पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते से खुद को अलग कर समझौते के ताबूत में कील ठोंकने का काम किया। दुनिया इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि दुनिया के सबसे बडे प्रदूषकों में शामिल अमेरिका ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के अपने सभी वादों से मुकर रहा है।
आज विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) इस संकट की ओर ध्यान आकृष्ट कर रहा है। सीएसई अपना एक अध्ययन जारी कर रहा है जो बताता है कि भारत पिछले सालों में किस तरह गर्म हो रहा है। विश्लेषण में देश के वार्षिक और मौसमी तापमान के ट्रेंड का अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन 1901 से हाल के वर्षों तक का है। अध्ययन में पाया गया है कि देश निरंतर और तेजी से गर्म होता जा रहा है। सीएसई ने एनिमेटेड स्पाइरल के जरिए इसे दिखाने की कोशिश की है। यह देश का पहला ऐसा वीजुअल प्रजेंटेशन है।
क्या कहता है विश्लेषण
तापमान के मायने
गर्मियों में बेतहाशा गर्मी और रिकॉर्डतोड़ ठंड जैसी घटनाएं तापमान बढ़ने का ही नतीजा है। उदाहरण के लिए साल 2016-17 में 1901-1930 के मुकाबले तापमान 2.95 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसी दौरान दक्षिण भारत के तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटका और केरल में सदी का सबसे भयंकर सूखा पडा। इसकी जद में 330 लाख लोग आए।
इसी तरह 2010 में बेसलाइन के मुकाबले तापमान 2.05 डिग्री अधिक था। इस दौरान हीट वेव ने भारत के अधिकांश हिस्से को अपनी जद में ले लिया। इससे 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इसके अलावा पिछले साल भारत में चार साइक्लोन तूफान भी आए।
सीएसई के डिप्टी डायरेक्टर जनरल चंद्र भूषण का कहना है कि भारत तेजी से गर्म हो रहा है। यह स्थिति अर्थव्यवस्था, समाज और भारत पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। हम मौसम में अचानक बदलाव का सामना कर रहे हैं। मौसम अप्रत्याशित भी होता जा रहा है। इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड रही है। गरीब पर मौसम में बदलाव की मार पड़ रही है।
सीएसई की डायरेक्टर सुनीता नारायण का कहना है कि पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने से तापमान को नियंत्रित करना बड़ी चुनौती है। हम दुनिया के लोगों से अपील करते हैं कि वे साथ आएं और सख्त कदम उठाएं।