कसावा; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
कसावा; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

नागालैंड में कसावा से बदलेगें किसानों के हालात, स्टार्च से बनेंगे कम्पोस्टेबल बायोप्लास्टिक बैग

इस पहल का लक्ष्य एक ग्रीन सर्कुलर इकॉनमी का निर्माण करना और किसानों को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना है।
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दुनिया भर में बढ़ता प्लास्टिक कचरा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, लेकिन नागालैंड के किसान जिस तरह इससे निपटने का प्रयास कर रहे हैं, वो अपने आप में एक उदाहरण है। नगालैंड के गांवों में कसावा की खेती को बढ़ावा देने की एक योजना पर काम शुरू हो गया है। इसकी मदद से कम्पोस्टेबल बायोप्लास्टिक बैग तैयार किए जाएंगे। 

इससे एक तरफ जहां किसानों को फायदा होगा, साथ ही दूसरी ओर सिंगल यूज प्लास्टिक का विकल्प भी तैयार किया जा सकेगा। गौरतलब है कि मोकोकचुंग के दस गांवों के छोटे किसान आज प्लास्टिक की जगह कसावा स्टार्च से बने कम्पोस्टेबल बायोप्लास्टिक बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं।

देखा जाए तो विकल्पों की कमी के चलते सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के प्रयासों को सीमित सफलता ही हाथ लगी है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रीच (एनईसीटीएआर) ने कसावा स्टार्च (मैनिहोट एस्कुलेंटा) की मदद से कंपोस्टेबल बायोप्लास्टिक बैग बनाने की एक पहल की शुरूआत की है।

बता दें कि कसावा एक तरह का कंद है, जिसकी जड़ें स्टार्च से भरपूर होती है। इसकी बनावट काफी हद तक शकरकंद से मिलती है। लेकिन इसकी लंबाई कहीं ज्यादा होती है। इस फसल से भरपूर मात्रा में स्टार्च मिलता है, जिसकी मदद से नागालैंड में बायोप्लास्टिक बनाए जाने के प्रयास जारी हैं। किसान कम पानी और उपजाऊ मिट्टी के बिना भी कसावा की अच्छी पैदावार ले सकते हैं। इसे मवेशियों के चारे के तौर पर भी उपयोग किया जाता है।

नागालैंड स्थित एमएसएमई इकोस्टार्च ने कसावा से बायोप्लास्टिक बैग बनाने के लिए मोकोकचुंग में एक सुविधा स्थापित की है। साथ ही वे 30 से 40 किलोमीटर के दायरे में किसानों को कसावा उगाने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। किसानों ने इनका रोपण शुरू भी कर दिया है और अनुमान है कि ये फसलें करीब एक साल में कटाई के लिए तैयार हो जाएंगी।

इस सुविधा की वर्तमान क्षमता हर महीने करीब तीन टन बायोप्लास्टिक बैग बनाने की है। हालांकि बाजार का जो सर्वेक्षण किया गया है उससे पता चला है कि इसकी मांग उससे कहीं ज्यादा है।

यह मॉडल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ युवाओं को रोजगार के अवसर देने के लिए 'कसावा गांवों' को बढ़ावा देता है। इतना ही नहीं कसावा की खेती के माध्यम से आजीविका के वैकल्पिक अवसर प्रदान करने के लिए किसान समूह भी बनाए जा रहे हैं।

कसावा की खेती के लिए किसानों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

कसावा की खेती कैसे की जाए, इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें जरूरी कृषि सामग्री भी प्रदान की जा रही है। इसके साथ ही चुनिंदा गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को भी कसावा की खेती के लिए समर्थन और प्रोत्साहन दिया जा रहा है, ताकि यह लोग भी इससे आय अर्जन कर सकें।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि इकोस्टार्च का लक्ष्य किसानों से स्थानीय रूप से प्राप्त कसावा स्टार्च से बायोडिग्रेडेबल बैग और पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए एक इकाई स्थापित करना है। इससे स्थानीय युवाओं को कच्चे माल की सफाई, शिपिंग के लिए उत्पादों की छंटाई और पैकेजिंग में मदद से जुड़े रोजगार के अवसर मिल सकेंगे।

इस प्रयास से जहां क्षेत्र में पर्यावरण अनुकूल प्लास्टिक अर्थव्यवस्था का निर्माण होगा, साथ ही पर्यावरण को भी बचाने में मदद मिलेगी। स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

उम्मीद है कि इसकी मदद से हर एक गांव को जीवंत आर्थिक केंद्र में बदला जा सकेगा। इस पहल का लक्ष्य एक ग्रीन सर्कुलर इकॉनमी का निर्माण करना और किसानों को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना है।

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