एवोकाडो एक ऐसा फल जो विदेशों के साथ-साथ भारत में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। आकार, रंग और बनावट में कुछ अलग सा दिखने वाला यह फल सेहत के लिए बेहद फायदेमंद समझा जाता है। हालांकि इस फल पर भी जलवायु परिवर्तन की नजर लग चुकी है।
क्रिश्चियन एड ने अपनी नई रिपोर्ट ‘गेटिंग स्मैश्ड: द क्लाइमेट डेंजर फेसिंग एवोकाडो’ में खुलासा किया है कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से एवोकाडो पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में क्रिश्चियन एड ने अपनी रिपोर्ट में तेजी से उत्सर्जन में कटौती के साथ-साथ किसानों को और अधिक समर्थन दिए जाने की वकालत की है।
इसके गुणों की बात करें तो एक तरफ जहां इसमें कैलोरी बेहद कम होती हैं वहीं इसमें कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन ई, विटामिन बी, विटामिन सी, स्वस्थ वसा, फाइबर जैसे पोषक तत्वों के साथ एंटीऑक्सिडेंट गुण मौजूद होते हैं। यही वजह है कि इसे सुपरफ़ूड की श्रेणी में भी रखा जाता है। गौरतलब है कि इस लोकप्रिय सुपरफूड को उगाने के लिए ढेर सारे पानी की आवश्यकता होती है, जिस वजह से पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। देखा जाए तो पानी की बेहद आवश्यकता इसे विशेष रूप से जलवायु में आते बदलावों के लिए संवेदनशील बनाती है। रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि जैसे-जैसे दुनिया गर्म और शुष्क होती जा रही है, एवोकैडो उगाने के सबसे अच्छे क्षेत्र भी सिकुड़ रहे हैं।
आशंका है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक दुनिया में एवोकाडो की खेती के सबसे उपयुक्त क्षेत्रों में 41 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। उदाहरण के लिए मेक्सिको के मुख्य एवोकाडो उत्पादक क्षेत्र मिचोआकेन को 2050 तक एवोकाडो उत्पादक क्षेत्र में 59 फीसदी की कमी से जूझना पड़ सकता है।
हालांकि यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस में सीमित भी कर लिया जाए तो भी प्रभावों में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा।
कुछ क्षेत्र दूसरों की तुलना में होंगे कहीं ज्यादा प्रभावित
ऐसा नहीं है कि यह प्रभाव केवल मेक्सिको तक ही सीमित रहेंगें। रिपोर्ट में आशंका जताई है कि स्पेन, चिली और कोलंबिया के मौजूदा प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में भी स्पष्ट तौर पर बदलती जलवायु का असर देखने को मिलेगा।
इसकी वजह से उत्पादक क्षेत्रों में गिरावट आ सकती है। हालांकि यह प्रभाव काफी हद तक उत्सर्जन और उसको कम करने के लिए किए गए प्रयासों पर निर्भर करेगा। मतलब की जलवायु परिदृश्य जितना खराब होगा, एवोकाडो के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र उतनी तेजी से सिकुड़ेंगे।
यदि दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक देश मेक्सिको को देखें तो 2050 तक उसके संभावित उत्पादक क्षेत्रों में 31 फीसदी की कमी आ सकती है। यह कमी तब भी देखने को मिलेगी जब तापमान में होती वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस के भीतर रोक दिया जाए।
हालांकि यदि तापमान में पांच डिग्री सेल्सियस की कमी होती है तो उत्पादक क्षेत्रों में 43 फीसदी की कमी आ सकती है। इसकी वजह से एवोकाडो उद्योग और उसपर निर्भर लोगों की जीविका खतरे में पड़ सकती है।
बुरुंडी के एक किसान जोलिस बिगिरिमाना ने रिपोर्ट में किसानों के सामने पैदा हो रही दिक्कतों पर प्रकाश डाला है। उनके मुताबिक एवोकाडो की खेती कर रहे किसानों को जलवायु में आते बदलावों की वजह से गंभीर परिस्थितियों से जूझना पड़ता है।
