जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी एनडीए सरकार : सर्वे

संकल्प पत्र जारी करते वक्त प्रधानमंत्री ने 2014 में किए वादे को पूरा करने का दावा किया, लेकिन एडीआर के 2.73 लाख लोगों पर किए गए सर्वे में कुछ और बात सामने आई है
जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी एनडीए सरकार : सर्वे
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सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के संकल्प पत्र जारी करते हुए दावा किया कि साल 2014 में उन्होंने जो चुनावी वादे किए थे, वे वादे पूरे हो चुके हैं, लेकिन हाल ही में चुनावी सुधार पर काम करने वाली संस्था द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने लगभग 2 लाख 73 हजार लोगों से बातचीत की और पाया कि मोदी सरकार जनता की उम्मीदों पर औसत से कम खरी उतरी।

एडीआर वर्ष 1999 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसरों द्वारा बनायी गई गैर-लाभकारी संस्था है। जो नागरिकों के हित में कार्य करने वाली एक राजनीतिक संस्था है। पिछले वर्ष अक्टूबर से दिसंबर महीने के दौरान संस्था ने सरकार की परफॉर्मेंस को आंकने के लिए एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में उन मुद्दों को शामिल किया गया जो किसी मतदाता के किसी खास राजनीतिक दल के वोट देने के पैटर्न को प्रभावित करता है। इस सर्वेक्षण में देश की सभी लोकसभा क्षेत्रों से 2,73,487 लोगों ने हिस्सा लिया।  सर्वेक्षण का उद्देश्य राजनीतिक दलों के प्रति मतदाता की उम्मीदों को परखना था।

जनता की उम्मीदों पर औसत से कम रही मोदी सरकार

एडीआर ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के गवर्नेंस से जुड़े दस मुद्दों पर जनता की राय जानी। बेहतर रोजगार के मौके के मुद्दे पर सर्वेक्षण में सरकार को 5 में से 2.15 अंक मिले, जो औसत अंक (3) से कम हैं। इसी तरह बेहतर अस्पताल और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र को 2.35 अंक, पेयजल को 2.52 अंक, बेहतर सड़कें 2.41 अंक, बेहतर सार्वजनिक परिवहन 2.58 अंक, कृषि के लिए पानी की उपलब्धता के मुद्दे पर 2.18 अंक, कृषि ऋण उपलब्धता 2.15 अंक, कृषि उत्पादों के लिए उंची कीमत का एहसास 2.23 अंक, बीज और खाद के लिए कृषि सब्सिडी पर 2.06 अंक और बेहतर कानून व्यवस्था/ पुलिसिंग पर 2.26 अंक दिए गए। इस सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने इन सभी दस मुद्दों पर केंद्र सरकार को औसत से कम अंक दिए।

सर्वेक्षण में बताया गया कि रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएं और पेयजल देशभर के मतदाताओं के प्राथमिक मुद्दे हैं। इसके बाद बेहतर सड़कें और बेहतर सार्वजनिक परिवहन हैं।

मौजूदा चुनाव में केंद्र सरकार के तमाम नेता सेना, सैनिक और सुरक्षा जैसे मसलों पर चुनावी भाषण दे रहे हैं। लेकिन जनता की प्राथमिकताओं की सूची में ये निचले दर्जे पर है। मज़बूत सुरक्षा/सेना (3.02%), सार्वजनिक ज़मीन या नदी-नालों पर अतिक्रमण (1.48%), और आतंकवाद (3.34%) अंक के साथ निचले पायदान पर हैं।

सबसे युवा अर्थव्यवस्था का दंभ भरने वाले देश को सबसे बड़ी चिंता युवाओं को रोजगार दिलाना होना चाहिए। ये सर्वेक्षण कहता है कि मतदाताओं की सबसे अहम प्राथमिकता रोजगार है। जिसके लिए उनकी अकांक्षा पिछले वर्षों की तुलना में 56.67 प्रतिशत बढ़ी है (47 प्रतिशत 2017 में)। जबकि इसी दौरान इस मुद्दे पर सरकार की परफॉर्मेंस पांच अंक के पैमाने पर 3.17 से 2.15 पर आ गई है।

