
भारत में मृदा क्षरण की दर वैश्विक दर से कहीं अधिक है। इसके कई कारक हैं जिनमें कृषि उत्पादन हेतु खादों का अनरवत बढ़ता प्रयोग प्रमुख है। विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, कल्याणी के प्रोफेसर बिस्वपति मंडल ने कहा कि बारिश और मृदा क्षरण के बीच सीधा संबंध है।
यदि बारिश सामान्य से 1% अधिक रहती है तो मृदा क्षरण में 2% की बढ़ोतरी होती है। वैज्ञानिकों ने 2050 तक बारिश में सामान्य से 10% बढ़ोतरी की आशंका जताई है ऐसे में मृदा क्षरण और बढ़ सकता है। पर्यावरण के इस बदलाव का सबसे बड़ा असर महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में देखने को मिल सकता है।
मंडल ने कहा, "भारतीय मिट्टी सबसे कमजोर मिट्टी में से एक है; भारत में औसत मृदा क्षरण प्रति वर्ष 20 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि वैश्विक औसत 2.4 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है।" मंडल के अनुसार, जलवायु परिवर्तन मिट्टी के क्षरण को तेज कर रहा है, जो बढ़ती वर्षा और अम्लीयता से प्रेरित है। भविष्य में अम्लीय मिट्टी का क्षेत्रफल 40 मिलियन हेक्टेयर बढ़ने की उम्मीद है। परिणामस्वरूप मिट्टी की लचीलापन कम हो रही है।
सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट की ओर से आयोजित अनिल अग्रवाल डॉयलाग 2025 के दूसरे दिन के तीसरे विशेषज्ञों ने मिट्टी की सेहत को लेकर चर्चा की। सत्र के दौरान आईसीएआर भोपाल के प्रधान वैज्ञानिक एन के लेंका ने बताया कि हमारी मिट्टी में पोषक तत्वों की लगातार कमी हो रही है जिसके चलते हमें बाहरी इनपुट डाल कर उत्पादन बनाए रखने की जरूरत पड़ रही है।
उन्होंने बताया कि 1960 के दशक में जहां 1 किलो खाद से 101 किलो उत्पादन लिया जा सकता था वहीं 2019 में यह घटकर 10 किलो रह गया है यानि प्रति किलो खाद से प्रति किलो उत्पादन में 10 गुणा की कमी आई है। उन्होंने कहा कि मिट्टी के क्षरण का मानव स्वास्थ्य और पोषण से सीधा संबंध है।
मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होने से जो उत्पादन हमें मिलेगा उसमें भी पोषक तत्वों की कमी होगी। इसके अलावा अलेंका ने भारत के विभिन्न राज्यों की मिट्टी की सेहत पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, "भारत में मिट्टी के नुकसान के लिए सबसे ज़्यादा संवेदनशील 20 जिलों में से नौ असम राज्य में हैं।"
विशेषज्ञों ने 2023 में अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित शोध के हवाले से बताया कि भारत में मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता और लोगों की पोषण स्थिति के बीच सीधा संबंध है। शोध के अनुसार जिन जिलों में मिट्टी में जिंक की उपलब्धता कम थी, उनमें स्टंटिंड बच्चों और अंडरवेट बच्चों की दर काफी अधिक थी। साथ ही मिट्टी में आयरन की उपलब्धता और एनीमिया के बीच स्पष्ट संबंध भी पाया।
विशेषज्ञों ने कहा कि मिट्टी की दशा बेहतर करने और इसे बचाए रखने के लिए स्थानीय प्रशासन को शामिल करते हुए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा मिट्टी की सेहत में बेहतरी के लिए नेशनल सॉयल पॉलिसी का निर्धारण और उसकी अनुपालना सुनिश्चित करनी चाहिए। क्षरित मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासों में तेजी लानी चाहिए।
हालांकि सरकारों की ओर से प्राकृतिक खेती और क्लाईमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसिज की शुरूआत की गई है लेकिन उनमें सुधार कर मिट्टी की सेहत के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना भी जरूरी है।