उनका कहना है कि, "हम गर्म तापमान, भारी बारिश और कटाव का सामना कर रहे हैं, जो किसानों की पैदावार और आय को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। हमारे पास बुरुंडी में बारिश का एक छोटा सा मौसम होता है, और उस समय के दौरान, एवोकाडो किसान अपने पौधों को पानी देते हैं।"
उनका आगे कहना है कि, "जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम अब अधिक गंभीर हो गया है और इसका असर हमारी पैदावार पर पड़ रहा है। अब हमें फसलों को पानी देने में बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है, जिससे हमारी आय प्रभावित हुई है। यह हमारी आजीविका के लिए भी खतरा बन रहा है।
कमजोर किसानों को मदद की है दरकार
आंकड़ों के मुताबिक 2022 में, यूके दुनिया में एवोकाडो का सातवां सबसे बड़ा आयातक था। वो इस फल का 3.31 फीसदी हिस्सा आयात कर रहा था। इस रिपोर्ट में ब्रिटिश जनता की राय को भी शामिल किया गया है। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को विकासशील देशों में टिकाऊ खेती का समर्थन करना चाहिए, जिससे ब्रिटेन की खाद्य आपूर्ति पर जलवायु संकट के प्रभावों को कम किया जा सके। इस बारे में 63 फीसदी लोगों ने सहमति जताई थी।
एवोकाडो के इतिहास पर नजर डालें तो मेसोअमेरिकन लोगों के आहार, पौराणिक कथाओं और संस्कृति में एवोकाडो का एक महत्वपूर्ण स्थान था। खाद्य इतिहासकारों के मुताबिक आज से करीब 10,000 साल पहले मध्य मेक्सिको, और ग्वाटेमाला में इसके खाए जाने के प्रमाण मिले हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह फल सबसे पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुआ, फिर वहां से उत्तरी अमेरिका और फिर मध्य अमेरिका में पहुंचा।
शोधकर्ताओं का मानना है कि करीब 5,000 साल पहले एवोकाडो की खेती शुरू हुई। उसके बाद यह फल मेक्सिको, पेरू, इंडोनेशिया, कोलंबिया, फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया, हवाई, केन्या, हैती, चिली, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में भी पैदा होना शुरू हो गया। यदि 2022 के आंकड़ों पर गौर करें तो मेक्सिको ने करीब 25.3 लाख टन एवोकाडो की पैदावार की, जिससे वह देश दुनिया भर में एवोकाडो का शीर्ष उत्पादक बन गया। इसके बाद एवोकाडो उत्पादन में कोलंबिया (10.9 लाख टन) दूसरे और पेरू 8.7 लाख टन के साथ तीसरे स्थान पर है।
एक बात तो तय है कि यदि उत्सर्जन में कटौती के लिए सरकारों की ओर से कार्रवाई नहीं की गई तो एवोकाडो को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ सकता है। एक बात तो तय है कि यदि उत्सर्जन में कटौती के लिए सरकारों की ओर से कार्रवाई नहीं की गई तो एवोकाडो को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में क्रिश्चियन एड ने सरकारों से उत्सर्जन में तत्काल कटौती करने और स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने में तेजी लाने का आह्वान किया है।
उन्होंने उन कमजोर किसानों को अधिक वित्तीय सहायता देने की बात भी कही है, जो अपनी जीविका के लिए एवोकाडो पर निर्भर हैं। इससे वो बदलती जलवायु का सामना करने के काबिल बन सकेंगे।
क्रिश्चियन एड से जुड़ी मारियाना पाओली ने जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे किसानों पर प्रकाश डालते हुए प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि विकासशील देशों में किसान पहले ही जलवायु में आते बदलावों का खामियाजा भुगत रहे हैं। हालांकि वे अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए बेहतर जलवायु पर निर्भर हैं। ऐसे में उन्हें इस बदलते माहौल के अनुकूल ढलने के लिए कहीं ज्यादा वित्तीय समर्थन की आवश्यकता है।