इन नतीजों से स्पष्ट है कि केंद्र की सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। बेरोजगारी और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे बुनियादी सुविधाओं को भी सरकार पूरा नहीं कर सकी।

सामाजिक-आर्थिक तौर पर सबसे पिछड़े 7 राज्यों (बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) के मतदाताओं की पहली प्राथमिकता रोजगार के मौके उपलब्ध कराना है।

जबकि पेयजल की उपलब्धता उड़ीसा, कर्नाटक और दमन-दीव के मतदाताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसी तरह चंडीगढ़ के लोगों की प्राथमिकता पानी और वायु प्रदूषण को लेकर है, दिल्ली को यातायात जाम से सबसे ज्यादा दिक्कत है, मेघालय के लोग बीज और खाद पर कृषि सब्सिडी को अपनी प्राथमिकता बताते हैं और त्रिपुरा के लोगों की सबसे बड़ी समस्या कृषि ऋण की उपलब्धता है।

सर्वेक्षण में कुछ चौंकाने वाले और भी तथ्य सामने आए हैं। जैसे कि महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार को सबसे ज्यादा अंक (2.59) मिले हैं, इसके बावजूद ये औसत से कम परफॉर्मेंस है।

स्कूली शिक्षा पुरुष और महिला मतदाताओं के लिए प्राथमिकताओं की सूची पर 13वें स्थान पर है। जिसमें सरकार को बेहद कम (पुरुष:1.63 और महिला:1.74) अंक मिले हैं।

एडीआर सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रीमण मतदाताओं की सबसे बड़ी प्राथमिकता (44.21%) रोजगार के बेहतर मौके हैं। इसके अलावा पांच बड़ी प्राथमिकताएं कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। कृषि के लिए सिंचाई के पानी की उपलब्धता (40.62%), कृषि ऋण उपलब्धता (39.42%), कृषि उत्पादों की ऊंची कीमत (39.09%), बीज और खाद के लिए कृषि सब्सिडी (38.56%) और कृषि के लिए बिजली (36.62%) है।

इसके अलावा इस सर्वेक्षण में कुछ अन्य दिलचस्प तथ्य भी सामने आए हैं। जैसे 35.89 प्रतिशत मतदाता किसी प्रत्याशी के आपराधिक रिकॉर्ड के बावजूद वोट देने की इच्छा रखते हैं, यदि उसने अपने कार्यकाल में अच्छा कार्य किया है। जाति और धर्म भी वोट देने के पीछे अहम भूमिका निभाता है। 35.23 प्रतिशत मतदाता आपराधिक रिकॉर्ड के बावजूद जाति और धर्म के आधार पर वोट देने को तैयार हैं। 36.67 प्रतिशत मतदाताओं का मानना है कि वोटरों को प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी नहीं होती। हालांकि 97.86 प्रतिशत मतदाता ये महसूस करते हैं कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रत्याशी विधानसभा या संसद में नहीं होने चाहिए।

वोटिंग बिहैवियर (वोट देने का फैसला) के मामले में 97.86 प्रतिशत मतदाताओं का मानना है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को विधानसभा या लोकसभा में चुनकर नहीं भेजना चाहिए। जबकि 41.34 प्रतिशत मतदाताओं ने माना कि चुनाव के समय कैश, शराब या अन्य उपहार भी किसी प्रत्याशी के प्रति मतदान को प्रभावित करते हैं।  

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जारी की गई एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ये रिपोर्ट चुनाव में अपनी पार्टी और प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है। इस संस्था ने इससे पहले राजनीति के क्षेत्र में कई अहम योगदान दिए हैं। पेड न्यूज़, नोटा, 6 राष्ट्रीय पार्टियों को आरटीआई के तहत लाने जैसे कई अहम मामलों को संस्था सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गई और सर्वोच्च अदालत ने जनता के हित में अहम फ़ैसले दिए।

ये रिपोर्ट राजनीतिक दलों से जनता की उम्मीदों और अकांक्षाओं को दर्शाती है। रोज़गार, पानी, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे अब भी हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता में से एक हैं। आज़ादी के इतने वर्षों बाद हम इन्हीं बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रहे हैं।

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