बिहार: खेतों में खड़ी फसल पर चल रहा बुलडोजर, किसान कर रहे विरोध

भारतमाला प्रोजेक्ट के लिए सरकार जमीन अधिग्रहण कर रही है, लेकिन किसान अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं
चेनारी प्रखण्ड के गांव बीरनगर में सुरक्षा बल और किसान आमने सामने डटे हुए हैं। फोटो: राहुल कुमार गौरव
चेनारी प्रखण्ड के गांव बीरनगर में सुरक्षा बल और किसान आमने सामने डटे हुए हैं। फोटो: राहुल कुमार गौरव
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Summary
  • भारतमाला प्रोजेक्ट के लिए बिहार में किसानों की जमीन अधिग्रहण पर विवाद बढ़ता जा रहा है।

  • किसानों का आरोप है कि उन्हें उत्तर प्रदेश की तुलना में कम मुआवजा मिल रहा है

  • किसानों की फसलें नष्ट की जा रही हैं।

  • विरोध के चलते कई जगहों पर निर्माण कार्य रुकवाया गया है।

  • किसानों ने स्वतंत्रता दिवस भी नहीं मनाया।

देशभर में यातायात की गति को बढ़ाने के उद्देश्य से बनाया जा रहा भारतमाला प्रोजेक्ट एवं अन्य विकास की योजनाओं का बिहार में लगातार विरोध किया जा रहा है।

रोहतास जिले के चेनारी प्रखंड स्थित बीरनगर गांव के रहने वाले सौरभ कुमार बताते हैं कि भारतमाला परियोजना के तहत वाराणसी से कोलकाता तक बनने वाला एक्सप्रेस-वे के लिए कैमूर, रोहतास व औरंगाबाद में खेतों में खड़ी धान की फसल पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। उनका लगभग 25 कट्ठा जमीन सरकार ले रही है। गौरतलब है कि बिहार में एक बीघा में 20 कट्ठे एवं 1 एकड़ में लगभग 32 कट्ठा जमीन आती है।  

उसी गांव के रहने वाले सुखदेव यादव ने कहा, “हमारी रोजी-रोटी इस जमीन पर निर्भर रहती है। उत्तर प्रदेश की तुलना में हमें 75 प्रतिशत कम पैसा हमें मिल रहा है। यूपी के किसानों को एक बीघा के लिए 65 लाख रुपए मिल रहे हैं। वही हमें सिर्फ 20 लाख रुपये दिया जा रहा है।

इससे पहले 1 मार्च 2025 को आरा बाइपास रेलवे लाइन जगजीवन हाल्ट से मुख्य रेलवे लाइन सासाराम लिंक केबिन परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई भूमि पर रैयतों द्वारा लगाई गई फसल को बुलडोजर चलाकर नष्ट किया गया। जिसमें आरा निवासी निरंजन पाठक की जमीन भी थी। वह बताते है कि “सरकार कुछ दिन रुक सकती थी। एक तो उचित मुआवजा नहीं देती उस पर से खड़ी फसल को नष्ट कर दिया। हम लोग भुखमरी के कगार पर आ जाएंगे।”

जनगणना 2011 के जनसंख्या घनत्व डेटा के अनुसार बिहार सबसे घनी आबादी वाला राज्य है। इस वजह से सभी लोगों के लिए भूमि की उपलब्धता नहीं होने के कारण बिहार में जमीन विवाद के मामले हर साल बड़ी संख्या में दर्ज होते हैं। ऐसी स्थिति में मुआवजे में कमी, विस्थापन के डर और सामाजिक न्याय की चिंताओं की वजह से विकास कार्य को लेकर भूमि अधिग्रहण में अक्सर किसानों का विरोध देखने को मिलता है।

पटना में किसानों का विरोध 

25 अगस्त 2025 को सांसद और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के नेतृत्व में करीब एक हजार किसान अधिग्रहित जमीन का मुआवजा वर्तमान सर्किल रेट के आधार पर देने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने पहुंचे थे। इस दौरान डाक बंगला चौराहे पर संयुक्त किसान मोर्चा के किसानों एवं पुलिस के बीच नोकझोंक भी हुई।

