रहे हैं। ऐसे में, तोमर ऐसे मंत्री होंगे, जिनके सामने सबसे अधिक चुनौतियां होंगी। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में यह देखने को भी मिल गया। पीएम किसान सम्मान योजना और पीएम किसान पेंशन योजना से संबंधित फैसले लेकर किसानों को खुश करने की कोशिश की गई, लेकिन अभी सरकार के सामने समस्या की जड़ को पकड़ने की चुनौती है। आइए, जानते हैं, क्या है वर्तमान हालात।
कृषि को भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है और कृषि पूरी तरह से भूमि पर निर्भर करती है। ऐसे में, जहां कृषि भूमि घटती जा रही हो और भूमि का मरूस्थलीकरण बढ़ रहा हो तो आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के कृषि क्षेत्र की क्या स्थिति होगी।
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र 32.87 करोड़ हेक्टेयर है और आंकड़े बताते हैं कि इसमें से लगभग 9.64 करोड़ हेक्टेयर भूमि (लगभग 30 प्रतिशत) या तो मरुस्थल हो चुकी है या होने वाली है। भूमि का मरुस्थलीकरण, उस स्थिति को कहा जाता है, जब क्षरण की वजह से भूमि लगातार सूखती जाती है और अपने जलस्त्रोत खो देती है। साथ ही, कम बारिश और भूजल स्तर नीचे जाने से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जाती है।
ऐसे समय में, जब हम 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करते हैं। भूमि का उपजाऊ न होना अच्छे संकेत नहीं हैं। वह भी तब, जब भूमि के मरुस्थलीकरण में लगातार वृद्धि हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि आठ राज्यों - राजस्थान, दिल्ली, गोवा, महाराष्ट्र, झारखंड, नागालैंड, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश में तकरीबन 40 से 70 प्रतिशत भूमि (देखें: मरुस्थलीकरण) मरुस्थल में बदलने वाली है। इनमें से कुछ राज्यों में कृषि उत्पादन की स्थिति पहले अच्छी रही है।
चुनाव में राजनीतिक दल किसानों की दशा में सुधार का वादा कर रही हैं, लेकिन उनके एजेंडे में इस बात का जिक्र नहीं किया कि भूमि का मरुस्थलीकरण रोकने के लिए क्या किया जाएगा।
भूमि के मरुस्थलीकरण के अलावा कृषि क्षेत्र को कई और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जैसे कि कृषि की लागत बढ़ रही है, लेकिन आमदनी बढ़ने की बजाय कम हो रही है। आए दिन किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, लेकिन सरकार आंकड़े छुपा रही है।
किसानों को बेमौसमी बारिश, तूफान व चक्रवात का सामना करना पड़ रहा है। इसके लिए एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की, लेकिन इसका फायदा किसानों की बजाय बीमा कंपनियों को पहुंच रहा है।
यह हाल तब है, जब देश में कृषि उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 1950-51 में देश में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 5.10 करोड़ टन था, जो 2015-16 में 25.2 करोड़ टन पहुंच गया, लेकिन जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार घट रही है। 1951 में भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 50 फीसदी थी, जो 2018-19 में घटकर मात्र 15 फीसदी रह गई है।
भूमि के छोटे स्वामित्व में वृद्धि हो रही है यानी सीमांत किसान बढ़ रहे हैं, लेकिन इससे उनकी आमदनी नहीं बढ़ रही है। रही-सही कसर रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने पूरी कर दी है। इसके इस्तेमाल में 43 फीसदी की वृद्धि हुई है। इससे जहां भूमि की उत्पादकता प्रभावित हुई है और किसानों के लिए यह दांव उल्टा पड़ रहा है।