
बिहार के गया शहर की बढ़ती आबादी के कारण पिछले 22 सालों में भूमि उपयोग और भूमि आवरण (एलयूएलसी) में भारी बदलाव हुए हैं, जिसके कारण खेती की जमीन को काफी नुकसान हुआ है।
एक नए अध्ययन में सामने आया है कि गया में पिछले दो दशकों में खेती की जमीन में 58 फीसदी की कमी देखी गई है, हालांकि हरित आवरण में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है। यह अध्ययन दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है।
शोध पत्र में सीयूएसबी के अध्ययनकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि 2000 से 2022 के बीच खेती की जमीन में 58 फीसदी की कमी आई है, जिसका मुख्य कारण शहरीकरण और निर्मित क्षेत्रों का विस्तार होना बताया गया है। गया शहर में कृषि भूमि 2000 में 1,908 हेक्टेयर थी, जो 2022 तक घटकर 810 हेक्टेयर रह गई।
अध्ययन के मुताबिक, जीआईएस और रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग करके किए गए इस अध्ययन में सीए-मार्कोव मॉडल का उपयोग किया गया है, जो 2030 तक भूमि उपयोग में होने वाले बदलावों का पूर्वानुमान लगाएगा। यह अध्ययन जर्नल ट्रांजैक्शन ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोग्राफर्स के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है, जिसे वैश्विक डेटाबेस 'स्कोपस' में शामिल किया गया है।
अध्ययन में कहा गया है कि यदि शहरीकरण इसी तरह चलता रहा, तो साल 2030 तक खेती की जमीन 19 फीसदी घटकर केवल 657 हेक्टेयर रह जाएगी, जो गया की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगी। इसके बाद निर्मित क्षेत्र में भारी वृद्धि देखी गई है, जो 2000 में 1,543 हेक्टेयर से बढ़कर 2022 में 2,560 हेक्टेयर हो गई है। यह प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना जताई गई है और निर्मित क्षेत्र 2030 तक 2,580 हेक्टेयर तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है।
हालांकि अध्ययन में सरकार के जल संरक्षण और वनीकरण कार्यक्रमों के कारण वन क्षेत्र में बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि जल निकायों जैसे तालाबों और नदियों में 16 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है।
साल 2000 में जंगल वाले इलाके 255 हेक्टेयर थे, जो वर्ष 2022 तक बढ़कर 694 हेक्टेयर हो गया। इस बात का अनुमान लगाया गया है कि साल 2030 तक यह क्षेत्र और बढ़कर 726 हेक्टेयर हो सकता है। अध्ययन में आगे बताया गया है कि साल 2000 में 913 हेक्टेयर बंजर भूमि थी, जो वर्ष 2022 तक घटकर 580 हेक्टेयर रह गई, लेकिन साल 2030 तक बंजर भूमि में फिर से वृद्धि होने की आशंका जताई गई है, जो जलवायु में बदलाव और बारिश के अनिश्चित पैटर्न के प्रभाव को दिखता है।
अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं के हवाले से सुझाव दिया गया है कि सरकार को शहर विस्तार को नियंत्रित करने के लिए सख्त नीतियों को लागू करना चाहिए। इसके कारण खेती की जमीन तेजी से आवासीय, औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोग के लिए भूमि में बदल रही है, जिससे स्थानीय खाद्य उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
अध्ययन में कहा गया है कि भूमि उपयोग नियोजन और संरक्षण नीतियों के सख्त क्रियान्वयन के बिना, गया शहर में खेती की जमीन की रक्षा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
साथ ही अध्ययनकर्ताओं ने शहरी सीमा के भीतर कृषि योग्य भूमि की सुरक्षा, ग्रीन इलाकों को बढ़ावा देना और टिकाऊ शहरी विकास योजनाओं को अपनाने को जरूरी बताया है। अन्यथा गया जैसे ऐतिहासिक और कृषि-आधारित शहरों में कृषि भूमि लगभग समाप्त हो सकती है, जिससे स्थानीय खाद्य उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा और पर्यावरण असंतुलन भी बढ़ेगा।