किसानों के आक्रोश को देखते हुए 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य सचिवालय में प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा से मुलाकात की। सांसद सुधाकर सिंह ने मीडिया को बताया कि, “जमीन के मूल्य और वर्गीकरण को लेकर दो मांगें रखी गईं। प्रधान सचिव ने कहा कि जमीन का मूल्य 2013 से 10% चक्रवृद्धि ब्याज जोड़कर तय होगा, जिससे किसानों को 12 वर्षों में ढाई से तीन गुना अधिक राशि मिलेगी।”

गौरतलब है कि भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत जिस एनएच 139 डब्ल्यू की नींव रखी थी, उस पर निर्माण कार्य तेज कर दिया गया है। इस फोर लेन से 6 जिलों को सीधा जोड़े जाने की योजना है।

भारतमाला प्रोजेक्ट का विरोध क्यों?

संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े राम प्रवेश यादव कहते हैं कि,” 2025 में भी भूमि अधिग्रहण का मुआवजा 2014 की दर से दिया जा रहा है। किसानों को वर्तमान बाजार दर पर मुआवजा मिलना चाहिए और सरकार को अधिग्रहण प्रक्रिया में आज की वास्तविक दर को आधार बनाना होगा।”

किसान संगठन से जुड़े विक्रम शाह बताते हैं, “धान की फसल को हटाकर प्रशासन जबरन निर्माण कार्य करा रहा है। विरोध करने पर किसानों के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट भी की गई है। सरकार को पहले उचित मुआवजा देना चाहिए।”

विरोध प्रदर्शन के दौरान कैमूर जिला स्थित चैनपुर प्रखंड के सिहोरा मौजा में किसानों ने भारत माला एक्सप्रेसवे के निर्माण कार्य को रुकवा दिया गया है। किसानों के मुताबिक ‘एक परियोजना, एक जमीन, एक फसल, और एक मुआवजा' होना चाहिए। 

स्थानीय ग्रामीण के मुताबिक अगस्त में प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए चार किसानों को डिटेन कर लिया। जिसके बाद सैकड़ों किसान प्रशासन का विरोध किए। इस घटना के बाद प्रदर्शन की वजह से किसान और प्रशासन आमने-सामने हुए हैं।

स्थानीय पत्रकार विमलेंदु सिंह के मुताबिक “10 सितंबर को चैनपुर के दुलहरा गांव के पास प्रशासन मशीनों के साथ पहुंचा तो बड़ी संख्या में किसान विरोध करने पहुंच गए। वहीं 9 सितंबर को भी मसोई गांव के पास विरोध कर रहे किसानों को खदेड़ा गया था। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।”

किसानों ने स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया

स्थानीय पत्रकार एवं ग्रामीणों के मुताबिक औरंगाबाद जिला स्थित नबीनगर अंचल के पांडेय कर्मा और इगुनी डिहबार गांवों में 1 अगस्त को एवं 13 अगस्त को कुटुम्बा अंचल के दरियापुर और 14 अगस्त को सोनबरसा गांव में प्रशासन ने बिना उनकी सहमति और मुआवजे के उनकी खड़ी फसलों को नष्ट कर दिया।

जिसके बाद औरंगाबाद में ढाई हजार से ज्यादा किसानों ने इस साल स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया। किसानों का आरोप है कि बिना मुआवजा दिए जमीनें ले ली गई हैं। सरकार हमारे साथ गुलाम जैसा बर्ताव कर रही है।

सोनबरसा गांव के किसान राजकुमार सिंह कहते हैं कि, “प्रशासन ने बंदूक के दम पर किसानों की फसल नष्ट की। आजाद देश में गुलाम बनकर हमने स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाने का फैसला किया गया था।”

सवाल यह है कि जब अन्नदाता की सुरक्षा और सम्मान ही नहीं होगा, तो विकास की यह सड़क किस काम की? वहीं आयुक्त कार्यालय पटना प्रमंडल के मुताबिक एनएच 119 डी परियोजना तथा बक्सर जिला के एनएच 84  हेतु अर्जित भूमि को लेकर  लगातार सुनवाई की जा रही है।

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