भारत में आर्थिक असमानता चरम पर पहुंच गई है। महज एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल आय का 22 प्रतिशत हिस्सा है। अर्थशास्त्री लुकास चांसेल और थॉमस पिकेटी अपने अध्ययन में इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उन्होंने अपने अध्ययन में उपभोग, सरकारी खातों और 1922 से 2014 तक के आयकर के आंकड़ों की विश्लेषण किया। बता दें कि 1922 में ही भारत में आयकर लगाया गया था। उनके अध्ययन के अनुसार, 1922 में एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की 21 प्रतिशत आय थी। 1980 के दशक में यह घटकर छह प्रतिशत हो गई लेकिन 1990 के दशक से यह तेजी से बढ़ती जा रही है।
छोटे और सीमांत किसानों के समूह, मध्यम और बड़े किसानों के बीच आय की असमानता एक कड़वी सच्चाई है। जिस किसान के पास जितनी कम भूमि है, उसकी आमदनी उतनी ही कम है। भारत में छोटे और सीमांत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है। दूसरे शब्दों में कहें तों भारत में 85 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है।
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए गठित दलवाई समिति की रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में छोटे और सीमांत किसान परिवार की सालाना आमदनी 79,779 रुपए थी। इस आमदनी की तुलना बड़े किसानों की आमदनी से करके देखिए जिनके पास 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि है। ये बड़े किसान, छोटे और सीमांत किसानों की तुलना में साढ़े सात गुणा अधिक आय अर्जित करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इनकी सालाना आमदनी 605,393 रुपए है। मध्यम किसान परिवार साल में 201,083 रुपए अर्जित करता है। यह आमदनी भी छोटे और सीमांत किसानों की परिवारिक आय का ढाई गुणा है।
इसका तात्पर्य यह है कि 85 प्रतिशत किसान परिवार के पास कुल आय का केवल 9 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि 15 प्रतिशत किसान परिवारों के पास 91 प्रतिशत हिस्सेदारी है। अगर भारत की कुल असमानता से इसकी तुलना की जाए तो यह बहुत ज्यादा बैठेगी। दलवाई समिति की रिपोर्ट के अनुसार, कृषि सुधार के लिए शुरुआती वादा था कि भूमिहीनों को भूमि दी जाएगी और खेतिहरों को पट्टे का मालिकाना हक मिले लेकिन दुर्भाग्य से भारत में कृषि सुधार कृषक समाज में समता सुनिश्चित करने में असफल रहा।
ऐसा नहीं है कि केवल किसानों के समूहों की बीच ही असमानता की खाई बल्कि यह विभिन्न राज्यों के बीच भी दिखाई देती है। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर) के लिए किए गए संजॉय चक्रवर्ती, एस चंद्रशेखर और कार्तिकेय नारापाराजू के शोध पत्र के अनुसार, पंजाब में खेती से प्रति व्यक्ति आय 2,311 रुपए है लेकिन पश्चिम बंगाल में यही आय 250 रुपए है। आय में यह अंतर नौ गुणा है। देश के तीन बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार में आय से अधिक व्यय है।
आईजीआईडीआर के अध्ययन के अंत में कहा गया है कि खेती से आय को निर्धारित करने वाला मुख्य कारक भूमि का स्वामित्व है और यही आय ही असमानता के लिए जिम्मेदार है। सोचने वाली बात यह भी है जिन किसानों के पास आधा हेक्टेयर भूमि है, वे अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी आय तक अर्जित नहीं कर पाते।
छोटे और बड़े किसानों की बीच आय में वृद्धि भी बेहद असमान रही है। छोटे किसानों को अपनी आय बढ़ाने में बड़े किसानों की तुलना में समय भी ज्यादा लग रहा है। उदाहरण के लिए 2003-13 के बीच 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि का स्वामित्व वाले किसानों ने अपनी आय दोगुनी कर ली लेकिन एक हेक्टेयर भूमि वाले किसान इस अवधि में अपनी आय में 50 प्रतिशत इजाफा भी नहीं कर पाए। ऐसे हालात में किसानों की आय को दोगुना करना असंभव-सा प्रतीत होता है।